उत्तराखण्ड की एक और पर्वतारोही शीतल राज ने एवरेस्ट फ़तेह कर प्रदेश का मान बढाया है. बछेंद्री पाल और चंद्रप्रभा ऐतवाल की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली शीतल कुमाऊँ मंडल के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय के नजदीक के गाँव सल्मोड़ा की रहने वाली हैं. शीतल एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं जिन्हें एक एनसीसी कैडेट के रूप में पर्वतारोहण के क्षेत्र में कदम रखने का मौका मिला.
साल 2013 में शीतल ने मात्र 16 साल की उम्र में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेने की शुरुआत की.
2015 में शीतल ने ‘हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटनियरिंग’ दार्जिलिंग से पर्वतारोहण का अडवांस कोर्स किया. इसके बाद शीतल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
विभिन्न दुर्गम चोटियों पर विजय पाने की बाद आज शीतल ने एवरेस्ट फतह करने में कामयाबी हासिल की. शीतल के कोच एवरेस्ट विजेता योगेश गर्ब्यांग ने बताया कि शीतल सोमवार को बेस कैंप से एवरेस्ट फतह के लिए निकली थीं.
एवरेस्ट के विभिन्न पड़ावों से होती हुई शीतल 15 मई की रात एवरेस्ट की चोटी फतह करने निकलीं. आज सुबह शीतल ने एवरेस्ट फतह करने में कामयाबी हासिल की.
इससे पहले शीतल विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा (8586 मीटर) को सबसे कम उम्र में फतह करने का भी रिकॉर्ड बना चुकी हैं. शीतल ने जब कंचनजंघा फतह की तब वे मात्र 22 साल की थीं.
इससे पूर्व शीतल, 2014 में रुद्रगैरा (5950 मीटर ,) 2015 में देवटिब्बा 6001 मीटर,) 2015 में ही त्रिशूल (7120 मीटर,) 2017 में सतोपंथ (7075 मीटर,) आदि चोटियों को भी फतह कर चुकी हैं.
एवरेस्ट विजय के लिए शीतल ने पिथौरागढ़ की पंचाचूली पर्वतश्रंखलाओं में गहन अभ्यास किया था. उसके बाद लद्दाख में भी पर्वतारोहण का अभ्यास किया. इस गहन अभ्यास और जीवटता की बदौलत ही शीतल ने मात्र 24 साल की उम्र में एवरेस्ट फ़तेह का दुर्लभ कारनामा कर दिखाया है. शीतल की इस उपलब्धि ने उत्तराखण्ड राज्य को पुनः गौरवान्वित किया है.
शीतल चंद्रप्रभा ऐतवाल और लवराज धरमशक्तू को अपना प्रेरणास्रोत बताती रही हैं.
उत्तराखण्ड का नाम सगरमाथा के माथे पर लिख देने वाली महिला
जिस महिला पर उत्तराखण्ड हमेशा नाज करेगा
एवरेस्ट मेरा भगवान है – लवराज सिंह धर्मसक्तू
फोटो: शीतल के फेसबुक से
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