अल्मोड़ा के उत्तर की ओर सिंतोला वन पड़ता है. बाँज, देवदार, चीड़ और काफल के घने गाछों से घिरे सिंतोला वन में मिसेज ग्रीनवुड अपनी छोटी-सी ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ में रहती हैं. मिसेज ग्रीनवुड की आत्मा अतीत की बेधक स्मृतियों के घने गाछों से घिरी रहती है. अमरबेल की सुनहरी चादर से ढके काफल के गाछ के सामने बैठती हैं मिसेज ग्रीनवुड, तो लगता है — कहाँ से कोहरा-सा उदित होने और इसमें वुड साहब की आत्मा का प्रतिबिंब आकार ग्रहण करने लगा है. (Story of Shailesh Matiyani)
काफल के गाछ को कभी-कभी कठफोड़वा कुटकुटाने लगता है — कुट-कुट, कुट-कुट… मिसेज ग्रीनवुड, एक धमाके के साथ किवाड़ खोलते, तड़पते हुए आँगन में आ जाती हैं, जैसे घनी सिवार की परत चीरकर कोई घायल मछली ऊपर सतह पर आ गई हो.
एक कमरा बैठक का, एक सोने का, एक रसोई घर, तथा एक छोटा-सा स्टोर रूम — ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ का खाका खुद ग्रीनवुड साहब ने ही तैयार किया था.
बोले थे — डियर, एक छोटा-सा तुम, एक छोटा-सा हम. बहुत बड़ा बँगला हमको सूट नहीं करने सकता. डाइनिंग-रूम का अंदर दो कुर्सी लगाएगा. दोनों जना बैठेगा, कॉफी पिएगा. बातचीत करेगा. खाना खाएगा. स्लीपिंग-रूम का अंदर दो चारपाई लगाएगा, सो जाएगा. इस छोटा-सा बँगले के अंदर सिरफ दो जना रहेगा, सिरफ दो जना!
माई गॉड! — बाहर इजी-चेयर पर निढाल लेटती मिसेज ग्रीनवुड कभी बहुत व्यथित हो उठती हैं — ओह, हमारा साहब कितना सच्चा बात बोलता था! इस बँगला का अंदर दो जना रहेगा, सिरफ दो जना!
‘ग्रीनवुड साहब ने, खीरी लखीमपुर के डी.सी. के पद से रिटायर्ड होने के बाद, अल्मोड़ा में बसने की योजना बनाई थी. बहुत पहले कभी अल्मोड़ा के समीप-वर्ती बिनसर जंगल में शिकार खेलने आए थे. अल्मोड़ा के डी.एम. सर रॉबर्ट के आमंत्रण पर, तभी सिंतोला उनको बहुत भा गया. एकाकी थे तब. रॉबर्ट साहब से उन्होंने कहा था, अपने एकाकी-जीवन के अवकाश के दिन वो किसी ऐसी ही शांत भूमि में बिताना चाहते हैं. रॉबर्ट साहब ने आश्वासन दे दिया — जब भी वो यहाँ बसना चाहेंगे, व्यवस्था हो जाएगी.
अल्मोड़ा जाने पर ग्रीनवुड साहब को सिर्फ बँगले के लिए उपयुक्त भूमि ही नहीं, बल्कि अपने पद-मुक्त एकाकी बीहड़ जीवन की बोझिल असंगतियों को एक मधुर संतुलन देने वाली, मिस एंडरसन भी मिल गईं.
मिस एंडरसन, रॉबर्ट साहब के यहाँ मेहमान के रूप में रहती थीं तब. पहले सेंट जेवियर्स में थीं. उम्र और देह के तकाजे को वश में नहीं रख सकीं. फादर ने पवित्रता का प्रतीक छीनकर, निष्कासित कर दिया. कह दिया, कहीं गृहस्थी में प्रवेश कर लो. फिर जब गृहस्थी से मुक्त हो जाओ, कोई तृष्णा शेष न रह जाए, तो सच्चे मन से पश्चाताप करके पवित्रता के इस प्रतीक की शरण चली आना. ईश्वर तुम्हें मुक्ति देंगे….
संस्कार, शिक्षा और सौंदर्य का त्रिवेणी-संगम था, मिस एंडरसन में मिरतोला की कृष्ण-भक्त भाई स्वामी श्री कृष्णप्रेम के दर्शन और कैलास-यात्रा की लालसा लिए अल्मोड़ा पहुँची थीं, तो व्यवस्था के सिलसिले मे रॉबर्ट साहब से मिली थीं. मिस एंडरसन चालीस पार कर चुकी थीं. मगर चेहरे की आभा और अधिक निखर आई थी. आँखों में एक तेजस्विता थी, जो औरों की दृष्टि को एक ही ठौर थिरा देती थी – कमल की खुली हुई पंखुड़ियों तक पहुँच कर थिरा जाने वाली सूरज की किरण की तरह!
प्रारंभिक-जीवन से ही एकाकी, अकेलेपन के अभ्यस्त ग्रीनवुड साहब को लगा, कार्यरत जीवन तो नौकरों-चाकरों और मातहतों की जी-हजूरी के बीच कट गया, मगर अवकाश के एकाकी दिन सुख से काटने को एक संगति चाहिए. एकाकीपन का पलड़ा दिन-दिन एक ओर झुकता चला जा रहा है, उसे एक संतुलन चाहिए.
प्रभु की माया कुछ ऐसी व्यापी कि जीवन-भर के रूखे-सूखे ग्रीनवुड साहब साठ बरस की उम्र में बरसों पहले रेल में खोए हुए-से बालक की तरह मिस एंडरसन की छाती से लग गए. अपनी व्यथा, अपनी वीरानी मिस एंडरसन को सौंपने के बाद, ग्रीनवुड साहब एक घनी साँझ को, मिस एंडरसन को साथ लिए सिंतोला वन के इस सुरम्य भूमि-खंड तक आ पहुँचे थे. विह्वल कंठ से बोले – ‘मिस, जब हम पैदा हुआ था, तभी एकदम अकेला था. हमारा बाप अंग्रेज, मदर हिंदुस्तानी ब्रामिन था. परवरिश आंटी सोफिया किया. बहुत अच्छी तरह से किया, मगर हमेशा हम अकेला रहा. अकेले से हमारा मतलब, दूसरा लोग, कई लोग हमको मोहब्बत किया, मगर हम किसी को मोहब्बत नहीं किया. पढ़ा-लिखा, तरक्की किया. साहब बना, सब-कुछ किया, मोहब्बत नहीं किया. इधर अलमोड़ा भी यही सोचके आया, पैदा हुआ तो अकेला था, मरता टाइम भी एकदम अकेला रहना माँगता! मिस, अपना, आखिरी वक्त निकालने के वास्ते हमको हिंदुस्तान का पहाड़ी इलाका का अलावा कोई जगह पसंद नहीं आता. बोली, ये जगह कैसा लगा तुम्हारा दिल को, डियर?’
‘अच्छा लगता, एकदम अच्छा-अच्छा, डियर!’
‘बहुत अच्छा. तुम भी हिंदुस्तानी बोलने सकता. हमको बहुत खुशी. जिस जगह का ऊपर रहना, उस जगह का मिट्टी का जबान बोलने से इनसान अपने को ‘फॉरेनर’ महसूस नहीं करता. …इधर हम घर का माफिक रहेगा, मिस! मगर सिर्फ दो जना रहेगा, सिर्फ दो जना.’ – ग्रीन वुड साहब का गला भर आया था.
‘सिर्फ दो जना क्यों, डियर?’
‘तीसरा जना नहीं हो सकता, डियर! अकेला जिंदगी काटने के वास्ते हम पहले बहुत गुनाह किया. मगर बच्चा नहीं बनाने का वास्ते हम ‘ऑपरेशन’ कराया. अब तीसरा जना नहीं होने सकता. बोलो, तुमको कोई ऐतराज होने सकता?’
‘याचना के बोझ से ग्रीनवुड साहब की आँखें झुक गई थीं. मिस एंडरसन ने ईसा मसीह के उपदेश पढ़ रखे थे. किसी संतप्त आत्मा को संतोष और सुख पहुँचाना ही प्रभु को पाने का सबसे उत्तम मार्ग है.
अब जब-जब काफल-गाछ को कठफोड़वा कुटकुटाता है, मिसेज ग्रीनवुड आँधी की तरह बाहर आँगन में चली आती हैं. काफल के गाछ पर छाई अमरबेल को एकटक देखते-देखते, उनकी आँखें भर आती हैं. ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ बन जाने पर, बाहर आरामकुर्सी में लेटे-लेटे, एक बार ग्रीनवुड साहब ने कहा था — ‘डियर, जैसे इस काफल का पेड़ का ऊपर अमरबेल छाया हुआ, ठीक ऐसा ही माफिक, हमारा वीरान जिंदगानी का ऊपर तुम!’
माई गॉड! – मिसेज ग्रीनवुड कभी-कभी व्यथा से तड़प उठती हैं — हमारा साहब कितना सच्चा, कितना अच्छा, एकदम छोटी बेबी का माफिक प्यारा बात बोलता था. नॉटी ब्वाय कहीं का! बोलता था, छाती के पास सिर को टिकाने के बाद, हिंदुस्तान का अंदर औरत का छाती मदर के छाती का माफिक पीसफुल होता, डियर!’
मिसेज ग्रीनवुड पश्चात्ताप से बावली-बावली होने को आती हैं, जब-जब उन्हें यह अनुभूति होती है कि — उन्होंने सिर्फ पति को ही नहीं, एक मासूम बच्चे जैसी व्याकुल आत्मा को भी खो दिया है.
आज बिस्तर पर से उठीं, तभी मन बहुत उद्विग्न हो रहा था. काफलगाछ को कठफोड़वा कुटकुटाता है, तो वश में रहा नहीं जाता. नहीं तो, कभी-कभी जैसे आज ही, मिसेज ग्रीनवुड की इच्छा होती है – ग्रीनवुड साहब की स्मृतियों को छाती से लगाए अनंत काल तक सोई पड़ी रहें. …मगर एक कठफोड़वा काफल-गाछ को कुटकुटाता है. तो दूसरा, शोबन, कलेजे को कुटकुटाता है.
प्रभु ने कहा है, एक बार का पाप अगले कई पापों का मार्ग खोलता है. पहले पाप से बचना ही अंतिम पाप से मुक्त होना है. प्रभु के वचन सत्य होते हैं.
प्रभु ने कहा है – तुम्हारी आत्मा के अंदर शैतान और पवित्र देवता, दोनों का वास है. रोज सुबह की पहली किरन के साथ प्रार्थना करो. पवित्र देवता को जगाओ. वह तुमसे ऐसे काम कराएगा, जो तुम्हें प्रभु के पास ले जाएँगे. शैतान को सोए रहने दो, वह नरक ले जाने वाली बदी के काम करवाता है…!
मगर मजबूरी थी. ग्रीनवुड देर तक मुँह ढाँपे सोए रहने के अभ्यस्त थे. सूरज की पहली किरन के साथ, मिसेज ग्रीनवुड नौकर शोबन को जगाया करती थीं. प्रभु ने कहा है, पाप की चिकनी शिला पर पाँव टिकाने वाला, फिसलता है, तो फिर जल्दी सँभल नहीं पाता.
मिसेज ग्रीनवुड भी नहीं सँभल सकीं. सूरज की पहली किरण के साथ रोज शैतान की आत्मा जागती रही. रोज जागती रही. …और एक दिन, प्रभु के वचन सत्य हुए.
माई गॉड! – मिसेज ग्रीनवुड तड़प उठती हैं — हमारा साहब कितना सच्चा बात बोलता था — डियर, इस छोटा बँगला का अंदर दो जना रहेगा. सिरफ तुम, सिरफ हम! सिरफ दो जना…
…और जब तीसरा आया था, एकदम मासूम बच्चा, सुबह को जगाए हुए शैतान का बच्चा, तो ग्रीनवुड साहब एक अजीब-सी खामोशी के साथ प्रभु के लोक को चले गए थे… और मिसेज ग्रीनवुड को वह मासूम बच्चा ग्रीनवुड साहब से भी कहीं ज्यादा बूढ़ा खूसट लगा था. और…
बरसों बीत गए हैं. मिसेज ग्रीनवुड का सदाबहार चेहरा झुर्रियों से भर गया है. ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ में भी सिर्फ दो ही जन रहते हैं – मिसेज ग्रीनवुड और शोबन. मगर मिसेज ग्रीनवुड हमेशा यही महसूस करते रहना चाहती हैं कि ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ में सिर्फ दो ही जन रहते हैं – एक मिसेज ग्रीनवुड और एक ग्रीनवुड साहब की आत्मा! शोबन से उन्होंने कह दिया है — इस बँगला के अंदर सिरफ दो ही जना रह सकते हैं! …शोबन भी समझदार है. मेम साहिबा के सिवा उसका भी कोई दूसरा आसरा नहीं. अब इस बुढ़ापे में वह बेचारा जाए भी कहाँ? बिल्कुल गुलाम की तरह सिर हिलाते हुए कहता है – अब तीसरा कोई कहाँ आएगा, मेम साहब!
मिसेज ग्रीनवुड संतोष कर लेती हैं. प्रभु के वचन याद रहते हैं. पाप को शरण मत दो, मगर पापी को शरण दो, क्योंकि वह भी उसी सर्वशक्तिमान प्रभु का भटका हुआ पुत्र है.
बस, अब मन को शांति देने के लिए दीवार पर टँगा प्रभु का आदमकद चित्र रह गया है. प्रभु के चरणों में सिर टिकाकर, देर तक आँसू बहाती रहती हैं मिसेज ग्रीनवुड, तो उन्हें एक सुखद शांति मिलती है… तू यह मत समझ कि पाप तूने खुद किया है. प्रभु ने तेरी आत्मा को परखा है. पाप की आग में मत जल, प्रभु से शरण माँग. धूप का तपा फूल वर्षा के शीतल जल से फिर प्रफुल्ल हो जाता है.
कठफोड़वा जैसे निश्चित समय पर कुट-कुट करता है.
बाहर आईं मिसेज ग्रीनवुड. काफलगाछ के ऊपर अमरवेल छाई हुई देखी — हे प्रभु! काफल का गाछ ऊपर हमारा साहब का आत्मा!
मिसेज ग्रीनवुड ने, भावावेश में, एक पत्थर का टुकड़ा उठाया और पूरी ताकत के साथ कठफोड़वा की ओर फेंकने की कोशिश की, मगर पीछे से आगे की ओर लाते हुए, हाथ एकदम काँप गया. पत्थर का टुकड़ा, उनके ही कान को छीलता, जमीन पर गिर पड़ा.
शोबन गमलों में पानी दे रहा था. दौड़ा-दौड़ा आया. पत्थर के तीखे कोने से कान कुछ फट गया था. गीले कपड़े से कान को पोंछने और ‘टिंचर’ लगाने के बाद, शोबन बोला — ‘मेम साहब, आप आराम करो!
मिसेज ग्रीनवुड, चारपाई पर लेटने लगी, तो एकाएक सुधि आई, आज तो शुक्रवार है. ग्रीनवुड साहब की खुशी का दिन. हर शुक्रवार को मिसेज ग्रीनवुड, ग्रीनवुड साहब की पुरानी पोशाकों को ‘ब्रश’ करती हैं और उनका ‘डिनर-सेट’ बहुत ही कोमलता के साथ साफ करती हैं. एक-एक स्मृति को स्पर्श कर रहे होने का अहसास.
शोबन कई बार ग्रीनवुड साहब की पुरानी पोशाकों को माँग चुका है. बोलता है -‘मेम साहब, बेकार में कपड़ा बर्बाद करने से क्या फायदा?’
मिसेज ग्रीनवुड तड़प उठती है – ओ शैतान, हम भी तो बेकार में तुम्हारा साथ अपना जिंदगी बरबाद किया! हमको क्या मिलने सका?
‘डिनर सेट’ में खाने की भी इच्छा प्रकट कर चुका है एक बार, मगर मिसेज ग्रीनवुड ने दुत्कार दिया – शोबन, साहब मर भी गया तो हमारा साहब है! तुम जिंदा भी है, तो साहब का नौकर है! अपना औकात से ज्यास्ती माँगेगा, हम नहीं देने सकता.
शोबन पाँव दबाने लगा था. शुरू से दबाता आया है. प्रभु ने कहा है, शैतान पाँवों के रास्ते सिर तक पहुँचता है.
मिसेज ग्रीनवुड उठने लगीं – ‘शोबन, बस करो बाबा, हमको साहब का कपड़ा ‘ब्रश’ करना. ‘डिनर-सेट’ भी साफ करेगा. बहुत ‘लेट’ हो गया हम आज.’
‘आपको तकलीफ है, मेम साहब! आप आराम से लेटिए. साहब का कपड़ा और ‘डिनर सेट’ सबकी सफाई मैं कर दूँगा. — शोबन अपनी अँगुलियों से हौले-हौले, मिसेज ग्रीनवुड के तलुए थपथपाते बोला.
‘अच्छा-अच्छा.’ अनमने-मन से झाड़ मिसेज ग्रीनवुड बोलीं – ‘यह हमारा मुँह का सामने साहब का सामान का सफाई करो. समझा?’
शोबन कपड़ों को ‘ब्रश’ से झाड़ रहा था. मिसेज ग्रीनवुड महसूस कर रही थीं, बहुत ही लापरवाही के साथ शोबन निबटा रहा है सारा काम. ज्यों-त्यों कपड़े निबटे, तो ‘डिनर-सेट’ की बारी आई.
बड़ी राइस-प्लेट शोबन से गिरी तो कुछ ऐसे ही ढँग से कि लगे, असावधानी में गिर गई. …मगर मिसेज ग्रीनवुड की आँखों से शोबन के चेहरे पर उभरी रेखाएँ छिप नहीं सकीं. उधर फर्श पर राइस-प्लेट गिरी, टुकड़े-टुकड़े बिखर गई. इधर चील की तरह मिसेज ग्रीनवुड शोबन पर टूट पड़ीं. अपनी ऊँची एड़ी की सेंडिल से उन्होंने शोबन को पागलों की तरह पीटना शुरू कर दिया – ‘ओ हिंदुस्तानी कुत्ता! यू इडियट! तुम हमारा साहब से ‘जेलसी’ करता है? तुम अपना औकात पर नहीं रह सकता? निकल जाओ हमारा बँगला के अंदर से. निकल जाओ बोलता हम तुमसे, यू डॉग! गेट आउट एटवंस! निकलो, नहीं तो हम तुमको शूट करने देगा!’
बेहद विकृति और अपमान से जलती आँखों से घूरता-घूरता, शोबन बाहर चला गया. घृणा, अपमान और क्रोध से उसे अपनी नस-नस फटती-सी लग रही थी. इधर-उधर से अपना कपड़ा लत्ता बटोरने के बाद, वह मिसेज ग्रीनवुड के कमरे तक आया और जोर से फर्श पर थूकता हुआ, अपार घृणा और क्रोध के साथ चिल्लाया — ‘गोरी चुड़ैल! आज से तेरे बँगले के अंदर थूकने को भी नहीं आएगा!’
बड़ी देर तक मिसेज ग्रीनवुड अपनी अंगार-जैसी जलती आँखों से घृणा-ईर्ष्या और क्रोध से, पिटे हुए आवारा कुत्ते की तरह बिलबिलाते उस अधबूढ़े खानसामे को जाते देखती रहीं. फिर पागल की तरह चिल्ला उठीं — जाने दो साला हिंदुस्तानी कुत्ता को! अभी इस बँगला के अंदर हम सिरफ दो जना रहेगा. सिरफ दो जना. एक हम, एक हमारा साहब! …और फिर उनके अट्टहास से एक बार सारा बँगला काँप उठा.
विक्षिप्तता कुछ कम हुई, तो मिसेज ग्रीनवुड ने डबडबाई-आँखों से खोजते-खोजते, राइस-प्लेट के सारे टुकड़े बीन डाले. उन टुकड़ों को चारपाई पर रखने के बाद, मिसेज ग्रीनवुड ने ‘डिनर-सेट’ के एक-एक ‘पीस’ को बड़े जतन के साथ तौलिए से पोंछा. एक असह्य व्यथा और आक्रोश के कारण, मिसेज ग्रीनवुड की सारी देह थर-थर काँप रही थी. प्रयत्न करने पर भी, वे अपने को संयत नहीं कर पा रही थीं. बड़ी मुश्किल से उन्होंने ‘डिनर सेट’ को आलमारी तक पहुँचाया कुंडी खोलकर, अंदर सँभालना ही चाहती थीं कि अचानक प्रभु ईसा-मसीह का आदमकद-चित्र नीचे गिर पड़ा और ‘डिनर-सेट’ का एक-एक ‘पीस’ टूटकर, बिखर गया!…
हतप्रभ-सी मिसेज ग्रीनवुड देर तक को एक ही जगह थर-थर काँपती खड़ी रह गईं. फिर एकाएक तेजी से आगे बढ़ीं. …और उन्होंने प्रभु ईसा-मसीह के चित्र को दीवार के सहारे खड़ा कर दिया. फिर प्रभु के पाँवों पर सिर रखकर बिल्कुल नादान बच्ची की तरह बिलखने लगीं — ‘ओ माई गॉड! अभी हम क्या करने सकता? इनसान हमको तकलीफ दिया, हम उसको घर से बाहर निकाल दिया… मगर तुम खुदा होकर उससे भी बड़ी तकलीफ दिया, तुमको कैसे घर से बाहर निकालने सकेगा?’
हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार-उपन्यासकार शैलेश मटियानी (Shailesh Matiyani) अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना में 14 अक्टूबर 1931 को जन्मे थे. सतत संघर्ष से भरा उनका प्रेरक जीवन भैंसियाछाना, अल्मोड़ा, इलाहाबाद और बंबई जैसे पड़ावों से गुजरता हुआ अंततः हल्द्वानी में थमा जहाँ 24 अप्रैल 2001 को उनका देहांत हुआ. शैलेश मटियानी का रचनाकर्म बहुत बड़ा है. उन्होंने तीस से अधिक उपन्यास लिखे और लगभग दो दर्ज़न कहानी संग्रह प्रकशित किये. आंचलिक रंगों में पगी विषयवस्तु की विविधता उनकी रचनाओं में अटी पड़ी है. वे सही मायनों में पहाड़ के प्रतिनिधि रचनाकार हैं.
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