प्रेम
- शमशेर बहादुर सिंह
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
कुशल कलाविद् हूँ न प्रवीण
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
केवल भावुक दीन मलीन
फिर भी मैं करता हूँ प्यार.
मैंने कितने किए उपाय
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
सब विधि था जीवन असहाय
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
सब कुछ साधा, जप, तप, मौन
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
कितना घूमा देश-विदेश
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
तरह-तरह के बदले वेष
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम.
उसकी बात-बात में छल है
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
माया ही उसका संबल है
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
वह वियोग का बादल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
छाया जीवन आकुल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर
वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.
13 जनवरी 1911 को देहरादून में जन्मे शमशेर बहादुर सिंह बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कविता के सबसे ख्यात कवियों में से एक थे. वर्ष 1977 में उनके संग्रह ‘चुका भी हूँ मैं नहीं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का तुलसी पुरस्कार भी दिया गया. उनकी लम्बी कविता ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ को आधुनिक हिन्दी साहित्य की सबसे बड़ी प्रेम कविताओं में शुमार किया जाता है. 12 मई 1993 को उनकी मृत्यु हुई.
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