उनकी गृहस्थी सुन्दर थी. फूफा बुआ को स्कूटर पर घुमाते थे. हर इतवार या छुट्टी के दिन वे दोनों किसी न किसी रिश्तेदार के यहाँ हो आते थे. दो से तीन होने पर भी आने जाने का यह सिलसिला बना रहा. फूफा क्लर्क थे और बुआ प्राइमरी स्कूल में टीचर. अपनी चारों बहनों में बुआ अकेली नौकरी वाली थी. बाकी तीनों बहनें उसकी अच्छी नौकरी और अच्छे पति की तारीफ करती थीं. बुआ के घर जाने पर बहुत मज़ा आता था. किसी चीज़ की कमी न थी. बेटे रजत को देखने के लिए एक अच्छी आया भी मिल गयी थी. सबकुछ मन माफिक था. रिश्तेदारी में फूफा ने सबसे पहले स्कूटर लिया. जब कभी वे हमारे घर स्कूटर पर पीछे बुआ और बीच में रजत को बैठाकर आते तो हमें लगता कि वे कितने स्वतंत्र हैं और हम कितने बंधे. पहाड़ में रहने वाले हम जहां जाते पैदल जाते. स्कूटर पर चलते बुआ और फूफा उड़ते से लगते. Smartphone Story by Swati Melkani
मेरे और रजत के बचपन में एक रूपये की बीस टॉफ़ी मिल जाया करती थी. पर रजत हमेशा एक रूपये की दो वाली टॉफ़ी ही लेता था. रजत हमसे आगे रहता था. वह अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढता था. उसकी मम्मी नौकरी वाली थी. उसके पापा के पास स्कूटर था. वह घर में भी अच्छे कपड़े पहनता था. बुआ फूफा की तुलना में मुझे अपने माता पिता हमेशा पुराने और आउटडेटेड नज़र आते थे.
पैंतीस साल पहले की बुआ और फूफा की गृहस्थी के दृश्य उस दिन अचानक याद आ गये. उन दोनों से मिलना हमेशा अच्छा लगता है. समय निकाल कर उनसे मिलने पहुँच ही गयी उस दिन. मुझे देखकर उनके चेहरे खिल गए. बुआ सेब, जूस, चाय, बिस्कुट, मिठाई और न जाने क्या क्या ले आई. फूफा से उनके सालों पुराने कमर दर्द के हाल पूछे. रिटायरमेंट के ठीक पहले हुए एक्सीडेंट में उनके बाएं पैर में आई रॉड अब निकाली जा चुकी थी पर स्लिप डिस्क का पुराना दर्द बहुत बढ़ गया था. इस बीच बुआ भी काफी मोटी हो गयी थी.मैंने चुटकी लेते हुए मोटापे का राज पूछा तो वह भी अपनी तबीयत का हाल सुनाने लगी. बोली कि कभी कभी होने वाली घबराहट असल में हार्ट प्रॉब्लम है, जिसके लिए डॉक्टर ने जीभ के नीचे रखने वाली कोई दवा दी है. दोनों के हाल चाल सुन लेने बाद रजत की याद आई पर उसके बारे में जितना बुआ बताती उतना तो मुझे भी पता था. पिछले हफ्ते उसने फेसबुक पर अपने इंडोनेशिया ट्रिप के ढेरों फोटो लगाये थे. खूबसूरत बीवी और गुड़िया सी बेटी के साथ समंदर किनारे घूमता रजत … फोटो में सब खुश दिख रहे थे. Smartphone Story by Swati Melkani
बुआ बोली, “आपस में तो खुश होंगे ही. बस हमसे ही नहीं बन पाई बहू की. चलो साथ में खुश रहें, बाकी हमें क्या करना है. माँ बाप बेटे की शादी आखिर उसकी ख़ुशी के लिए ही तो करते हैं. जो कुछ है उन्हीं का है. हमसे तो पोती कभी कभी फ़ोन पर बात भर कर ले तो काफी है.पर आजकल वह भी ज्यादा बातें नहीं करती. बड़े होकर बच्चे शरमाने लगते हैं.”
पोती का ज़िक्र आते ही बुआ फूफा दोनों में मुझे उसके फोटो दिखाने की होड़ लग गई. उसके पिछले बर्थडे का परियों वाला ड्रेस, ड्रेस से मैचिंग केक, बच्चों को दिए गए महंगे रिटर्न गिफ्ट और न जाने क्या क्या….. हर तस्वीर कि एक कहानी थी और हर कहानी के साथ इमोशनल होती बुआ. इस बीच फूफा फ़ोन में वह वीडियो ढूंढ रहे थे जिसमें उनकी पोती का डांस था. दोनों के हाथों में स्मार्ट फ़ोन देखकर मैंने बधाई देते हुए उनकी बढ़ती स्मार्टनेस की तारीफ की. बुआ फूफा स्मार्ट फ़ोन की ख़ुशी को छिपा नहीं सके. पर इस ख़ुशी की भी कुछ सीमाएं थी. फ़ोन के कई फंक्शन उनकी समझ से बाहर थे. जैसे ही वे किसी एक चीज़ पर गौर करने लगते तो फ़ोन की स्क्रीन ऑफ हो जाती थी.कई सारी अनचाही चीजें फ़ोन में आ जाती थी जिन्हें हटाना उन्हें नहीं आता था. बिना कुछ किये भी फ़ोन की बैटरी खर्च हो जाती थी. शिकायतों की फेहरिस्त लम्बी थी. मैं बिना ऊब दिखाए सुनने की कोशिश कर रही थी पर तभी बुआ ने फूफा पर उनका फ़ोन छेड़ने और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को डिलीट करने का आरोप लगा दिया. बुआ का यह भी कहना था कि फूफा को फ़ोन की लत लग चुकी है और सोते हुए भी फ़ोन को सीने पर रखकर सोते हैं. Smartphone Story by Swati Melkani
फूफा ने प्रतिकार किया और कहा कि बुआ उनसे भी अधिक गंभीर रूप से फोन की आदी हो चुकी है. अपनी पोती के नहीं मिल पा रहे डांस वीडियो के मामले में भी फूफा को बुआ के बार-बार वीडियो देखने पर अज्ञानतावश उसके डिलीट हो जाने का पूरा शक था. बुआ को इस बात का गम था कि उन्होंने कई बार फूफा से उस वीडियो को अपने फ़ोन पर व्हटसएप करने को कहा पर उन्होंने नहीं किया. बुआ ने यह भी कहा कि फूफा इतने अनाड़ी हैं कि अभी तक व्हटसएप ठीक से चलाना नहीं सीख पाए. फूफा अपनी सफाई में बोले, “ मुझे व्हटसएप चलाना आता है पर मेरा इन्टरनेट पैक न जाने कैसे बहुत जल्दी ख़त्म हो गया. पिछले चार दिनों से न कोई मेसेज आया न गया.”
बुआ अपनी चाय छोड़ बोल पड़ी, “अरे कोई इन्टरनेट विन्टरनेट ख़त्म नहीं हुआ, इन्हें व्हटसएप चलाना आता ही नहीं.”
बुआ और फूफा की लड़ाई जल्द ही इस स्तर पर पहुँच गई कि मेरा हस्तक्षेप आवश्यक हो गया. दोनों को शांत करते हुए मैंने कहा, “ इन्टरनेट पैक न हो तो भी आप एक दूसरे के फ़ोन में ब्लूटूथ से फाइल शेयर कर सकते हैं.”
‘ब्लूटूथ’ शब्द से वे दोनों अचंभित हो गए. बुआ ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, “ देखा ! कितनी सारी चीजें हैं फ़ोन में, पर इन्हें कुछ पता हो तब ना. ब्लूटूथ चलाना भी इन्हें नहीं आता.”
फूफा को शर्मिंदगी से बचाते हुए मैंने उन्हें ब्लूटूथ इस्तेमाल करना सिखाने की पेशकश की. वे दोनों अपने अपने फ़ोन मेरे सामने रखते हुए अच्छे विद्यार्थियों की तरह ब्लूटूथ ज्ञान लेने बैठ गए. मैंने अपने फ़ोन से रजत की एक फोटो उनके फ़ोन में ट्रान्सफर की. दोनों अपने बेटे को देखने लगे. बुआ ने पूछा, “ क्या तुझे रजत व्हटसएप पर अपने फोटो भेजता रहता है?”
“नहीं बुआ ! यह फोटो मैंने फेसबुक से लिया है.” मैंने बताया.
अब फूफा की बारी थी. तुरंत बुआ को घूरकर बोले, “देखा, तुझे तो लगता है कि सारी चीज़ें व्हटसएप से ही होती हैं. मुझे तो पहले ही पता था कि यह फोटो फेसबुक का है.” फूफा को ज्यादा स्मार्ट बनते देख मुझे हंसी आ गयी जिसे देखकर वे थोड़ा झेंप गए. मैंने चाय ठंडी होने का हवाला देकर बात बदल दी. पर उन दोनों की फ़ोन जिज्ञासा अभी कम नहीं हुई थी. फेसबुक सुनकर बुआ बताने लगी कि कैसे उनके पड़ोसी की ननद का फेक आईडी बनाकर कोई फेसबुक पर एक अश्लील अकाउंट चला रहा था और कैसे दूसरी गली के चौथे मकान में रहने वाले रिटायर्ड प्रिंसिपल साहब के खाते से अस्सी हज़ार उड़ गए. Smartphone Story by Swati Melkani
“अरे तेरी बुआ भी तो समझे बिना ही फ़ोन चलाने लगी है. देखना किसी दिन यह भी धोखा खाएगी,” बुझती चिंगारी को दोबारा हवा देते फूफा अचानक बोल पड़े.
“ फोन मेरे बेटे ने दिया है. तुमने तो कभी मुझे स्मार्ट फोन चलाने लायक स्मार्ट समझा ही नहीं और अब भी यही समझते हो.” बुआ खीजकर बोली. बुआ का दावा था कि स्मार्ट फोन चलाने में वे फूफा से ज्यादा स्मार्ट हैं. शाम होने लगी थी और मुझे लौटना था. मैं बस चलने की इजाज़त लेना चाहती थी पर बुआ ने फेसबुक में रजत के फोटो देखने की इच्छा जताई. मैंने उन्हें जल्दी जल्दी कुछ फोटो दिखाए पर वे एक एक फोटो को जी भर कर देखना चाहती थी. “ बुआ, मैं आपको व्हटसएप पर ये फोटो भेज देती हूँ.” बुआ का मन भरा नहीं था. मैंने बुआ को तसल्ली देते हुए कहा. पर बुआ रोनी सूरत बनाती हुई बोली, “ मेरे फोन में भी पैसे नहीं हैं. इन्टरनेट चल ही नहीं रहा है.”
“ कोई बात नहीं. आप अपना वाई फाई ऑन करो, मैं अपने फोन से नेट कनेक्ट कर देती हूँ” मैंने बुआ से कहा. फूफा भी ध्यान से हमारी बातें सुन रहे थे. ‘वाई फाई’ सुनकर वे दोनों फिर चुप हो गए.मैंने हॉटस्पॉट ऑन किया और अपने फ़ोन से रजत के कुछ नए फोटो उनके फोन पर भेज दिए. वे दोनों अभिभूत होकर ऐसे देख रहे थे जैसे मेरे बजाय कोई जादूगर उनके सामने बैठा हो. “ रिटायर होकर कितने भोले लगने लगे हैं दोनों” मैंने अपने आप से कहा. Smartphone Story by Swati Melkani
“लो बुआ,फोटो भेज दिये. अभी नेट कनेक्ट है. और कुछ करना हो तो बताओ.”
बुआ की आँखें चमक उठी. बोली, “कुछ दिन पहले हल्द्वानी के रामलीला मैदान में भागवत कथा हुई थी. भागवत सुनाने वाले व्यासजी कोई दिव्य आत्मा थे और अपने यूट्यूब चैनल पर लगातार प्रवचन सुनने का उपदेश दे गए हैं. पर फूफा इतने निकम्मे हैं कि इतने दिनों से यूट्यूब पर वह चैनल ढूंढ ही नहीं पाए.”
फूफा की रुसवाई का एक और मौका भांपते हुए मैंने बुआ से भागवत वाले बाबा की कुछ और डिटेल पूछी. बुआ जोश में भीतर गई और बाबा की दी हुई पुस्तिका ले आई. पुस्तिका के कवर में बने व्यासजी के चित्र को प्रणाम करते हुए बुआ उसमें दी हुई वेबसाइट और यूट्यूब लिंक दिखाने लगी. मैंने बुआ के फ़ोन में उस चैनल को सब्सक्राइब करने की कोशिश की पर धीमे इन्टरनेट से बात नहीं बनी. मुझे देर हो रही थी पर बुआ का आग्रह जारी था. फूफा बोल पड़े, “तेरी बुआ जब से भागवत सुनकर आई है,घर गृहस्थी से इसका मन ही हट गया.”
बुआ ने उनकी बातों पर ध्यान न देने का असफल अभिनय करते हुए मुझसे फोन की बारीकियां समझने में खुद को व्यस्त दिखाने का प्रयास किया. बुआ मुझे रात वहीं ठहर जाने को मनाने लगी. एक मन हुआ कि वहीं रह जाऊं जैसे बचपन में स्कूल की छुट्टियों पड़ते ही मां से ज़िद करके भी बुआ के यहां रहने चली जाया करती थी. हफ़्तों रहकर भी मन नहीं भरता था. बुआ और फूफा दोनों का मुझसे ख़ास लगाव था. रजत उनकी इकलौती संतान था पर शायद उनकी कोई बेटी भी होती तो खूब प्यार पाती. फूफा के साथ स्कूटर पर घूमती और बुआ उसके सभी शौक पूरे करती. बुआ घर और जॉब दोनों बराबर संभालती थी.उन दिनों मुझे बुआ बहुत स्मार्ट लगती थी. Smartphone Story by Swati Melkani
फूफा तो बुआ से भी एक कदम आगे थे. गरीबी में बीते उनके बचपन के किस्से सुनने में मुझे बड़ा आनंद आता था और फूफा भी अल्मोड़ा स्थित अपने गांव की बातें बताते नहीं थकते थे. एक दिन उन्होंने बताया कि जंगल में उगने वाले बेडू से ही कई दिन उनके परिवार का भोजन चलता था. अपनी विधवा मां के साथ उन्होंने सड़कों में कोलतार बिछाने का काम तक किया था. फिर छोटे छोटे तिनकों के सहारे किसी तरह जीवन नौका को खे लिया. निःसंदेह फ़ूफा बुआ से ज्यादा स्मार्ट थे. पहले खुद पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी पाई, हल्द्वानी में घर बनाया, बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाई और अब वह अपनी पत्नी व बेटी के साथ बंगलौर में रहता है.
पिछली गर्मियों में बुआ और फूफा हवाई जहाज़ में बैठकर बंगलौर गए थे. दोनों को गर्व है कि बेटे ने हवाई जहाज़ में बैठा दिया और नए फ़ोन भी दिला दिए. वहां पहुँचकर फूफा ने अपनी पोती को भी बचपन के उन्हीं किस्सों से बहलाना चाहा जिन्हें सुनते हुए मुझे घंटों बीत जाने का पता नहीं चलता था. पर पोती कुछ ही देर में बोर होकर टीवी पर कार्टून देखने लगी. फूफा को पहली बार अपने किस्सों के वाकई सच होने पर संदेह होने लगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी ये सारी कहानियाँ पिछले जन्म की बातें हों जिन्हें उन्होंने कभी कभार सपने में देखा हो. पोती दूसरे बेडरूम में अपने मम्मी पापा के साथ सोई थी. फूफा सो नहीं पाए. काफी कोशिशों के बाद भी जब नींद नहीं आई तो नया नवेला स्मार्ट फ़ोन ऑन करके उस पर उंगलियाँ फिराने लगे. फोन की बदलती रोशनी और रंगों के बीच उन्हें एक नई दुनिया की राह दिखाई दी. Smartphone Story by Swati Melkani
एक ऐसी दुनिया जो अल्मोड़ा के पहाड़ों की चढ़ाई और हल्द्वानी की धूप के संघर्षों से कहीं आगे थी. इस दुनिया में सेकेंड के सौवें अंतराल में ही बहुत कुछ बदल जाता था. सदियों पुराने किस्से, कहानियों, यादों और सपनों का बोझ फूफा को भारी लगने लगा. फोन की जगमग रोशनी में नहा गए फूफा. बगल में लेटी बुआ गहरी नींद में थी. बेटे की तरक्की का संतोष सोई हुई बुआ के चेहरे पर साफ दिख रहा था. पांच साल की नौकरी में रजत का लिया यह टू बीएचके फ्लैट,फूफा के रिटायरमेंट के बाद बने हल्द्वानी के मकान से ज्यादा सुविधाजनक था. बुआ के चेहरे की ख़ुशी धीरे धीरे शुरुआती उदासी को पीछे धकेलते हुए फूफा के होठों पर भी फैलने लगी और अतीत की सांवली स्मृतियाँ फोन से निकलती रंगीन रोशनी में जा समाई.
मैंने खिड़की के बाहर झाँका. अच्छा खासा अंधेरा हो चुका था. बुआ को फोन में उलझाकर मैं चलने को तैयार होने लगी. अपना बैग उठा ही रही थी कि फूफा बोल पड़े, “ मेरे फोन की बैटरी बहुत जल्दी ख़त्म हो जाती है. क्या करूँ ?”
“आप रात को फोन फ्लाइट मोड में रखकर सोया करो फूफाजी ! इससे बैटरी भी बचेगी और अनचाहे नोटिफिकेशन भी नहीं आयेंगे.” इतना कहकर मैं दरवाज़े तक आ गई. फूफा तकिये से सर सटाते हुए बोले, “फ्लाइट मोड में फोन डालना मुझे कहाँ आ पायेगा ? तू फिर कभी आएगी तो सिखा जाना.” तकिये पर पूरा लेटते हुए फूफा चुपचाप छत की ओर देखने लगे. गेट से बाहर आकर मैंने स्कूटी स्टार्ट की. फूफा का पुराना स्कूटर गेट के बगल की खाली जगह में भरे कभाड़ के बीच तिरछा पड़ा था.
–स्वाति मेलकानी
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29 अप्रैल 1984 को नैनीताल के पटवाडांगर में जन्मीं स्वाति मेलकानी उत्तराखंड के एक छोटे से कस्बे लोहाघाट के स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में पढ़ाती हैं. भौतिकविज्ञान एवं शिक्षाशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर चुकी स्वाति का पहला कविता संग्रह ‘जब मैं जिंदा होती हूँ’ भारतीय ज्ञानपीठ की नवलेखन प्रतियोगिता में अनुशंसित अवं प्रकाशित हो चुका है. उनकी कविताएं देश की तमाम छोटी-बड़ी पत्रिकाओं में छपती रही हैं और हिन्दी कविता के पाठकों के लिए वे एक परिचित नाम हैं. काफल ट्री में पहली बार प्रकाशित.
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