सुन्दर चन्द ठाकुर

समझिए जरा, श्री श्री रविशंकर भी जिम क्यों जाते हैं

चार दिन पहले श्री श्री रविशंकर के अनूठे भक्त, स्वयं भी तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी और उतने ही ओजस्वी वक्ता ऋषि नित्यप्रज्ञा का कोविड से देहांत हो गया. संयोग से मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ उसी दिन उनका एक विडियो साझा किया था, जिसमें वह वर्तमान क्षण में जीने के अप्रतिम सुख की बात कर रहे थे. श्री श्री के भक्ति भाव में उनके गाए फिल्मी गीतों में एक अलग ही किस्म का रस बहता था. उनके मुख से अपूर्व ज्ञान बरसता था. उनकी मृत्यु की खबर ने मुझे चौंका दिया. मालूम पड़ा कि 13 दिसंबर से वह कोविड से पीड़ित थे और मृत्यु के एक दिन पूर्व ही खुद को अस्पताल से डिस्चार्ज करवाकर घर आ गए थे. पर अगले दिन ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई. उन्हें वापस अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया न जा सका. मृत्यु जीवन को रहस्यमयी बनाती है.
(Sri Sri Ravishankar Secret of Fitness)

ऐसे लोग जिन्हें हम किसी अवतार की तरह मानते हैं, वे भी जब दूसरे सामान्य प्राणियों की तरह मृत्यु का ग्रास बनते हैं, तो जीवन का रहस्य और गहरा जाता है. परंतु इससे एक सत्य भी उभरकर आता है कि हम अपने मन और वचन से कितने भी बड़े संत-महात्मा हों, किसी भी पद पर सुशोभित हों, किसी देश के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री हों, किसी कंपनी के सीईओ हों, नामी डॉक्टर, वैज्ञानिक, कवि या दार्शनिक हों, हमारे जीवन को चलाने वाले शरीर के भीतरी हिस्सों को उसका कोई भान नहीं होता. शरीर के भीतरी अंग शरीर की ही भाषा समझते हैं. हम क्या खाते हैं, रात को कितनी गहरी नींद लेते हैं, कितना ध्यान-व्यायाम करते हैं, कितना तनाव मुक्त जीवन जीते हैं, शरीर के भीतरी अंगों की हेल्थ ऐसी ही बातों पर निर्भर करती है.

हमारा दिल यह नहीं जानता कि हम कितने बड़े इंसान हैं, समाज में हमारी कितनी हैसियत है, हम देश और जहान के लिए कितना बड़ा काम कर रहे हैं, हमने कितनी अकूत संपत्ति जमा कर ली है. उस पर इन बातों का रंच मात्र भी फर्क नहीं पड़ता. उस पर फर्क पड़ता है, तो इस बात का कि हमने मांसपेशियों को कितना मजबूत बनाया है. वह कितने कम प्रयास के साथ शरीर में खून भेजने का काम कर पा रहा है. हमारी किडनी हमारे ओहदे को नहीं जानती. वह सिर्फ हमारी जीवनशैली को समझती है. जीवनशैली जितनी स्वस्थ होगी, किडनी उतनी ही सामर्थ्य के साथ काम कर पाएगी. कितने ही लोग हैं, जो 60 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते किडनी पकड़कर बैठ जाते हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह जीवन के अंतिम दस साल किडनी की बीमारी से त्रस्त रहे. निश्चय ही जब आप बड़े पद पर होते हैं, तो आपकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. दांव पर बहुत कुछ लगा होता है. ऐसे में अमूमन हम अपनी हेल्थ को नजरअंदाज करने लगते हैं. यहीं से चीजें बिगड़ने लगती हैं. जब तक हमें शरीर के खराब हो रहे अंगों का खयाल आता है, तब तक वे इस हद तक बिगड़ जाते हैं कि उन्हें फिर वापस सुधारा नहीं जा सकता.

इस मामले में गांधी जी एक अपवाद थे. उन्होंने अपनी जीवनशैली को लेकर कोई समझौता नहीं किया. संभवत: जितना काम उन्होंने किया, उतना उनके समकक्ष कोई और राजनेता नहीं कर पाया. लेकिन फर्क यह था कि गांधी जी ने अपने शरीर का पूरा खयाल रखा. उनकी ऊर्जा और हेल्दी दिल का पता इस बात से भी चलता है कि उन्होंने 61 साल की उम्र में डांडी मार्च के दौरान लगातार 24 दिनों तक चलकर 386 किलोमीटर की दूरी तय की थी. अगर कोई उस मार्च का विडियो देखे, तो गांधी जी की तेज गति देखकर दंग रह जाए. वह तेज चलना उनकी शारीरिक फिटनेस का प्रमाण था. गांधी जी ने राष्ट्रधर्म का निर्वाह तो किया ही, साथ में शरीर के प्रति अपने धर्म को भी नहीं छोड़ा. जितने भी महान संत-महात्मा हुए हैं, उन्होंने शरीर को स्वस्थ, सुगठित बनाए रखने की जरूरत को समझा.
(Sri Sri Ravishankar Secret of Fitness)

स्वामी विवेकानंद तो शारीरिक फिटनेस को बहुत जरूरी मानते ही थे, ओशो को भी हमने बुलवर्कर के साथ व्यायाम करते देखा. आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को भी आप जिम में वर्कआउट करते देखते हैं, तो इसीलिए कि वह शरीर के प्रति अपने धर्म को नजरअंदाज नहीं करते. जिड्डू कृष्णामूर्ति अगर 90 वर्ष की आयु तक पूरी ऊर्जा के साथ प्रवचन देते रहे, तो इसीलिए कि युवावस्था से ही उन्होंने नियमित योग और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बनाया.

इसमें कोई दो राय नहीं कि जीवन को कर्म प्रधान होना चाहिए. कर्म ही जीवन है. पर हम यह न भूलें कि शरीर के प्रति धर्म भी इसी कर्म का हिस्सा है. दिल, जिगर, फेफड़े, अग्नाशय, आमाशय आदि शरीर के भीतरी अंगों को इससे कोई मतलब नहीं कि हम कौन हैं, क्या करते हैं, हमारा क्या रुतबा है. उन्हें सिर्फ इससे मतलब है कि आप योग, व्यायाम, प्राणायाम करते हैं या नहीं, समय पर सोते हैं या नहीं, गहरी नींद लेते हैं या नहीं, खुश रहते हैं या नहीं, हेल्दी भोजन करते हैं या नहीं. आप काम, आराम और प्राणायाम में कितना संतुलन बनाकर रखते हैं.
(Sri Sri Ravishankar Secret of Fitness)

इसे भी पढ़ें:  भिखारी राजा और दयालु युवक: एक प्रेरक कथा

लेखक के प्रेरक यूट्यूब विडियो देखने के लिए कृपया उनका चैनल MindFit सब्सक्राइब करें

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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