दिल्ली पहुँचते ही सबसे पहले लोकतंत्र में अपने हक़ों की लड़ाई की उस ख़ूबसूरत तस्वीर को देखने शाहीन बाग आया हूँ जिसके बूते किसी भी लोकतांत्रिक देश का वजूद टिका रहता है. जैसे-जैसे शाम ढल रही है वैसे-वैसे लोगों का हुजूम शाहीन बाग की तरफ़ अपना रुख़ कर रहा है. क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम और क्या ही दूसरे समुदाय के लोग. लगभग हर कोई इस आंदोलन का हिस्सा बना हुआ है. यकीनन मुस्लिमों की संख्या ज़्यादा है क्योंकि जो कुछ भी जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुआ और उसके बाद जिस तरह पुलिस द्वारा लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से बलपूर्वक रोका गया तब से ही 15 दिसम्बर, 2019 से यह आंदोलन शुरू हुआ और नए साल के आगाज तक भी हज़ारों की भीड़ लिए शांतिपूर्वक तरीक़े से जारी है. (Shaheen Bagh Protest)
इस आंदोलन की अगुवाई महिलाएँ कर रही हैं. खासकर मुस्लिम महिलाएँ जिन्हें हमेशा बुर्के या हिजाब में रहने की सलाह दी जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता शाहीन कौसर इस पूरे आंदोलन की मंच से मेज़बानी कर रही हैं. सभी सामाजिक बंधनों को तोड़कर दुधमुँहे बच्चों को गोद में लेकर भी हजारों महिलाएँ रात-रात भर शाहीन बाग में डटी हुई हैं और इनके हौसले की हौसला अफजाई कर रही हैं वो बुजुर्ग महिलाएँ जिन्हें उम्र के इस पड़ाव में ठंड से बचने की सख़्त हिदायत दी जाती है. इन महिलाओं का मानना है कि सात पीढ़ियों से हम इस मुल्क के बाशिंदे रहे हैं और कल कोई भी हमसे हमारे हिन्दुस्तानी या वतनपरस्त होने का सबूत मांगे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. ये बुजुर्ग महिलाएँ अपने हिस्से की ज़िंदगी जी चुकी हैं लेकिन अपनी बची हुई पीढ़ी को उस अंधेरे में खोता हुआ नहीं देखना चाहती जिसकी आशंका उनके दिलोदिमाग़ में घर कर गई है.
शाहीन बाग में चल रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन को लेकर बहुत सी अफ़वाहें लोगों तक पहुँचाई जा रही है. जैसे कि महिलाएँ वहां हथियार लेकर बैठी हैं या फिर यह आंदोलन सिर्फ मुस्लिम दिमाग़ों की उपज है जबकि वहॉं जाने के बाद समझ आया कि यह किसी समुदाय विशेष का आंदोलन नहीं है बल्कि नागरिकता संसोधन क़ानून के बाद संभावित NRC और उसकी अस्पष्टता को लेकर सभी समुदायों की मुखर आवाज़ है. प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच इस बात को लेकर भी आशंका है कि NPR के बाद सरकार ने जो NRIC करवाने की बात की है उसको लेकर भी कोई स्पष्टता लोगों तक नहीं पहुँचाई गई है. नागरिकता संसोधन क़ानून की संवैधानिक वैधता को पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है जिसकी सुनवाई 22 जनवरी को होनी है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कोर्ट का फ़ैसला आने तक वह शांतिपूर्ण तरीक़े से शाहीन बाग में डटे रहेंगे.
इससे पहले 1 जनवरी को बॉलिवुड की जानी मानी हस्तियों में से शबाना आजमी, प्रकाश राज, स्वरा भास्कर, जिशान अयूब आदि ने जामिया और शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच अपनी बात रखी और लोगों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील की.
आज जब मैं इस प्रदर्शन को कवर करने आया हूँ तो स्वामि अग्निवेश अपनी बात लोगों के बीच रख रहे हैं. वो लोगों से अपील कर रहे हैं कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण ही रहना चाहिए. कुछ असामाजिक तत्व जरूर सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश करेंगे लेकिन शाहीन बाग ने अब तक जिस संयम और शांति की मिसाल क़ायम की है वह आगे भी जारी रहनी चाहिये. हज़ारों की भीड़ से भरा हुआ पंडाल ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और हदीस में लिखे ‘अल खलको हयातुल्ला’ (हम सब एक हैं) के नारों से गूंज रहा है. साथ ही लोग संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’ को खुद में आत्मसात कर और राष्ट्रगान गा कर शाहीन बाग व जामिया में आए लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार कर रहे हैं.
मेनस्ट्रीम मीडिया को इस तरह के प्रदर्शन को कवर करने में कोई ख़ास दिलचस्पी नज़र नहीं आ रही. कुछ छोटे-मोटे चैनलों को छोड़कर कोई बड़ा चैनल शाहीन बाग की ग्राउंड रिपोर्टिंग करता नज़र नहीं आया. लेकिन सोशल मीडिया इस पूरे आंदोलन को लीड कर रहा है. शाहीन बाग के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को लेकर सोशल मीडिया भरा पड़ा है. पूरा शाहीन बाग जगह-जगह पोस्टरों से पटा हुआ है. कहीं भारतीय संविधान की प्रस्तावना लगी हुई है तो कहीं बाबा साहेब अम्बेडकर की हाथ में संविधान की प्रति लिए फ़ोटो. तरह-तरह के इंक़लाबी नारों व पोस्टरों से शाहीन बाग गूंज रहा है. जहाँ फ़ैज़ की एक नज्म को लेकर इतना बवाल मचा हुआ है वहीं लोग गा रहे हैं-
“कमाने वाला खाएगा,
लूटने वाला जाएगा,
नया जमाना आएगा.”
स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन आंदोलनकारियों को मिल रहा है. उनके खाने पीने से लेकर रात भर धरने में बैठने व ठंड से बचने के लिए बिस्तर आदि की व्यवस्था स्थानीय लोग कर रहे हैं. महिला व पुरुष वालंटियर को लगाया गया है जो पूरे प्रदर्शन में लोगों को हो रही समस्याओं का निदान कर रहे हैं और समय-समय पर लोगों को खाना-पीना मुहैया करवा रहे हैं. लोगों को संयम बरतने व शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रदर्शन करने की अपील बार-बार मंच से की जा रही है ताकि किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना इस आंदोलन को बदनाम न कर सके.
लोगों से पूछने पर कि आख़िर क्यों वो इस तरह का प्रदर्शन कर रहे हैं? जवाब मिलता है कि सरकार अपने निर्णय को लेकर खुद ही स्पष्ट नहीं है. पहले ही नागरिकता संशोधन क़ानून धर्म को आधार बनाकर लागू किया गया जिसमें सिर्फ मुसलमानों को अलग रखा गया. फिर NRC को लेकर सरकार के नुमाइंदों में ही विरोधाभास सामने आया. माननीय गृहमंत्री संसद के पटल से ज़ोर देकर कहते हैं इस देश में NRC होकर रहेगा. फिर वो इसकी क्रॉनोलॉजी भी समझाते हैं कि यह सिर्फ बंगाल के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए आएगा. उसके बाद माननीय प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि 2014 के बाद से आज तक उनकी सरकार में NRC को लेकर कोई ज़िक्र ही नहीं हुआ. उसके बाद गृहमंत्री पुन: कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी सही कह रहे हैं. आखिर हम किस पर भरोसा करें?
शाहीन बाग के आंदोलनकारियों की सबसे बड़ी तकलीफ़ यह है कि अभी तक सरकार का कोई भी नुमाइंदा उनसे बात करने नहीं आया है जो उन्हें इस बात का आश्वासन दे कि नागरिकता संसोधन क़ानून में इस देश के मुसलमानों के हित सुरक्षित हैं और इसके बाद देश में NRC लागू होने नहीं जा रहा. यदि NRC लागू होता है तो वह न सिर्फ़ इस देश के मुसलमानों को प्रभावित करेगा बल्कि उन सभी समुदाय के लोगों को परेशानी में डालेगा जिन्हें अपने काग़ज़ दिखाने होंगे और हम यह सब असम में पहले ही देख चुके हैं. प्रदर्शनकारियों का मानना है कि जब तक सरकार का कोई नुमाइंदा उनसे बात नहीं करता और CAA/NRC/NPR/NRIC को लेकर उनके मन में उठ रही आशंकाओं पर उन्हें पूर्ण रूप से आश्वस्त नहीं करता तब तक यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन यूँ ही जारी रहेगा.
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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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लेखक आंदोलन प्रेमी प्रतीत होते हैं, बहुत अच्छी बात है । लोकतंत्र जनता को सरकार के सही/ग़लत निर्णय के खिलाफ आवाज उठाने की बात का समर्थन करता है, लेकिन पूरा लेख पढ़कर 2 बातें सामने आईं हैं, पहली, CAA के विरोध में मुस्लिम समाज द्वारा घटिया तर्क दिया जा रहा है कि हमारी कई पीढ़ियां यहां रह चुकी हैं, कोई हमसे नागरिकता साबित करने को नहीं कह सकता । देश को एकसूत्र में पिरोने में उनकी भूमिका अड़चन पैदा करने की क्यूं ? दूसरी बार NRC आज लागू हो या कल इससे आपको क्या फर्क पड़ता है कि राजनेता इस मुद्दे पर असमंजस में हैं ? रही बात सड़क घेरकर (जनता को परेशान कर) आंदोलन को महिलाओं द्वारा संचालित करने की तो सर यह उत्पाती क़ौम है, घर बैठकर बैचेन महसूस करते हैं । कुछ बेवकूफ हिन्दू ( सेक्युलर ) इस आंदोलन को इसलिए समर्थन दे रहे हैं कि सरकार के खिलाफ खड़े होना हमेशा फ़ैशन में रहा है ।