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4 Comments

  1. विपिन

    पूरी तरह से गलत लेख है
    पहाड़ के इतिहास में कभी भी कहिं गन्ना नही उगाया गया उधमसिंह नगर हरिद्वार देहरादून को पहाड़ की श्रेणी में नही जोड़ा जा सकता
    कटकी वाली चाय पी जाती थी पर गुड़ कभी किसी पहाड़ में नही बना

  2. भुवन चंद्र बुघानी

    हा यह बात सही है गुड़ तो हल्द्वानी मैं भी अधिकतर दड़ियाल रामपुर से आता था पहाड़ो मैं तो केवल मोटा गन्ना केवल पूजा पाठ के रस्मो या चूसने के लिए उगाते थे वो भी दो चार पौधे|

  3. प्रदीप सिंह पंवार

    पहाड़ में पहले व्यापार रुपये आधारित न होकर वस्तु या फसल विनिमय (अदल-बदल) आधारित होता था । अनाज तो स्थानीय रूप से उगा लिया जाता था । हर परिवार वर्ष भर की अपनी जरूरत का अनाज रखकर शेष विनिमय कर चाय, गुड़, तम्बाकू, नमक एवं कपड़ा ले लेते थे । क्योंकि पहाड़ों में चाहे गढ़वाल हो या कुमाऊँ हर जगह इन्ही पांच सामग्री की मांग रहती थी क्योंकि इनका स्थानीय स्तर पर पहाड़ों में उत्पादन अतिसीमित या नगण्य ही था ।

  4. Dr,S,D ,Pandey

    महोदय लेखक ने ठीक ही कहा है, कि पहाड़ों में गुड़ बनता था, मेरा गांव गुमदेश पट्टी जिस, चम्पावत में है आज से करीब ८०..९० वर्ष पूर्व वहां काली नदी के किनारे की बसासतो मैं रिखू ( गन्ना ) लगाते थे, कुछ मात्रा में गुड़ बनता था कुछ राब तम्बाकू बनाने में प्रयोग किया जाता था, हमारे वह खेत अब बंजर हो चुके हैं, लेकिन गुड़ बनता था यह वास्तविकता है,

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