नर्मदा भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है. नर्मदा को चिरकुंवारी नदी कहा गया है. नर्मदा प्रेम में स्वाभिमान और विद्रोह का प्रतीक मानी जाती है. नर्मदा का उद्गम स्थान अमरकंटक की पहाड़ियाँ हैं. यहीं से निकलने वाली नदी सोन भी है. दोनों नदियां एक ही उद्गम स्थल से निकलने के बावजूद एक दूसरे के विपरीत बहती हैं. इस संबंध में एक लोककथा यह है कि –
नर्मदा राजा मेखल की बेटी थी. राजा मेखल ने अपनी बेहद खूबसूरत बेटी के लिए यह तय किया कि वे अपनी बेटी का विवाह उसी के साथ करेंगे जो राजकुमार गुलबकावली का दुर्लभ फूल उनकी बेटी के लिए लाएगा. राजकुमार शोणभद्र गुलबकावली के फूल ले आया और उससे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हो गया.
नर्मदा ने अब तक शोणभद्र को देखा नहीं था लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं उसने खूब सुनी थी. जिन्हें सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी. विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा न गया.
उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची. जुहिला पर किसी को शक न हो इसके लिये नर्मदा ने जुहिला को सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर भेजा. जुहिला ने कपड़े पहने और चल पड़ी राजकुमार से मिलने.
शोणभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार शोणभद्र ने उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर ली. जुहिला की नियत में भी खोट आ गया. वह राजकुमार के प्रणय-निवेदन को ठुकरा न सकी. इधर नर्मदा घबराने लगी. दासी जुहिला के आने में बहुत देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी शोणभद्र से मिलने.
वहां पहुंचने पर राजकुमारी नर्मदा ने शोणभद्र और जुहिला को साथ देखा. वह अपमान की भीषण आग में जल उठी और तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी. फिर कभी ना लौटने के लिए.
राजकुमारी नर्मदा ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया और युवावस्था में ही सन्यासिन बन गई. रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आई, घने जंगल आए पर वह रास्ता बनाती चली गई. कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है.
शोणभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई.
भौगोलिक रुप से देखा जाये तो जैसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जुहिला का सोन नद से वाम-पार्श्व में दशरथ घाट पर संगम होता है. जुहिला नदी को इस क्षेत्र में दुषित नदी माना जाता है. नर्मदा अकेली सोन की उल्टी दिशा में बहती दिखाई देती है.
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