मोष्ट्या सोरघाटी के प्रमुख लोक देवताओं में से एक हैं. जैसा कि एक अलिखित परंपरा हमारे समाज में रही है कि हम अपने महान देवस्वरूप अवतारी महापुरुषों को वैदिक देवी देवताओं से जोड़कर देखते हैं. किसी को शिव, किसी को वीरभद्र, किसी को महाकाली, किसी को कालभैरव तो किसी को इंद्र आदि-आदि. यहां तक कि कहीं-कहीं तो लाटा या लटुवा देवता को लटेश्वर, मनैन को मनमहेश, नंङथर को नागार्जुन जैसे नामकरणों से अलंकृत कर वैदिक देवी देवताओं का नाम दे दिया गया है जबकि मेरा व्यक्तिगत मानना है यह सब हमारे प्राचीन पर्वतीय समाज के महापुरुषों की आत्माएं हैं जिन्हें उनकी विशेष सिद्धियों के बल पर देवत्व का स्थान प्राप्त हुआ और कालांतर में पूजे जाने लगे. खैर यह विवादित विषय हो सकता है इसलिए मूल विषय पर आता हूँ.
(Stories Mostamanu Pithoragarh)
ब्रिटिश दासता के काल में एक गोरा ईसाई अफसर जब ईसाई मिशनरी के काम से चंडाक के मुआयने पर था तो उसे मोष्टामानू में हवनयज्ञ के दरम्यान मोष्ट्या के डंगरिया को आशीर्वचन देते देखा तो उसने मुनादी करवा दी- अगर तेरे देवता में दम है तो मुझे 24 घंटे के भीतर अपनी शक्ति दिखाये, चमत्कार दिखाये वर्ना अंधविश्वास फैलाने, भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाने के मामले में, मैं तुझे अंदर यानी हवालात में बंद कर दूँगा. डंगरिया ने तुरंत उत्तर दिया- धेक्छु पैं तैं गोठीछै कि मैं गोठींछु अर्थात तू अंदर होता है या मैं अंदर होता हूँ?
बात आयी गयी हो गयी जब अंग्रेज अफसर वापस अपने आवास लाउडन किले यानी पुरानि तहसील भवन को लौट रहा था तो अचानक चंडाक और नगर के बीच पहुँचने पर जबरदस्त आँधी तूफान, ओलावृष्टि हो गयी. अंग्रेज अफसर का घोड़ा बिदककर मय अफसर एक गोठ में घुस गया. मौसम खुला तब जाकर अफसर गोठ से बाहर निकल आवास की तरफ चला.
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रात्रि स्वप्न में अंग्रेज अफसर ने देखा डंगरिया हँसकर पूछ रहा है- बतौ को गोठीछ आजि धेक्छैई? ह्वे ग्यो… (कौन अंदर हुआ और देखना चाहता है या बस इतने से हो गया?) अगले दिन अंग्रेज ने दरबारी जन बुलाये सलाह मांगी कि अब क्या करना चाहिये? दरबारी कर्मचारियों ने सलाह दी- हजूर आपको देवता जागर लगा माफी मांगनी चाहिये. इसके बाद से पुराने तहसील किले में अंग्रेज ने मोष्ट्या देवता के जागर लगाकर क्षमा मांगी जो परंपरा आने वाले कई सालों तक जारी रही.
मोष्ट्या देवता में भी भगवान इंद्र के अंश की मान्यता है. वर्षा का होना न होना भी लोकदेवता मोष्ट्या के नियंत्रण में माना जाता है. मोष्ट्या से बारिश की मन्नत मांगने को छः पट्टी सोर से भैंट पोखल इकट्ठा कर मोष्टामानू देवालय में हवन यज्ञ आयोजन की परंपरा थी. प्रसन्न होने पर प्रकृति मेघ बरसाती थी इस आयोजन की जिम्मेदारी पंडे पुजारी समस्त क्षेत्रवासियों की होती थी.
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कुलदीप सिंह महर
पिथौरागढ़ के विण गांव में रहने वाले कुलदीप सिंह महर सोशल मीडिया में जनसरोकारों से जुड़े लेखन के लिए लोकप्रिय हैं.
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