पहाड़ों में आजकल हर रोज कहीं न कहीं सर्पों द्वारा काटने की खबर आ रही है, पर घबराइए मत हम आपके लिए कुछ रोचक जानकारी ला रहे हैं जो सर्पों के प्रति आपका ज्ञानवर्धन करेंगी. मुक्तेश्वर स्थित केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक पद पर तैनात शियानंद संगवान काफी अरसे से सर्पों के संरक्षण एवं उनके उपर अध्यन कर रहे हैं और उनके साथ उनके मित्र विकास हैं जो मध्यप्रदेश से हैं जो सर्प-विज्ञान में एम फिल स्कॉलर हैं. उन्होंने बताया की पहाड़ों में पाए जाने वाले ज्यादातर सर्प जहरीले नहीं होते. कुछ ऐसे सर्प हैं जो जहाँ पर काटें वह अंग धीरे-धीरे गलने लगता है.
पहाड़ों में ज्यादातर पाए जाने वालों सर्पों में हिमालयन त्रिंकेट, हिमालयन कैट स्नेक, ब्लैक हेडेड स्नेक, हिमालयन माउंटेन कील्बैक, हिमालयन पिट वाईपर हैं. आमतौर पर हिमालयी त्रिन्केट कश्मीर से लेकर अरुणांचल प्रदेश तक 2300 मीटर तक मिलता है. आँखें बड़ी, सर चमकदार, बड़े शल्क और लम्बाई 6 -7 फीट तक होती है. अत्यंत फुर्तीला ये सर्प चूहे और छोटे जीव खाता है. बिलकुल भी जहरीला न होते हुए भी ये सर्प अपने रंग रूप से ही भयभीत कर देता है. चुनौती दिए जाने पर काट सकता है, पर इसके काटने से कुछ नहीं होता. यह सर्प हिमाचल एवं नेपाल में भी पाया जाता है.
हिमालयन कैट स्नेक, जो की झाड़ियों में रहता है, को बिल्ली सर्प भी बोला जाता है. काले रंग के पट्टे इसकी पहचान हैं. यह साँप रात्रिचर है. इसका भोजन छिपकली, गिरगिट, चिड़िया है. ये क्रिकेट की बाल की तरह गोलाई लिए झाड़ियों में पड़ा रहता है और रात को ही बाहर निकलता है. ये सर्प भी जहरीला नहीं होता अपनी पूंछ हिलाकर डराने की कोशिश जरूर करता है. यदि काट ले तो हल्की सूजन हो सकती है पर कोई खतरा नहीं होता.
ब्लैक हेडेड स्नेक की बात करें तो यह लाल, भूरा, नारंगी रंगों में पाया जाता है. जंगलों में सूखी पत्तियों, झाड़ियों में मिलता है. इसका सर काला, स्लेटी हो सकता है पर बाकी शरीर का रंग सर के रंग से भिन्न होता है. इसकी कुछ प्रजातियाँ मध्यप्रदेश में मिलती हैं. ये पतला और फुर्तीला सर्प आबादी वालों क्षेत्रों में अक्सर देखने को मिल जाता है. ये भी जहरीला नहीं होता.
वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में हिमालयन पिट वाइपर एक ऐसी प्रजाति है जो जिस जगह काट ले वह अंग धीरे-धीरे गलना शुरू हो जाता है और इसका अभी तक कोई टिका भी बाज़ार में नहीं पहुंच पाया है. वैसे ये सर्प शांत होता है. अधिकतम लम्बाई 34 इंच होती है. नर सर्प छोटा पतला होता है जबकि मादा लम्बी और मोटी रहती है. सितम्बर माह में 5-7 बच्चों को जन्म देती है. ये सर्प कुंडली मार कर बैठा रहता है. चलने-फिरने में बेहद सुस्त होता है. ये दुनिया का एकमात्र सर्प है जो अधिकतम ऊंचाई तक पाया जाता है.
विकास ने बताया की मुक्तेश्वर के जंगलों में सहजता से इन सभी प्रजातियों का मिलना बहुत ही आश्चर्य एवं एक सुखद अनुभूति है बस जरूरत है तो इनके संरक्षण की. वहीं विकास को उम्मीद है कि कोबरा सर्प भी मुक्तेश्वर एवं आस-पास के जंगलों में मिल सकता है, क्योंकि यहाँ का वातावरण इस प्रजाति के लिए अनुकूल है
सर्पों की सभी तस्वीरें मुक्तेश्वर के जंगल की हैं जिन्हें कैमरा में कैद किया है शिक्षक शियानन्द सांगवान और उनके साथी विकास ने.
हल्द्वानी में रहने वाले भूपेश कन्नौजिया बेहतरीन फोटोग्राफर और तेजतर्रार पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं.
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