राधिका की जब आंख खुली कमरे में अनेस-मनेस हो रखी थी. अभी कुछ देर पहले ही तो आंख लगी थी लेकिन उसे लग रहा था पता नहीं कितना सो गई. आज दिप्पू दो महीने की छुट्टी काटकर जम्मू-कश्मीर जा रहा था. राधिका का मन इस बार उतना उदास नहीं था. उसे पता था कि इस बार छह महीने में ही वापस आने वाला है. अब दिप्पू की पलटन तीन साल के लिए ठूली गाड़ आ रही थी. राधिका को छह महीने बाद दोहरी खुशी मिलने वाली थी. उसकी बहू संगीता कल ही पिथौरागढ़ से अल्ट्रासाउंड कराकर लौटी थी. अल्ट्रासाउंड कराकर पूरे तीन दिन बाद लौटने पर दिप्पू और संगीता को उसने बड़ी नड़ाक लगाई थी. डांट वह दिप्पू को रही थी सुना संगीता को. संगीता ने पिछले साल ही बॉटनी से एमएससी किया था. लेकिन अपनी पांच पास सास के आगे उसने इसका कभी गुमान नहीं किया. संगीता ने अकेले में भी राधिका को कभी पलटकर जवाब नहीं दिया, आज तो दिप्पू साथ था. शाम को खाना खाने के बाद जब तीनों सग्गड़ घेरकर बैठे थे तब संगीता ने राधिका को सफाई देते हुए कहा, ईजा परसों ये अल्ट्रासाउंड कराने में मेरे साथ नहीं होते तो पता नहीं और कितने दिन लगते. इन्होंने कहीं से जुगाड़ लगाया. तब डॉक्टर ने मुझे किसी और के ही नंबर पर बुला लिया. ऐसा जो क्या हो रहा ठहरा वहां? राधिका ने पूछा. (Story by Rajiv Pandey)
दिप्पू गुस्से में बोला, इन नेताओं को तो गांव में घुसने नहीं देना चाहिए. दो-दो जिलों के लिए एक डॉक्टर रखा है… ने. सिबौ-सिब कहते हुए संगीता ने उस महिला का किस्सा शुरू किया जो लाइन में धक्का लगने के कारण घच करके पेट के बल गिर गई थी. दिप्पू ने बताया अस्पताल के गेट में वो जूस वाला कह रहा था सात महीने से बेचारी हर बुध-बृहस्पतिवार को आ रही है अल्ट्रासाउंड कराने, अब तक नंबर नहीं आया. हमारा तो तीन महीने में ही पहला अल्ट्रासाउंड हो गया. वो बता रहा था कि उसका पति भी फौजी था. डेढ़ महीने पूरी जान लगाकर भी घरवाली का अल्ट्रासाउंड नहीं करा पाया. इतने के लिए तो पिथौरागढ़ ठहरा ये. आजकल नहीं आ रहा है फौजी. छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ में था शायद छुट्टी पूरी हो गई होगी बेचारे की. राधिका ने पूछा गिरने के बाद क्या हुआ फिर उसका. क्या होता उतने जोर से गिरी थी. ककिया देवर बेचारा हल्द्वानी को ले जा रहा था बल, अल्मोड़ा में ही खून बहुत बहने लगा. बेचारे फिर अल्मोड़ा अस्पताल ले गए बल. वहां भी डॉक्टर नहीं हुआ. नर्स ने इंजेक्शन लगाया लेकिन क्या होने वाला हुआ सबके लिए एक ही इंजेक्शन हुआ हमारे अस्पतालों में. चिल्लाती रही. तीन-चार घंटे बाद डॉक्टर आया कह रहे थे और उसने सीधे कह दिया बल, बच्चा तो मर गया है. जल्दी हल्द्वानी ले जाओ नहीं तो इनके लिए भी खतरा है. इसके बाद बेचारे हल्द्वानी भागे. कहीं प्राइवेट अस्पताल में आईसीयू में रखा है कह रहे थे. रोज 15 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं. पता नहीं अपने घरवाले के आने तक बचती भी है नहीं? ये सुनते ही राधिका को ध्यक हो गई. उसने कहा, ऐसा मत कह रे. राधिका के रोंगटे खड़े हो गए थे. मन ही मन उसने गोल्ज्यु से मन्नत की मेरी संगीता और दिप्पू के साथ ऐसा कभी न हो. इसके बाद उसका वहां बैठने का मन नहीं हुआ. उसने कहा चलो सो जाओ कल सुबह इसे जाना भी तो है. दिप्पू ने कहा तू सो जा, हम अभी सोते हैं. इसके बाद राधिका सो गई.
जब उठी तो उसने जाले से बाहर देखा तो सग्गड़ में पड़े कोयले अब भी हल्के सुर्ख थे. उसने फटाफट खजूरे तलने शुरू किए. खजूरे बनाने के बाद चावल के माणे बनाने लगी. उसका बस चलता तो वह दिप्पू के लिए छह महीने का खाना पैक कर देती. बर्तनों की खड़बड़ सुनकर संगीता भी उठ गई. संगीता ने बाहर सग्गड़ में हल्के सुर्ख रह गए कोयलों में नयी लकड़ियां लगाकर फिर जान फूंकी और पानी गरम होने रख दिया. आज दिप्पू का उठने का मन ही नहीं हो रहा था. दो महीने ईजा और संगीता के साथ कब बीते उसे पता ही नहीं चला. सोच रहा था किसी तरह कुछ छुट्टी और बढ़ा पाता? लेकिन फौजी को ऐसा सुकून कहां? संगीता ने फटाफट तैयार हो जाओ ईजा ने नाश्ता लगा दिया है कहकर उसे विचारों की दुनिया से बाहर निकाला और गोसल की तरफ भेजा. दिप्पू जब नहाकर निकला तो ईजा ने कहा एक बार जल्दी से गरदेवी के थान में होया. दिप्पू अभी थान से भेंट चढ़ाकर भी नहीं लौटा था ऊपर से नबी उस्ताद आवाज लगाने लगा. संगीता ने कहा बस आ गए, आ गए. जल्दबाजी में ही सही राधिका ने जबरदस्ती तीन माणे और दो रोटी उसे खिला दी. बैगों की संख्या देखकर दिप्पू ने कहा ईजा इतनी पुन्दरे कहां ले जाऊंगा, ट्रेन में खाना मिलता है. लेकिन राधिका की जिद के आगे उसकी एक नहीं चली फिर संगीता ने भी कहा ईजा ने इतने प्यार से बनाया, ले जा. सड़क में जाने के लिए गांव की एक धार पार करनी पड़ती थी. पिठियां लगाने के बाद संगीता, ईजा और गांव के कुछ लोग सड़क तक दिप्पू को छोड़ने आए. नबी उस्ताद ने फटाफट सामान छत्त में बांधा. दिप्पू जैसे ही ईजा के पैर छूने के लिए झुका वे फफक पड़ी. ईजा का फफकना देख संगीता की पलकें भी भीग गई. दिप्पू ने सट से ईजा को गले लगा लिया. भरे गले से बोला फिर वही हरकत करती हैं हां. चुप हो जा इस बार तो तीन साल के लिए आ रहा हूं. इसके बाद संगीता ने ईजा को संभाल लिया और दिप्पू नम आंखें छिपाते हुए जीप में बैठ गया. एक फौजी परिवार का बिछोह देख नबी उस्ताद की भी आंखें भर आईं. पंडा तक दिप्पू गुमसुम ही बैठ रहा. नबी उस्ताद ने ही बात शुरू करते हुए कहा दादी कब खाना है फिर नवान का भात. दिप्पू ने मुस्कुराते हुए कहा पांच-छह महीने हैं भाई. लेकिन इस बीच जब भी बजार आने के लिए संगीता को गाड़ी की जरूरत पड़ेगी वे तुझे फोन करेगी तो तुरंत पहुंच जाना. तुम चिंता मत करना दादी हम बोज्यु और ठुलिज्जा के लिए हर समय उपलब्ध हैं. नबी उस्ताद की आत्मीयता देख दिप्पू आश्वस्त हो गया. सिल्थाम में सवारी उतारकर दोनों नीचे बस अड्डे पहुंच गए थे. नबी ने टनकपुर जा रही एक रोडवेज की बस में दिप्पू का सामान चढ़ा दिया. दिप्पू से विदा लेते हुए नबी उस्ताद ने फिर कहा, दादी घर की चिंता नहीं करनी ठहरी तुम पाकिस्तानियों को ठोको यहां हम संभाल लेंगे. दिप्पू मुस्कुराते हुए बस में चढ़ गया.
बस चलते ही उसने संगीता को फोन लगाया. पिथौरागढ़ से निकल गया हूं हां! ईजा क्या कर रही है, मेरे आने के बाद तो नहीं रो रही थी? संगीता ने जवाब दिया खिड़की में बैठकर रोड की तरफ देखी हैं. चिंता मत करो अभी थोड़ी देर में ठीक हो जाएंगी. दिप्पू ने कहा अब तो अगले महीने 18 तारीख को है न तेरी अल्ट्रासाउंड की डेट. उस दिन सुबह जल्दी जाकर नंबर लगा लेना यार. मैंने नबी को बोल दिया है. सवारी नहीं होंगी तो पूरी गाड़ी के पैसे तू ही दे देना लेकिन समय से पहुंच जाना पूरा दिन तो धक्के नहीं खाने पड़ेंगे. ठीक है, ठीक है चलो फोन रखो ईजा आवाज लगा रही है कहकर संगीता बगैर फोन काटे कुछ सेकेंडों के लिए खामोश हो गई, दिप्पू भी खामोश रहा. दोनों की आंखें फिर भीग गई थी. दिप्पू कुछ बोलता तब तक मोबाइल के सिग्नल ही चले गए.
फोन कटते ही संगीता ईजा के पास पहुंची. ईजा ने कहा आज दिन में कुछ बनाने की जरूरत नहीं है सुबह का बहुत बचा है इसे ही खा लेंगे. इसके बाद ईजा गोठ में चली गई. जबसे ईजा को पता चला था भौ होने वाला है तब से उसने संगीता का गोठ में जाना बिल्कुल बंद करवा दिया था. कहती थी रातू (गाय) बहुत लात मारती है. गोठ के बाद ईजा सीधे जंगल चली गई और फिर शाम को ही लौटी.
आज बड़ा सुनापन था घर में. दोनों का मन बड़ा उचाट हो रहा था. संगीता ने ईजा से पूछकर बड़े बेमन से आलू-टमाटर की सब्जी बनाई. कुल छह रोटियां बनी थी उसमें भी तीन बच गईं. खाना खाकर संगीता ने बर्तन धोए और ईजा अपने कमरे में सोने चली गई.
सुबह उठते ही संगीता ने दिप्पू को फोन लगाया. दिप्पू दिल्ली पहुंच गया था. उसने बताया कि तैयार होकर एयरपोर्ट ही जा रहा हूं. दिन तक श्रीनगर पहुंच जाऊंगा. दिन में तक दिप्पू अपनी पलटन में पहुंच गया. पहुंचते ही दोस्तों ने ठिठोली शुरू कर दी. शांत करने के लिए दिप्पू ने माणे और खजूरे निकालकर सामने रख दिए. थोड़ी देर गपशप के बाद सब अपनी ड्यूटी में चले गए. दिप्पू के बैरक में ही अस्कोट का रमेश पाल भी रहता था. पाल ने पूछा और क्या चल रहा है घर में. दिप्पू ने कहा कुछ नहीं सब ठीक है. अब दिप्पू ने पलटकर पूछा कैसा हो रहा है आजकल माहौल. पाल बोला वही ठहरा भाई कब किस तरफ से हो जाए ठियाईं. पाल ने बताया कि अगले महीने वे भी छुट्टी जाएगा. दिप्पू ने कहा ठीक हो गया कैंटीन को कुछ सामान ले जा देगा. देर रात तक दोनों की गप्प चलती रही. दोनों को पता ही नहीं चला कब सो गए? सुबह उठते ही दिप्पू ने संगीता को फोन लगाकर घर का हालचाल लिया. दिप्पू ने संगीता को बताया कि आज से नाइट ड्यूटी है एक हफ्ते तक रात में बात नहीं हो पाएगी. संगीता ने कहा कोई नहीं अपना ध्यान रखना. इसके बाद दिप्पू नहाने के लिए निकल गया और संगीता भी नाश्ता बनाने के लिए रसोई में चली गई. नाश्ता बनाकर उसने ईजा को आवाज लगाई. राधिका बोली आज मन पता नहीं क्यों उचाट हो रहा है. दिप्पू का फोन आया पूछा? कहा अब आएगा तो मेरी भी बता करा देना तो. संगीता ने तुरंत दिप्पू का फोन लगा दिया लेकिन फोन उठा नहीं. संगीता ने कहा शायद नाह रहे होंगे. नाश्ता करके राधिका गोठ में चली गई और वहीं से फिर जंगल निकल गई. उसके जंगल जाने के बाद दिप्पू ने फोन कर पूछा हां क्या कह रही थी. संगीता बोली, कुछ नहीं ईजा बात करना चाह रही थी लेकिन अब तो जंगल चली गई. दिप्पू ने कहा चल ठीक है शाम को बात करा देना फिर तो मैं ड्यूटी में चला जाऊंगा. शाम को राधिका लौटी तो मोबाइल में सिग्नल ही नहीं ठहरे. रात में खाने के बाद राधिका ने कहा अब लगा तो दिप्पू को फोन. संगीता ने कहा ईजा अब सुबह बात होगी आज उनकी नाइट ड्यूटी है. वहां मोबाइल नहीं लेजा सकते बल. ओ हो. इसके बाद दोनों अपने कमरे चले गए. बिस्तर में जाने के बाद भी राधिका की उठपड़ कम नहीं हुई. अचानक स्यालों ने कुकाट शुरू कर दी. इससे राधिका की बेचैनी और बढ़ गई. उसने खिड़की खोलकर बाहर देखा तो बिल्कुल चुपुक हो रही थी. वह फिर रजाई में घुस गई और दिप्पू के बारे में सोचने लगी.
ईजा से सैकड़ों मील दूर दिप्पू अपनी यूनिट की टुकड़ी के साथ कांबिंग कर रहा था. रात का डेढ़ बज रहा था जब सभी साथी एक बड़े से पत्थर के नीचे पानी पीने के लिए बैठे. इसी बीच पहाड़ी से पत्थर गिरने की आवाज आई तो सब अलर्ट हो गए. वे लोग कुछ समझ पाते दूसरी तरफ से फायरिंग शुरू हो गई. सभी साथियों ने पत्थर के पीछे आड़ ले ली. भागते वक्त एक गोली दिप्पू की कमर में लग गई. भागने के कारण किसी को भी दिप्पू की आह नहीं सुनाई दी. उसने खुद भी किसी को कुछ नहीं बताया. करीब एक घंटे तक दोनों तरफ से फायरिंग होती रही पता नहीं कितना गोला-बारूद लेकर आए थे. धीरे-धीरे गोलियों की तड़तड़ाहट कम हुई तो दिप्पू के साथियों ने जगह बदलने का फैसला लिया. जगह बदलने के लिए दौड़ते वक्त जब दिप्पू गश खाकर गिरा तो साथियों को पता चला कि उसे गोली लग गई है. किसी तरह वे उसको घसीटकर सुरक्षित जगह ले गए.
उजाला होने से कुछ देर पहले जंगल में गहरा सन्नाटा पसर गया था. बारूद की बू और गोलियों की तड़तड़ाहट से घबराकर जानवर भी उं-चूं नहीं कर रहे थे. दिप्पू बेसुध सा पड़ा ईजा और संगीता के बारे में सोच रहा था. ईजा उठ गई थी. उठते ही आज वे सीधे संगीता के कमरे में पहुंची और दिप्पू को फोन लगाने के लिए कहने लगी. संगीता ने फोन लगाया तो नॉट रीचेबल आ रहा था. संगीता ने कहा अभी ड्यूटी से नहीं आए होंगे. राधिका बगैर कुछ बोले वहां से चली गई. नहाकर लौटने पर उसने फिर पूछा आया फोन. संगीता ने कहा ईजा आएगा तो मैं पहले आपकी ही बात कराऊंगी. इसके बाद संगीता नाश्ता बनाने चली गई. नाश्ता तैयार होने के बाद संगीता ने ईजा को आवाज लगाई तो राधिका ने खाने से मना कर दिया. संगीता के जिद करने पर भी उसने कुछ नहीं खाया. संगीता ने ईजा को मनाने के लिए फिर दिप्पू को फोन लगाया लेकिन अब भी मोबाइल आफ था. उसे लगा आकर सो गए होंगे उठेंगे तब फोन कर लेंगे.
दिप्पू सोया नहीं था बेसुध पड़ा था. किसी तरह उसके साथी उसे बैरक तक लाए थे. डॉक्टर ने दिप्पू के कपड़े उतारकर देखते ही कह दिया था बाहर ले जाना पड़ेगा. जहर शरीर के बड़े हिस्से में फैल चुका है. फटाफट हेडक्वार्टर संपर्क किया गया और दिप्पू को बाहर ले जाने की तैयारियां तेज होने लगी. दिप्पू ने हल्की आंख खोली और पाल को बुलाकर लाने के लिए कहा. पाल जैसे ही पहुंचा दिप्पू की आंखें गीली हो गईं. पाल ने हौसला दिया, कुछ नहीं होगा यार टेंशन मत ले. बता क्या कह रहा है? दिप्पू के मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे. होंठों की टपटपाहट से ही पाल समझ गया वो ईजा के बारे में कुछ कहना चाह रहा था. इसके बाद कुछ पलों के लिए दिप्पू ने और आंखें मूंद ली. उसके आंखें मूंदते ही पाल की आंखों में पानी भर आया. पाल ने आंखें पोंछने के लिए जैसे ही मुंह फेरा फिर बुदबुदाहट होने लगी.
दिप्पू अल्ट्रासाउंड जैसा कुछ कह रहा था लेकिन पाल समझ नहीं पाया. कुछ समझ पाता तब तक डॉक्टर ने बाहर जाने के लिए कह दिया. पाल अल्ट्रासाउंड के बारे में सोच ही रहा था कि डॉक्टर तेजी से बाहर आते हुए दिखाई दिया. पाल दौड़कर डॉक्टर के पास पहुंचा. डॉक्टर बिना कुछ बोले निकल गया और पाल वहीं रखी कुर्सियों में घम करके बैठ गया.
दिप्पू का फेसबुक पर लगा वो फोटो उसकी आंखों में घूमने लगा जिसमें वह अपनी घरवाली और ईजा को अंगाल डालकर बैठा हुआ है. दिप्पू की ईजा और बीवी को जब उसके शहीद होने की खबर मिलेगी तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ये सोचकर पाल सिहर उठा. पाल की आंखों के सामने ही दिप्पू का पार्थिव शरीर उसकी जन्मभूमि पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई थी. पिथौरागढ़ जिला प्रशासन को इसकी सूचना दे दी गई थी.
डीएम ने तुरंत एसडीएम को गांव जाकर परिवार को सूचित करने के आदेश दिए. एसडीएम ने तुरंत गांव के प्रधान पितांबर गुरु से संपर्क कर दिप्पू के शहादत की सूचना दी. पितांबर गुरु ने साफ मना कर दिया, साहब मैं अकेले जाकर नहीं बता सकता, आप लोग आओगे तभी चलेंगे. पितांबर गुरु के फोन रखते ही शहादत की खबर गांव में आग की तरह फैल गई. जिसने सुना उसका चेहरा मुर्झा गया. पितांबर गुरु ने अपनी बीवी जानकी को फोन किया तैयार रहना अभी दिप्पू लोगों के घर जाना है. उसने कहा इतनी रात में क्या है वहां? इसके बाद गुरु ने जो जवाब दिया वे सुनकर उनकी घरवाली सुन रह गई. कुछ देर बाद बोली, सिबौसिब अभी अंधेरा होने से पहले राधिका मिली थी और कह रही थी आज सुबह से दिप्पू से बात नहीं हो पा रही है. ईजा का मन हुआ समझ गया होगा हो. पितांबर गुरु ने एसडीएम साहब आ गए हैं कहते हुए फोन काट दिया. एसडीएम ने गुरु से कहा ऐसे सबका एक साथ अचानक जाना ठीक नहीं रहेगा. उनके घर से किसी पुरुष को फोन करके यहीं बुला लीजिए. गुरु ने कहा, पुरुष कोई नहीं है उनके घर पर. दिप्पू के एक ही चाचा हुए वो खटीमा रहते हैं, उनको फोन में बता दिया है सुबह तक पहुंच पाएंगे. एसडीएम ने राय दी ऐसा है तो पहले कुछ महिलाओं को भेजना पड़ेगा. प्रधान ने तुरंत अपनी बीवी को फोन किया और कहा मैं बाद में आता हूं तू छोटी को लेकर दिप्पू लोगों के घर पहुंच. गुरु की बीवी ने तुरंत अपनी देवररानी को आवाज दी और दिप्पू के घर की तरफ चल दिए.
संगीता खाना खाने के बाद टीवी देख रही थी. गुरु की बीवी ने बाहर से ही आवाज दी. संगीता ओ संगीता! ये सुनते ही संगीता तुरंत बाहर आ गई और बोली अरे! जानकी चाची इतनी देर रात. जानकी ने कहा, कहां हैं दीदी? संगीता ने कहा अभी गोठ गई हैं. आज गाय शाम से ही अड़ा रही है, चुप ही नहीं हो रही. संगीता ने दोनों को अंदर बुला लिया और चाय बनाने के लिए पूछने लगी. जानकी और उसकी देवरानी दोनों के मुंह से एक साथ ही निकला नहीं-नहीं. थोड़ी देर में राधिका भी आ गई. जानकी और उसकी देवरानी को इतनी रात में घर पर देखकर वह भी चौंकी और आने की वजह पूछने लगी. वजह बताने की हिम्मत दोनों में किसी की नहीं हुई तो उन्होंने बात काट दी. इसके बाद राधिका ने संगीता से कहा जा चाची लोगों के लिए चाय तो बना. संगीता चाय चढ़ाकर फिर दिप्पू का फोन लगाने लग गई. शाम से संगीता भी बेचैन थी. सुबह से वह यही सोच रही थी कि अब आएगा फोन, अब आएगा लेकिन आज पूरे दिन फोन नहीं आया था. संगीता ने अंदर जाले से ही देखा कि कुछ लोग टार्च लिए उनके घर की तरफ चले आ रहे थे. रसोई के दरवाजे से चाय लेकर जैसे संगीता कमरे में घुसी सामने के दरवाजे से पितांबर गुरु दो अनजाने लोगों के साथ कमरे में प्रवेश कर रहे थे. राधिका के चेहरे को पढ़ते हुए गुरु ने कहा संगीता ये एसडीएम साहब हैं डीडीहाट से आए हैं. संगीता के हाथों में चाय थी इसलिए उसने सिर झुकाकर अभिवादन किया. राधिका के मन में आशंकाएं गहराती जा रही थीं. एसडीएम साहब और अन्य को बैठने के लिए कुर्सी दी गई. अब कमरे में सन्नाटा पसर गया था. सन्नाटे को तोडते हुए संगीता ने कहा बताईए कैसे आना हुआ? पितांबर गुरु बोले संगीता एसडीएम साहब दिप्पू के बारे में कुछ खबर लेकर आए हैं. संगीता ने कहा कैसी खबर? वो ठीक तो हैं न? एसडीएम ने कहा वो अब नहीं हैं. उनकी शहादत को देश याद रखेगा. ये शब्द सुनते ही राधिका फट पड़ी और संगीता पथरा गई. महिलाओं के चीखने की आवाज पहाड़ों से टक्कराकर दिप्पू के घर में वापस आ रही थीं. एसडीएम साहब ने बताया कि कल दो बजे दीपक जी का पार्थिव शरीर बाय एयर पहुंच जाएगा. आप लोग जैसे चाहें अपनी तैयारी कर लीजिएगा. भीतर राधिका का रोना रुक ही नहीं रहा था और संगीता थी कि आंखों से एक आंसू नहीं झर रहा था. आंगन में गांव के लोग जमा होने लगे थे. आंगन में धूनी जैसी लगाकर लोग बैठ गए थे. सबकी जुबान पर एक ही नाम था दिप्पू. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि चार दिन पहले घर से निकला दिप्पू अब उनके बीच नहीं रहा. राधिका पूरी रात रोती रही. संगीता की आंखों से अब तक एक आंसू नहीं गिरा था. वे एकटक उस तस्वीर को देख रही थी जिसमें दिप्पू वर्दी पहने रायफल पकड़े खडा था.
राधिका और संगीता के जीवन की सबसे भयानक रात कट चुकी थी लेकिन अंधेरा अब छंटने वाला नहीं था. गोठ में गाय लगातार अड़ा रही थी लेकिन राधिका बेसुध थी. संगीता की तरह अब उसके आंखों में आंसू सूख चुके थे. आंगन में अब पड़ोसी गांवों के लोग भी जमा होने लगे थे. दिप्पू का पूरा गांव ठहर सा गया था. गांव में हर किसी की जुबां पर बस उसी का नाम था. सिबौ-सिब यार बेचारा अपने बच्चे को भी नहीं देख सका की टीस लोगों को थी. दिप्पू के बाहने आज पुराने शहीदों की भी चर्चा हो रही थी. दिन चढ़ता जा रहा था.
इसी बीच खबर आई कि दिप्पू का पार्थिव शरीर पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय पहुंच गया है. पिथौरागढ़ से पूरा रेला दिप्पू के गांव की तरफ चल पड़ा था. अक्सर खिलखिलाता हुआ घर पहुंचने वाला दिप्पू आज तिरंगे के आगोश में शांत लेटा हुआ था. लेकिन उसके गांव के आसपास की घाटियां आज जब तक सूरज चांद रहेगा, दीपक तेरा नाम रहेगा के उद्घघोष से भर गई थीं. चोटियों पर भी आज दिप्पू का ही नाम गूंज रहा था. उद्घोष अब राधिका और संगीता के कानों तक भी पहुंचने लगा था. राधिका को भरोसा था कि अपनी ईजा को जोर से रोता देख दिप्पू जरूर उठ खड़ा हो जाएगा. क्योंकि दिप्पू अपनी ईजा की नम आंखें भी बर्दाश्त नहीं थीं. पार्थिव शरीर उस जगह पहुंच चुका था जहां से कुछ दिन पहले दिप्पू रवाना हुआ था. गांव के लोग भीड़ का रेला देखकर दंग थे. गांव के युवा दुखी थे लेकिन गौरवान्वित भी महसूस कर रहे थे. दिप्पू के घर के ऊपर से गुजरने वाली सड़क में पैर रखने को जगह नहीं थी. ताबूत को सीधे उस आंगन में ले जाया गया जहां दिप्पू ने कभी पहला कदम रखा था. तिरंगे में लिपटा दिप्पू आंगन में पहुंच चुका था लेकिन संगीता की आंखों में अब तक आंसू नहीं था. लोगों का कहना था कि उसे रोना चाहिए. यदि रोई नहीं तो गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ-साथ उसे भी खतरा हो सकता है. राधिका और संगीता दोनों को आंगन में ले जाया गया. दिप्पू का पार्थिव शरीर देख राधिका फट पड़ी. महसूस करने वालों ने ईजा की दहाड़ से पहाड़ों को हिलता हुआ महसूस किया. राधिका अपने दिप्पू से इस कदर लिपटी थी मानो उसे दोबारा अपने गर्भ में रख लेना चाहती हो. संगीता अब तक पथराई हुई थी. लोग उसे एहसास करा रहे थे कि अब वही गर्भ में पल रहे बच्चे की और राधिका का एक मात्र सहारा है. सभी बातें संगीता पर बेअसर थी. रो-रोकर हार चुकी राधिका इस बार गलत साबित हुई थी. इस बार दिप्पू हिला तक नहीं, कहां तो ईजा को गले लगाना. नाउम्मीद हो चुकी राधिका को लगा संगीता की दहाड़ें सुन शायद दिप्पू उठ जाए. उसने संगीता को झकझोरा. ईजा के झकझोरते ही संगीत कुछ देर भावुक हुई और फिर उसका गुबार फट पड़ा. संगीता के आंखों से निकले आंसुओं की धार इतनी तेज थी वहां मौजूद भीड़ की आंखें भी आंखें भी गीली हो गईं. संगीता दिप्पू से लिपटकर बेइंतिहां रोई और लोग सिबौ सिब कहते रहे. सूरज अब बहुत देर नहीं रुकने वाला था. पार्थिव शरीर को उठाने की तैयारी शुरू हो गई थी. घाट गांव से करीब 18 किमी दूर था. अंतिम विदाई की बेला आ गई थी. हर पल राधिका और संगीता पर वज्रपात की तरह गुजर रहा था. नारे एक बार फिर गूंजने लगे. पार्थिव शरीर उस आंगन की मिट्टी से अलग हो रहा था जिसने पहली बार दिप्पू को जीवन का एहसास कराया था. मां के दूध के बाद इसी मिट्टी का स्वाद ही पहली बार उसने चखा था. पहली बार जब दिप्पू को चोट लगी थी यही मिट्टी दवा बनी थी.
पार्थिव शरीर उठ चुका था. दिप्पू को कंधा देने के लिए होड़ लगी थी. दिप्पू जा रहा था. राधिका और संगीता की चीखें दिप्पू के जयकारों के बीच गुम हो गई थी. लोग दोनों को घर के भीतर ले जाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वे दिप्पू के साथ जाने पर आमादा थीं. दोनों अब घर में जाने से डर रहे थे. घर का हर कमरा उसकी यादों से भरा था. जो यादें कल तक जीने का सहारा थीं आज वे बेहद डरावनी लगी रही थीं. नारों की गूंज अब धीरे-धीरे मंद पड़ रही थी. सूरज ढ़ल रहा था. चारों तरफ मातम पसरा था. गांव के उन्हीं घरों में आज चूल्हा जला जहां बच्चे थे. दिप्पू के घर से आज जानवरों के अलावा किसी की आवाज नहीं आ रही थी. रात गहरा चुकी थी. सब लोग चुके थे लेकिन राधिका और संगीता के आंखों में नींद नहीं थी. दिप्पू के बिना जिंदगी और दिप्पू के साथ जिंदगी के अंतर से दोनों दहशत में थीं. तमाम रातों की तरह इस रात को भी बीतना था. रात बीती, दिन बीते. भीड़ छंट चुकी थी. वादे करके नेता-मंत्री भी लौट चुके थे. नारे लगाने वालों की भी अपनी जिंदगी होती है. वह उसमें व्यस्त हो गए थे. अब हकीकत से संगीता और राधिका को ही लड़ना था.
18 तारीख आ चुकी थी. आज जब संगीता अल्ट्रासाउंड कराने घर से निकली तो उसकी आंखें डबडबा गईं. पिछली बार दिप्पू साथ था. संगीता के जाते वक्त राधिका चूल्हे से बाहर ही नहीं आई. संगीता ने भी कुछ नहीं कहा, उसे पता था कि ईजा भीतर रो रही होगी. वे ईजा के भीतर दबे सारे गम को बाहर आने देना चाहती थी. नबी उस्ताद की गाड़ी संगीता का इंतजार कर रही थी. नबी ने दिप्पू और बोज्यु का हमेशा से ही बड़ा सम्मान करता था. अब इज्जत और बढ़ गई थी. उसने बड़े सम्मान से संगीता को फ्रंट सीट पर बैठाया. अक्सर उस सीट पर नबी तीन-तीन लोग बैठाता था आज उसने संगीता के गर्भ को देखते हुए किसी को नहीं बैठने दिया. वह नहीं चाहता था कि बोज्यु को कोई दिक्कत हो और दिप्पू की आत्मा किसी भी तरह से दुखी हो. नबी ने कहा बोज्यु आप डॉक्टर को दिखाओ मैं दूसरे चक्कर में यहीं से आपको ले जाऊंगा. संगीता अस्पताल में पहुंची तो भारी भीड़ थी. बैठने को पर्याप्त कुर्सियां न होने के कारण कई महिलाएं जमीन में बैठी थीं. संगीता पर्ची कटाते ही समझ गई कि आज अल्ट्रासाउंड संभव नहीं है. उसे 99वां नंबर मिला था. अकेला डॉक्टर कितने अल्ट्रासाउंड करेगा. संगीता भी जमीन में बैठकर अपनी बारी का इंतजार करने लगी. पिछली बार दिप्पू साथ तो इंतजार भी इंतजार नहीं लगा था. आज वह बेहद उदास थी. 40 अल्ट्रासाउंड करने के बाद डॉक्टर साहब लंच के लिए चले गए. अब बारी आना और मुश्किल लग रहा था. लंच के बाद डॉक्टर ने जितनी तेजी से कर सकता था फिर अल्ट्रासाउंड शुरू किए. संगीता के मोबाइल की घंटी बजी नबी का फोन आ रहा था. उसने पूछा बोज्यु कितना समय लगेगा. संगीता ने कहा कुछ नहीं कह सकते. नबी बोला जब आपका काम हो जाए फोन कर देना, मैं अब बाजार में ही हूं. साढ़े चार बज गया था अब संगीता का से पहले 22 लोगों का अल्ट्रासाउंड होना था. संगीता फार्मासिस्ट से मिली. उसने बताया बहन जी अब मुश्किल लग रहा है. डॉक्टर साहब को इसके बाद करीब 100 मील दूर जाना है. अब वे अगले बृहस्पतिवार को ही आ पाएंगे. संगीता ने फार्मासिस्ट से गुहार लगाई कि अगले बृहस्पतिवार को वे उसका पर्चा पहले लगा सकते हैं तो उसने साफ मना कर दिया. संगीता ने दूर गांव होने का वास्ता दिया लेकिन वे नहीं माना. उसने संगीता को बताया यहां तो हर कोई दूर से ही आता है. कई लोग तो पिथौरागढ़ में अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कमरे भी किराये में लेकर रहते हैं. आप भी यहीं किराये में रहकर कराओ अल्ट्रासाउंड. इसके बाद संगीता बगैर कोई बात करे अस्पताल के बाहर आ गई. उसने नबी को फोन लगाया तो नबी ने कहा आप सिल्थाम आ जाओ मैं गाड़ी घुमाकर वहीं आता हूं.
नबी के पहुंचने से पहले संगीता को पाल मिल गया. पाल को देखते ही संगीता की आंखें डबडबा गईं. किसी तरह उसने आंसू रोके. पाल की आंखें भी गीली हो गई थीं. पाल ने ईजा का हालचाल पूछा. संगीता ने बताया ईजा अब बहुत कमजोर हो गई हैं. करीब आधे घंटे दोनों बातें करते रहे. नबी उस्ताद पहुंच चुका था. विदा होते हुए पाल ने पूछा भाभी आप कैसे आई पिथौरागढ़. संगीता ने बताया अल्ट्रासाउंड कराने आई थी. आज नहीं हो पाया. बड़ी भीड़ थी. पिछली बार वे थे तो किसी तरह जुगाड़ लगाकर करवा गए थे. अब आगे क्या होगा पता नहीं? अब संगीता जा चुकी थी. पाल स्तब्ध खड़ा था. देश के खातिर जान देने वाले दिप्पू की बीवी अल्ट्रासाउंड के लिए भटक रही थी. आज वे समझ पाया था कि दिप्पू प्राण जाते वक्त अल्ट्रासाउंड क्यों कह रहा था?
राजीव पांडे की फेसबुक वाल से, राजीव दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक हैं.
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