रोज की तरह, सात साल का गुट्टू मुन्ना अपनी हमउम्र पड़ोसिन चुनमुन के पास खेलने पहुँचा. चुनमुन उसे अपने मकान के दालान में खड़ी मिली. वह बड़े चाव से कुटुर-कुटुर शक्करपारे खा रही थी. गुट्टू मुन्ना उसके करीब जाकर खड़ा हो गया, मगर न जाने क्यों चुनमुन ऐसी बन गई, जैसे उसने उसे देखा ही न हो. गुट्टू मुन्ना फिर ठीक चुनमुन के सामने खड़ा हो गया, मगर चुनमुन ने तब भी उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया.
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
‘यह चुनमुन बड़ी शान ही मरी जा रही है!’ गट मुन्ना ने सोचा और कहा, “नहीं बोलना तो मत बोलो, हम भी नहीं बोलेंगे!”
फिर उसका ध्यान शक्करपारों की ओर गया. नरम पड़ते हुए वह बोला, “चुनमुन, ओ चुनमुन!”
“मुझसे क्यों बोल रहा है?” चुनमुन बोली, “याद नहीं कल शाम तेरी-मेरी कट्टी हो गई थी!”
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
गुट्टू मुन्ना को याद आया कि कल शाम उसका और चुनमुन का झगड़ा गो गया था. उस झगड़े में सारा दोष चुनमुन का ही था. डॉ, घोड़ा-घोड़ा खेलने में गिर ही जाते हैं. उसने चुनमुन को जानकर थोड़े ही गिराया था. और फिर स्वयं वह भी तो गिरा था, उसके भी तो घुटने छिल गए थे. अब चुनमुन बेकार में अगर इस झगड़े को बढ़ाए तो चुनमुन की ग़लती है. कुट्टी तो फिर कुट्टी ही सही!
लेकिन इस तर्क से चुनमुन को पराजित करने के बजाय, गुट्टू मुन्ना ने शक्करपारों पर दृष्टि जमाकर प्रस्ताव रखा, “अच्छा चुनमुन! अब तेरा-मेरा सल्ला, हैं भाई?” चुनमुन कुछ नहीं बोली. उसके दाँत कुटुर-कुटुर करते रहे. गुट्टू मुन्ना ने उसकी चुप्पी को खामोशी-ए-नीम-रजा समझकर उत्साह से कहा, “अच्छा, अब तेरा-मेरा सल्ला हो गया, है ना चुनमुन? अब तेरी-मेरी दोस्ती हो गई है ना चुनमुन? अब तेरी-मेरी दोस्ती हो गई.”
गुट्टू मुन्ना चुनमुन में उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.
“कुटुर-कुटुर-कुटुर!” चुनमुन ने उत्तर दिया.
गुट्टू मुन्ना घोर आशावादी था, इस उत्तर से तनिक भी निराश न हो, उसने बड़े ही प्रसन्न स्वर में कहा, “अब मेरा-तेरा सल्ला हो गया, है ना? अब मैं और तू खूब मिलकर खेलेंगे, है ना? संग बाजार घूमने जाएंगे, चीजें खाएंगे, तू मुझे शक्करपारे खिलाएगी, है ना?”
मगर इन शांति-घोषणाओं का चुनमुन पर कोई असर न हुआ. वह मजे से एक शक्करपारे को उँगलियों में थामकर चूसती रही. उसके चेहरे का हर हिस्सा बतलाता रहा कि शक्करपारे गुट्टू मुन्ना के वायदों से कहीं ज्यादा मीठे हैं. हारकर गुट्टू मुन्ना दालान की सीढ़ियों पर बैठ गया. उसे विचार आया कि क्यों न वह चुनमुन के शक्करपारे छीन ले. और उन्हें छीनना उसके लिए कोई कठिन कार्य नहीं था. वह चुनमुन से तगड़ा जो था. लेकिन चुनमुन से शक्करपारे छीनने का अर्थ था, चुनमुन का रोना और उसकी माँ का भीतर से निकलकर आना. और गुट्टू मुन्ना अगर किसी से डरता था तो चुनमुन की माँ से. संक्षेप में यह कि छीनकर शक्करपारे मिल तो सकते थे, पर बड़े ही महंगे दामों में.
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
कुछ समझ में न आता देख गुट्टू मुन्ना ने चुनमुन की ओर देखा, इस आशा से कि शायद उसकी मनःस्थिति में इस बीच कोई परिवर्तन आ गया हो. लेकिन स्थिति पूर्ववत् थी. चुनमुन की जेब से एक के बाद एक निकलकर शक्करपारे उसके मुँह से गायब होते जा रहे थे.
गुट्टू मुन्ना ने देखा कि मौक़ा कुछ कर दिखाने का है, खाली बैठने से काम नहीं चलेगा.
“बादशाह फ़ोटी थ्री. फ़ोट्टी फ़ोर!” मुहल्ले के शराबी की नकल करते हुए वह जोर से चीख़ा.
चुनमुन ने पलटकर उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा और उसे लगा जैसे शक्करपारे. उसके मुंह में आ गए हों. “फ़ोट्टी थ्री, फ़ोटी फोर वाला आदमी.” उसने अपना अभिनय जारी रखा.
चुनमुन ने एक शक्करपारा अपने होठों में दबा लिया और उसे होठों से ऊपर नीचे हिलाती रही. गुट्टू मुन्ना के अभिनय पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया. गुट्टू मुन्ना के मुंह में आए हुए शक्करपारे गायब हो गए, वहाँ केवल लार बची रही.
गुट्टू मुन्ना फिर यूँ ही बेमतलब जोर से हँसा. लेकिन इस हँसी का चुनमुन पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा. मगर गुट्टू मुन्ना चुनमुन की जिज्ञासा प्रबल होने पर आस लगाए रहा और अपनी हँसी को तर्कयुक्त सिद्ध करने के लिए कोई मजेदार बात सोचने लगा. परंतु उसका ज़रखेज दिमाग भी आज कोई मजेदार बात न उपजा सका. इस मजेदार बात की कमी से तनिक भी हतोत्साहित न हो गुट्टू मुन्ना पुनः जी खोलकर हंसा.
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
काफी हँस चुकने के बाद उसने हँसी रोकने का प्रयास करते हुए कहा, “और बड़े मजे की बात, ओ हो हो हो!” और वह फिर हँसने लगा.
चुनमुन उसकी ओर से मुंह फेरती हुई बोली, “कोई भी बात नहीं है.”
“बात है!” गुट्टू मुन्ना ने तैश में आकर कहा, “लेकिन चुनमुन ने यह चुनौती स्वीकार नहीं की और बात वहीं रह गई.”
गुट्टू मुन्ना की इच्छा हुई कि जाकर चुनमुन की चोटी खींच दे. शक्करपारे के मामले में वह सरासर बेईमानी कर रही थी. चोटी खींचने से तो शक्करपारे मिल नहीं सकते थे. गुट्टू मुन्ना ने खींचकर एक कंकड़ उठाया और पास ही सोए हुए पिल्ले को दे मारा. पिल्ला किकियाता हुआ उठकर भागा. गुट्टू मुन्ना की आँखें भागते हुए पिल्ले को संतोष-भरी नज़र से देखती रहीं. पिल्ला एक फल वाले के खोमचे के करीब टाँगों में दुम दबाए खड़ा हो गया.
फल वाला आवाज लगा रहा था, “आम लो, लँगड़े आम!”. गुट्टू मुन्ना को एक मज़ाक़ सूझा, उसने जोर से पुकारा, “एक लँगड़े !”
चुनमुन उसकी इस बात पर हँस दी. गुट्टू मुन्ना तनककर बोला, “मेरी बात पर क्यों हँस रही हो?”
चुनमुन चबाया हुआ शक्करपारा निगलती हई बोली. “कोई भी नहीं हँस रहा. गुट्टू मुन्ना कुछ देर चुप रहा, फिर उसने एलान किया, “मुझे और भी बहुत-सी बात. आती हैं.” और चुनमुन के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा. लेकिन चुनमुन ने उसकी हँसी की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. इधर गणितज्ञ गुट्टू मुन्ना के मस्तिष्क ने उसे बताया, जिस रफ्तार से यह शक्करपारे खाए जा रही है, उससे वे शीघ्र हा समाप्त हो जाएंगे. अगर उसने अभी कुछ नहीं किया तो फिर उसकी शक्करपारे खाने की आशा मात्र आशा ही रह जाएगी.
फिर गुट्टू मुन्ना के मस्तिष्क के भीतर कहीं एक लाल बत्ती जली और उसके विचारों ने आश्चर्यजनक फुर्ती से काम करना शुरू किया. इतनी फुर्ती से कि मारते ही उनका कार्य समाप्त हो गया. गुट्टू मुन्ना को सबसे ज़बर्दस्त तरक़ीब सूझ गई. वह छलाँगें भरता हुआ अहाते के दरवाजे पर जा पहुंचा.
“अब मेरा हवाई जहाज़ चलेगा!” उसने बुलंद स्वर में घोषणा की और लपकता दरवाजे पर चढ़ गया. उसके भार से दरवाजा चरमराता हुआ आगे-पीछे घूमने लगा.
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
घर्र घर्र घर्र ढर्र ढर्र ढर्र ॐ ॐ ॐ ! गुट्टू मुन्ना का हवाई जहाज चल पड़ा. धीरे-धीरे, जैसे बिना किसी विशेष मतलब के, टहलते हुए चुनमुन हवाई जहाज के पास आकर खड़ी हो गई.
“जो हवाई जहाज पर चढ़ना चाहे चढ़ सकता है, लेकिन उसे सल्ला करना होगा और शक्करपारे खिलाने होंगे.” चालक ने आकाश में उड़ते-उड़ते ही एलान किया.
चुनमुन चुप रही. हवाई जहाज़ फ़ौरन ज़मीन पर उतर आया और चालक ने एक बार फिर से एलान किया, “हवाई जहाज पर जिसे चढ़ना हो, आ जाए.”
घर्र घर्र घर्र! हवाई जहाज स्टार्ट होने के बाद काफ़ी देर यात्री की प्रतीक्षा करता रहा. फिर यात्री को न आता देख चालक ने हवाई जहाज़ बिना यात्री के उड़ा दिया.
ऊँ ऊँ ऊँ S S S… हवाई जहाज़ वायु को चीरता हुआ तेजी से उड़ने लगा और चालक ने एक बार फिर एलान किया, “जिसे हवाई जहाज़ में आना हो, आ जाए.” फिर विज्ञापन के हथकंडे प्रयोग करता हुअ, बोला, “बड़ा ही मज़ा आ रहा है हवाई. जहाज में. ओ हो! ओ हो! अहा! ओ हो! अहा! ओ हो! जिसे आना हो, आ जाए!”
लेकिन शायद उस दिन गुट्टू मुन्ना बिल्ली का मुंह देखकर उठा था, वरना क्यों हवाई जहाज़ की बेहद शौक़ीन चुनमुन ने अपनी कल्पनाप्रियता को ताक पर रख एक रूखा यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा, “बड़ा हो रहा है यह हवाई जहाज. ऐसे हवाई जहाज़ में कौन बैठे? ये हवाई जहाज़ थोड़े है, यह तो दरवाजा है!”
हवाई जहाज़ की रफ्तार धीमी पड़ने लगी, फिर सहसा वह तेज चलने लगा और चालक चीख़ने लगा, “ओ हो! बड़ा मज़ा!…ओ हो! बड़ा मज़ा! ओ हो…”
चुनमुन कुछ देर हवाई जहाज को देखती रही और फिर, “दरवाजा, टूट जाएगा!” कहकर सीढ़ियों पर बैठ गई.
उसके सीढ़ियों पर बैठते ही हवाई जहाज़ ज़मीन पर उतर आया. चालक उसमें से कूदकर उतरा और चुनमुन के पास आकर खड़ा हो गया.
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
उसने चुनमुन को देती है या नहीं वाली खूंखार नज़रों से देखा. चुनमुन ने झट से जेब से चार शक्करपारे निकाल मुंह में एक साथ ठूंस लिए और हथेलियाँ झाड़ती हुई बोली, “अब हैं ही नहीं, ख़तम! अब हैं ही नहीं, ख़तम!”
इस बात ने जैसे गुट्टू मुन्ना के गालों पर दो करारे चाँटे जड़ दिए.
गुस्से से उसका चेहरा तमतमा उठा और उसका मुँह निराशा की कड़वाहट से भर आया. उसने फिर आव देखा न ताव, धड़ाधड़ चुनमुन को दो-तीन घूसे जड़ दिए. चुनमुन रोने लगी. उसके रोते ही गुट्टू मुन्ना को ध्यान आया कि वह कितनी बड़ी भूल कर बैठा.
“मत रो चुनमुन!” उसने कहा, “मत रो!” फिर कुछ रुककर, “मत रो!”
मगर चुनमुन थी कि “पैं- पैं” लगाती ही रही और फिर हुआ वही जो होना था. चुनमुन की माँ घर से निकल आई और पिसे मसाले से सनी अपनी हथेलियां गुट्टू मुन्ना और चुनमुन के गालों पर जमा गई. फिर उसने घर का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया और चुनमुन को संबोधित करके चीख़ी, “अब देख, कौन तुझे भीतर और देता है!”
मार खाकर दोनों बच्चे सीढ़ियों पर बैठे रोते रहे, फिर कुछ ऐसा संयोग हुआ कि दोनों ने एक-दूसरे के चहरे को देखा. डबडबाती हुई सूजी-सूजी आँखें, मसाले से पुते हुए गाल, बिखरे हुए बाल, फड़फड़ाती हुई नाक की नोंके. उनका चेहरा देखकर हँसी रोकी नहीं जा सकती थी.
तो पहले चुनमुन हँसी. फिर गुट्टू मुन्ना हँसा. गुट्टू मुन्ना ने पूछा, “क्यों हँस रही हो?” चुनमुन बोली, “तू क्यों हँस रहा है?”
गुट्ट मुन्ना ने जवाब दिया, “मैं तो तेरी शक्ल देखकर हँस रहा हूँ. बंदर-जैसी लग रही हो.”
चुनमुन बोली, “मैं भी तेरी शक्ल देखकर हँस रही हूँ. बंदर-जैसा लग रहा है.” गुट्टू मुन्ना ने अपने दिमाग पर जोर दिया और फिर सहसा प्रेरणा पाकर बोला, “हम दोनों की शक्ल बंदर-जैसी लग रही है. चल, पनवाड़ी के आईने में जाकर देखें!”
(Shkakkrpare Manohar Shyam Joshi Story)
मनोहर श्याम जोशी
मनोहर श्याम जोशी : भारतीय टीवी धारावाहिक के जनक
इसे भी पढ़ें: मनोहर श्याम जोशी की कहानी ‘उसका बिस्तर’
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…