पटवारी पद के सैकड़ों उम्मीदवार शारीरिक दमखम साबित करने के लिए दस किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा ले रहे थे. वह भी एक उम्मीदवार था और कांखता-कराहता किसी तरह दौड़ रहा था. यह सोचकर वह हैरान था कि दौड़ने का अभ्यास न होते और सिगरेट की लत के बावजूद उसने आधी से ज्यादा दूरी तय कर ली थी. नौकरी का लालच ही शायद शक्तिवर्धक का काम कर रहा है, उसने सोचा.
“महेश भाई!” एक हांफती हुई आवाज़ उसने सुनी. अपना नाम सुनकर वह पीछे मुड़ा तो देखा कि उसी के मोहल्ले का एक लड़का उसे रुकने का इशारा कर रहा है. “कम ऑन आशू कम ऑन” किसी तरह वह बोल पाया और आशू के इन्तजार में वहीं रूककर धीरे-धीरे कदमताल करने लगा.
“भाड़ में गयी यार ऐसी नौकरी.” पास आकर आशू कहने लगा. “इतना तो आर्मी वाले भी नहीं दौड़ाते. क्या मतलब हुआ इस रेस का?” वो दोनों धीरे-धीरे दौड़ने लगे. “सब पैसे का खेल है महेश भाई. जिसे नौकरी मिलनी होगी वह आराम से घर बैठा होगा. हम उल्लू के पठ्ठे अपनी जान देने पर तुले हुए हैं … वो तो मैंने एक ताकत की गोली ले ली थी वरना कब का लुढ़क गया होता.”
आशू की बातें उसे अच्छी लगीं. वाकई सच ही तो कह रहा है- उसने सोचा. आशू बार-बार रुकने की बात कहने लगा कि अब उससे नहीं दौड़ा जाता. वह आशू का हौसला बढ़ाता रहा . सड़क किनारे खिले पीले-बैंगनी फूल पीछे छूटने लगे आगे कंटीली झाड़ियां. “ बस आशू अब ज्यादा नहीं है, हिम्मत मत हारो.” उसने आशू की हौसलाअफजाई की गरज से कहा –
“मैं तो यार बैठता हूँ यहीं कहीं छाया में. दो कदम और दौड़ा तो हार्ट फेल हो जाएगा.”
आशू सड़क के बीचोंबीच घुटनों पर हाथ रखकर झुक गया और बुरी तरह हांफने लगा. “इस नौकरी के लिए जान जो क्या देनी है यार ! ज़िंदा रहे तो कहीं भी दो रोटी का जुगाड़ कर लेंगे. अपने बस की नहीं है महेश भाई. तुम जाओ, मुझे छोडो.”
महेश ने उसे च्यूइंग गम दिया और दो मिनट दम लेकर फिर से दौड़ने की सलाह देता हुआ लघुशंका के लिए ज़रा किनारे को चला गया.
तभी आशू एकाएक सीधा हुआ और बिदके घोड़े सा भाग छूटा. वह आशू को पुकारता रह गया. आशू ने मुड़कर नहीं देखा. तभी उसका ध्यान अगले मोड़ से उठ रहे शोरगुल पर गया. उसने नागफनी की झाड़ियों की ओट से देखा कि आशू सहित दर्ज़नों लड़के सड़क के आरपार तने रिबन को छूने की होड़ में एक दूसरे को रौंद कर आगे निकल जाना चाहते हैं.
शंभू राणा विलक्षण प्रतिभा के व्यंगकार हैं. नितांत यायावर जीवन जीने वाले शंभू राणा की लेखनी परसाई की परंपरा को आगे बढाती है. शंभू राणा के आलीशान लेखों की किताब ‘माफ़ करना हे पिता’ प्रकाशित हो चुकी है. शम्भू अल्मोड़ा में रहते हैं और उनकी रचनाएं समय समय पर मुख्यतः कबाड़खाना ब्लॉग और नैनीताल समाचार में छपती रहती हैं.>
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5 Comments
सुशील
एक अदभुत शख्सियत हैं शम्भू जी।
Anonymous
शंभू राणा जी को इस लेख पर बधाइयाँ।काफल खूब होंगे और ज़्यादा मीठे होंगे अब।
Anonymous
řana ji mai quality hai..♤
Anonymous
Samaj Ka aayna (Bina frame Kiya hua,)=sambhidaan Rana
Anonymous
जबरदस्त है