सभी जानते हैं कि बादशाह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज़ से बहुत प्यार करते थे. अपनी बेगम की याद में संगमरमर की इमारत तामीर कराई थी, जिसको हम ताजमहल के नाम से जानते हैं. यह दुनिया के सात अजूबों में से एक है. संगमरमर की इस इमारत की खूबसूरती ने शायरों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा. शायद इसी वजह से दुनिया भर के नामचीन शायरों ने भी ताजमहल को अपना उनवान बनाकर शायरी की है. यहां पेश है ताजमहल पर कुछ शायरों की गजलें और शेर-
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है
– शकील बदायूंनी
है किनारे ये जमुना के इक शाहकार
देखना चाँदनी में तुम इस की बहार
याद-ए-मुमताज़़ में ये बनाया गया
संग-ए-मरमर से इस को तराशा गया
शाहजहाँ ने बनाया बड़े शौक़ से
बरसों इस को सजाया बड़े शौक़ से
हाँ ये भारत के महल्लात का ताज है
सब के दिल पे इसी का सदा राज है
– अमजद हुसैन हाफ़िज़
अल्लाह मैं यह ताज महल देख रहा हूँ
या पहलू-ए-जमुना में कँवल देख रहा हूँ
ये शाम की ज़ुल्फ़ों में सिमटते हुए अनवार
फ़िरदौस-ए-नज़र ताजमहल के दर-ओ-दीवार
अफ़्लाक से या काहकशाँ टूट पड़ी है
या कोई हसीना है कि बे-पर्दा खड़ी है
इस ख़ाक से फूटी है ज़ुलेख़ा की जवानी
या चाह से निकला है कोई यूसुफ़-ए-सानी
– महशर बदायूंनी
ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा यह महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
– साहिर लुधियानवी
संग-ए-मरमर की ख़ुनुक बाँहों में
हुस्न-ए-ख़्वाबीदा के आगे मेरी आँखें शल हैं
गुंग सदियों के तनाज़ुर में कोई बोलता है
वक़्त जज़्बे के तराज़ू पे ज़र-ओ-सीम-ओ-जवाहिर की तड़प तौलता है
– परवीन शाकिर
ये धड़कता हुआ गुम्बद में दिल-ए-शाहजहाँ
ये दर-ओ-बाम पे हँसता हुआ मलिका का शबाब
जगमगाता है हर इक तह से मज़ाक़-ए-तफ़रीक़
और तारीख़ उढ़ाती है मोहब्बत की नक़ाब
चाँदनी और ये महल आलम-ए-हैरत की क़सम
दूध की नहर में जिस तरह उबाल आ जाए
ऐसे सय्याह की नज़रों में खुपे क्या ये समाँ
जिस को फ़रहाद की क़िस्मत का ख़याल आ जाए
दोस्त मैं देख चुका ताजमहल
वापस चल
– कैफ़ी आज़मी
हम-तुम आज खड़े हैं जो कन्धे से कन्धा मिलाये,
देख रहे हैं दीर्घ युगों से अथक पाँव फैलाये
व्याकुल आत्म-निवेदन-सा यह दिव्य कल्पना-पक्षी
क्यों न हमारा र्ह्दय आज गौरव से उमड़ा आये
मैं निर्धन हूँ, साधनहीन, न तुम ही हो महारानी
पर साधन क्या? व्यक्ति साधना ही से होता दानी
जिस क्षण हम यह देख सामनें स्मारक अमर प्रणय का
प्लावित हुए, वही क्षण तो है अपनी अमर कहानी
-सच्चिदानंद हीरानंद वा्स्यायन “अज्ञेय”
कितने हाथों ने तराशे यह हसीं ताजमहल
झाँकते हैं दर-ओ-दीवार से क्या क्या चेहरे
– जमील मलिक
तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा
ताजमहल बन जाए अगर मुमताज़ कहाँ से लाऊँगा
– साग़र आज़मी
ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मअ’नी
– साहिर लुधियानवी
झूम के जब रिंदों ने पिला दी
शैख़ ने चुपके चुपके दुआ दी
एक कमी थी ताजमहल में
मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी
– कैफ भोपाली
लफ्ज़ में दिल का दर्द समो दो शीशमहल बं जाएगा
पत्थर को आंसू दे दो ताजमहल बन जाएगा
– डॉ. सागर आजमी
मैनें शाहों की मुहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है
– डॉ. राहत इंदौरी
कितने हाथों ने तराशे ये हसीं ताजमहल
झाँकते हैं दर-ओ-दीवार से क्या क्या चेहरे
– जमील मलिक
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
वही उलझन घड़ी घड़ी पल पल
मेरा जीना है सेज काँटों की
उन के मरने का नाम ताजमहल
– अज्ञात
ज़िंदा है शाहजहाँ की चाहत अब तक,
गवाह है मुमताज़़ की उल्फत अब तक,
जाके देखो ताजमहल को ए दोस्तों,
पत्थर से टपकती है मोहब्बत अब तक
– अज्ञात
ताजमहल दर्द की इमारत है
नीचे दफन किसी की मोहब्बत है
– अज्ञात
जलते बुझते से दिए, ज़ीस्त की पहनाई में
वक़्त की झील में, यादों के कँवल
दूर तक धुँद के मल्बूस में
मानूस नुक़ूश , चाँदनी रात पवन
ताजमहल
– अज्ञात
सिर्फ इशारों में होती मुहब्बत अगर,
इन अलफाज को खूबसूरती कौन देता?
बस पत्थर बन के रह जाता ताजमहल
अगर इश्क इसे अपनी पहचान न देता
– अज्ञात
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बदायूं के रहने वाले अरशद रसूल 2007 से पत्रकारिता से जुड़े हैं. अब तक अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान अखबारों में काम कर चुके अरशद वर्तमान में स्वतंत्रत पत्रकार के रूप में कार्य कर रहें हैं.
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