सिंगल होना ब्रह्माण्ड का डिजाइन है. आदमी सिंगल पैदा होता है, सिंगल ही मरता है. चूंकि ये दोनों ही जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधायक तत्व हैं लिहाज़ा आदमी सिंगलत्व की भावना से उम्र भर दग्ध रहता है. जो जितना गहरा दग्ध होगा वह उतना ही इस आग से बाहर निकलने के लिए छटपटायेगा. सिंगल से डबल ट्रिपल की ओर बढ़ना आत्मा की आध्यात्मिक यात्रा है. यह इतनी आध्यात्मिक यात्रा है कि दुनिया छोड़ कर साधु संत बने लोग भी देर सवेर इसी रास्ते पर चोरी-छुपे आ ही जाते हैं.
(Shankhdhar Dubey Satire)
सिंगलत्व को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है. भारत में बल्कि समूचे संसार में बुनियादी तौर से तीन तरह के ‘सिंगल’ पाए जाते हैं –
1. अखंड सिंगल
2. सिंगल
3. मैरिड बट सिंगल
उदारीकरण और उधारीकरण के इस दौर में ऐसे लोगों की संख्या में भारी गिरावट आयी है.पर फिर भी कुछ अभिशप्त आत्माएं अब भी इस श्रेणी में अटकी रह गयी हैं.इस श्रेणी में ऐसे युवा और अधेड़ आते हैं जिनकी कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं होती.इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ इनका नेशनल एंथम होता है.वे कोशिश कर कर के इतना टूट चुके होते हैं कि कोशिश करना भी बंद कर देना चाहते हैं. पर कहते हैं न चोर-चोरी से जाये हेराफेरी से नहीं जाता. इसी तर्ज पर अभी भी हाथ पाँव मार लेते हैं. चेहरे पर अतिशय मासूमियत और आँखों में तरलता होती है. वे इतने अनुभवशून्य होते हैं कि अपने प्रेम पात्रा तक को चुपके चुपके देखते हैं. सामने आ जाने पर हाथ पाँव कांपने लगते हैं. छोटे-छोटे लक्ष्य न होने के कारण ये बड़े बड़े लक्ष्य लेकर चलते हैं. कुछ हताश युवक इतने हताश हो जाते हैं कि संस्कृति रक्षा दल में शामिल हो जाते हैं और दूसरों को डंडे के बल पर प्रेम में पड़ने से रोकते हैं.जीवन में लगभग हर कोई होंठ चाटते हुए इस दौर से गुजरा है लेकिन दुर्भाग्य से कुछ लोगों के लिए यह मंज़िल सी हो जाती है वे चाह कर भी कुछ कर नहीं पाते लिहाज़ा वे अखंड सिंगलत्व को अभिशाप की तरह भोगते हैं. अरेंज मैरिज ही इनकी मुक्ति का द्वार है.
(Shankhdhar Dubey Satire)
इस श्रेणी में वे बाल, युवा, अधेड़, अबाल वृद्ध आते हैं जिनकी पहले ही एक दो गर्लफ्रेंड रह चुकी होती है. वे गर्लफ्रेंडवान होते हुए भी दूसरी, तीसरी और चौथी की खोज में रहे रहते हैं. जीवन उनके लिए कोई मंजिल नहीं बस एक रास्ता है. वे चिर अन्वेषक हैं. वे कभी संतुष्ट नहीं होते बल्कि वर्तमान से तो कत्तई संतुष्ट नहीं होते. कमिटमेंट से डरते हैं, बियाह से दूर भागते हैं. पर बारात शौक से जाते हैं. संख्या के लिहाज़ से ये दूसरे नंबर पर आते हैं.
जैसा कि वर्गीकरण से ही स्पष्ट है इसमें ऐसे लोग आते हैं जो शादीशुदा हैं किन्तु उनके हिसाब से ‘भरी जवानी’ में ही दुनिया का मेला उठ रहा है. वे ऊपर से शांत पैंट की जेब में हाथ डाले मेला घूम रहे होते हैं पर भीतर ही भीतर फडफ़ड़ा रहे होते हैं. उन्हें लगता है कि जीवन में उन्हें सच्चा प्यार नहीं मिला,जिसे चाहा वो मिली नहीं जो मिली उससे मुहब्बत न हुईं. लेकिन गौरतलब बात यह है कि जिसे चाह रहे थे वह मिल भी जाती तो भी यही कर रहे होते.इस श्रेणी का जो व्यक्ति जितना सेटल होता है लाइफ में समानुपातिक रूप से उसके सिंगलत्व की भावना गहन होती जाती है. जैसे जैसे आदमी की पद और प्रतिष्ठा बढ़ती जाती है वह उत्तरोत्तर और सिंगल होता जाता है. अब वह किसी के सौंदर्य का अतिश्योक्ति में वर्णन करता है.खिजाब से मूछें रंगता है.पेशेवर तरीके से झूठ बोलता है.इस तरह से उपजे अपराधबोध को कम करने के लिए घर जाकर पत्नी को (अपनी ही) बहुत प्यार करता है. इस श्रेणी के जयादातर आदमियों का दिल इतना बड़ा होता है कि वे जान ही नहीं पाते कि वास्तव में अपने फैटी लीवर वाले दिल में कितना प्यार समेत सकते हैं. अपने खूंखार इरादों पर वे विनम्रता का आवरण रखते हैं. विश्व में ऐसे लोगों की संख्या सर्वाधिक है.
(Shankhdhar Dubey Satire)
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मूलतः बस्ती के रहने वाले शंखधर दूबे, वर्तमान में राज्य सभा सचिवालय में कार्यरत हैं. महीन व्यंग्य, सरल हास्य और लोक रस से सिंचित उनके लेखन में रेखाचित्र, कहानी, संस्मरणात्मक किस्सों के साथ-साथ शीघ्र प्रकाश्य चुटीली शैली का उपन्यास भी है. शंखधर फेसबुक पर अत्यंत लोकप्रिय लेखकों में से हैं.
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