अमित श्रीवास्तव

लाइव के मौसम में एक जरूरी कथा

[अमित श्रीवास्तव की यह ताज़ा कहानी सच की अनेक परतों के बीच डूबती-उतराती रहती है. यह आधुनिक समय की अनेक ऐसी विद्रूपताओं के ऊपर पड़े जालों को साफ़ करता हुआ एक दस्तावेज है जिसे पढ़कर हमें अपने ही अवचेतन के तमाम अनदेखे रंग दीखते हैं और नए तरीके से समझ में आने लगते हैं – सम्पादक. Season of Live Appearances Story by Amit Srivastava]

इज़राइल ने आख़िर ऐसा क्या खोज लिया

वो सात बजे आने वाला था. लाइव. अमूमन वो इसी वक्त आता था. इस बार किसी पत्रिका के फेसबुक पेज पर आना था उसे. मुझे उसकी बातें अच्छी लगती थीं या शायद उसके बोलने का ढंग या शायद आवाज़. मैं अबतक हुए उसके सातों लाइव सुन-देख चुका था. अगर किसी वजह से लाइव देखना भूल गया, क्योंकि ठीक पौने सात बजे आजकल वंदना की कॉल आ जाया करती थी और वो चार बजे के मेडिकल बुलेटिन की डीटेल्स पूछती थी, तो मैं उसका वीडियो देख लिया करता था. आज उसने कहा था कि वो किसी इज़राइली खोज के बारे में बताएगा. मुझे इज़राइल में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे खोज-वोज में भी कोई रुचि नहीं थी मुझे तो बस उसे लाइव देखना था. क्योंकि पिछला लाइव जब उसने किया था, तकरीबन दस दिन पहले, तब किसी कविता की लाइनें भी सुनाई थीं. मुझे जानना था कि वो कविता किसकी थी. हालांकि मुझे वो लाइने याद नहीं, मुझे उसके किसी लाइव की कोई बात याद नहीं और आजतक मैंने कभी उससे लाइव के दौरान कोई प्रश्न भी नहीं किया, लेकिन फिर भी. Season of Live Appearances Story by Amit Srivastava

पौने सात हो गए और वंदना का फोन नहीं आया. मेरे लिए उसके फोन के बाद या उससे बात करने के दौरान भी कुछ और याद रखना मुश्किल हो जाता है. वो प्रश्न ही इतने कम करती है कि लगता है उसे सबकुछ बताना है और फिर सबकुछ की याद में कुछ याद नहीं रहता. 

पन्द्रह और मिनट थे जो मुझे बिताने थे. मैं फेसबुक पर स्क्रॉल करने लगा. वैसे उसकी वॉल से लाइव आने की सूचना का नोटिफिकेशन तो मुझे आना ही था, मैंने उस पत्रिका के लाइव नोटिफिकेशन का ऑप्शन भी खोल लिया था, फिर भी मैंने सर्च बॉक्स में संस्था का नाम डाला `लोकतंत्र पाक्षिक’ और उसके पेज पर आ गया. पहले भी गाहे-बगाहे आता रहा हूँ. मुझे उसकी कवर फ़ोटो पर लिखे लोकतंत्र के लोक पर लगे उद्धरण चिह्न आकर्षित करते थे. लाइव शुरू नहीं हुआ था. किसी की असमय मृत्यु की सूचना थी. एक बार घड़ी की ओर नज़र डालकर मैंने आँखे स्क्रीन पर गड़ा दीं. अरे! उफ्फ ये मैं क्या देख रहा हूँ. `सभी सम्मानित साथियों को खेद सहित यह सूचना दी जा रही है कि अभी कुछ ही समय पूर्व यह पता चला है कि आज अचानक श्री राजीव भाटिया जी की असामयिक मृत्यु हो गई है. हम उनकी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं और शोकाकुल परिवार के इस असीमित दुःख में संवेदना प्रकट करते हैं. ईश्वर उन्हें सम्बल दे.’ इसके नीचे राजीव की फोटो के ठीक ऊपर यह भी लिखा था `आज का लाइव कार्यक्रम स्थगित किया जाता है. अगले लाइव की सूचना शीघ्र आपको दे दी जाएगी.’ 

ये कैसे हो सकता है. राजीव तुम… मैंने तीन बार इस सूचना को पढ़ने के बाद राजीव का नम्बर लगाने के लिए अपना फोन उठाया और… मेरी उँगलियाँ क्यों कांप रही हैं? मैं उसका नम्बर क्यों नहीं ढूँढ पा रहा हूँ… काफी देर मशक्कत के बाद लगा कि शायद उसका नम्बर किसी और नाम से सेव्ड हो. किस नाम से?

इस बीच मैं कई बार उस पेज को देख चुका हूँ `सभी सम्मानित… राजीव… राजीव’ अब कई कमेंट भी आ गए हैं. ‘दुःखद!’ ‘आरआईपी’ ‘दुःखद दुःखद’  

ओह्ह हाँ! दुखी आत्मा, हाँ! दुखी आत्मा नाम से सेव् है नम्बर

मैं मिलाता हूँ. उधर से बीमारी से बचाव और कुछ सूचनाएं आती हैं. मेरी घबराहट बढ़ती जाती है. सूचना एक बार पूरा बोलने और दूसरी बार चौथाई बोलने के बाद रुक जाती है. मेरी धड़कन तेज़ हो जाती है. बहुत देर तक मुझे काले निर्वात में मेरी ही धड़कनों की आवाज़ और सांस की सरसराहट सुनाई देती है, जैसे बहुत तेज़ गति से कोई सांप चल रहा हो. उधर से कोई नहीं बोलता. कोई आवाज़ नहीं. घण्टी जाने की आवाज़ भी नहीं.

कई मिनट बीत गए हैं. मैं वापस स्क्रीन को देखता हूँ. इस पोस्ट पर कमेंट बढ़ते जा रहे हैं. अब लम्बे-लम्बे कमेंट्स भी आ गए हैं. कुछ लोग उसे टैग करते हुए भी कमेंट कर रहे हैं. मेरा हाथ माउस पर जाता है और बिना किसी अहसास के मैं उसके नाम पर क्लिक कर देता हूँ. 

`राजीव-राजीव’ 

उसकी वॉल खुल जाती है. उसका गम्भीर चेहरा दिखता है. उसका कोई वीडियो चल रहा है. नहीं! मैं धक् से रह जाता हूँ. लाइव चल रहा है. अरे! ये तो ये जीवित है. 

खुशी के मारे मैं कमेंट करने की सोचता हूँ, नहीं, सहज उत्साह के मारे, नहीं नहीं, महज इस बात के जानकार होने के मारे. फिर रुक जाता हूँ. मुझे पहले उस पत्रिका के पेज पर जाकर बताना चाहिए. मैं दौड़कर, अगर यहाँ किसी चीज़ को दौड़ना कह सकें, उस पेज पर जाता हूँ. वो बैनर अब भी लगा है. कमेंट्स की संख्या बढ़ गई है. मैं भी इस जानकारी को शेयर करने के लिए कमेंट बॉक्स में कर्सर ले जाता हूँ.

`सब को बताते हुए…’ `ना! ना!’ डिलीट कर देता हूँ. `राजीव… ज़िंदा होने की सूचना’ लिखते-लिखते मेरी नज़र अभी-अभी आए एक कमेंट पर पड़ती है `ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति दे.’ दयानन्द तिवारी. नाम कुछ जाना-पहचाना सा लगता है. सुना सा तो लगता नहीं, कहीं देखा है. अरे ये… मैं जल्दी से एंटर बटन दबा कर वापस राजीव की वॉल पर आता हूँ. 

लाइव चल रहा है. हाँ-हाँ लाइव ही है. राजीव के ठीक पीछे एक दीवार दिखती है जिसकी खिड़की पर गहरे रंग के पर्दे हैं. खिड़की से ज़रा सा ऊपर बीचोबीच में एक घड़ी है. समय बिल्कुल वही है जो मेरे मोबाइल में दिख रहा है. राजीव के दाहिनी तरफ एक साइड टेबल है जिसपर टेबल कैलेंडर है. आज की डेट खुली हुई है. और तो और स्क्रीन पर बाएं कोने में लाइव लिखा आ रहा है. इससे ज़्यादा प्रमाण मैं खुद को नहीं दे सकता था.

मैं यहाँ क्या करने आया था? कुछ कमेंट आ गए हैं, मैं उन्हें पढ़ने लगता हूँ. `नमस्ते’ `नमस्ते भाई वाह बढ़िया’ जैसे कमेंट्स बहुत से हैं. एक नाम पर ठहर जाता हूँ. हाँ! दयानन्द तिवारी. पूछ रहे हैं कि `चाइना के करामात के बारे में कुछ बोलेंगे या बस…’ मैं आगे नहीं पढ़ पाता हूँ. ये शख्स यहाँ तो कुछ और ही कह रहा, वहाँ उस पेज पर… मैं जल्दी-जल्दी स्क्रॉल करते हुए पुराने कमेंट्स पर जाता हूँ. ना! किसी ने कुछ भी मेंशन नहीं किया है. मैं सारे नाम नोट करता हूँ. `इज़ वाचिंग विद यू’ वाले भी, कमेंट करने वाले भी और वापस उस पेज पर जाता हूँ. वहीं, पत्रिका वाले पेज पर.

एक, दो, तीन, पांच, बारह, एक दो और होंगे. दर्जन भर से ज़्यादा लोग दोनों जगहों पर हैं लेकिन किसी ने कुछ भी मेंशन नहीं किया है, न यहाँ, न वहाँ. 

ऐसा तो नहीं ये कोई और राजीव हो? लेकिन फिर याद आता है कि राजीव ने इस लाइव का पोस्टर अपनी वॉल पर भी लगाया था. हालांकि ये शक़ पहले होना चाहिए था. मैं शक़ और विश्वास के बीच तेज़ झूलने लगता हूँ. सांप की सरसराहट थोड़ा और बढ़ गई है. Season of Live Appearances Story by Amit Srivastava

मेरी सांस फूलने लगी है, मुझे उबकाई आ रही है, मैं पसीने से तर बतर हो रहा हूँ. 

मैं उस पेज पर अपने लिखे कमेंट पर जाता हूँ. उसके नीचे तीन और कमेंट्स शोक संवेदना के हैं, पर मेरे कमेंट पर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया है. कायदे से अब मुझे राजीव की वॉल पर ही लिखना पड़ेगा. क़ायदा अगर ये है तो अराजकता क्या होती होगी?

मैं टाइप करने के लिए शब्द ढूँढता हूँ ‘आप को बताना था कि’ नहीं! थोड़ा मज़ाक सा लिखना होगा. हल्का-फुल्का. ‘अरे आप ज़िंदा हो’ नहीं! नहीं! ‘वहाँ उस पेज पर आपकी मौत का शोक मनाया जा रहा है…’  लिखकर मैं आँखे बंद कर लेता हूँ. 

ऐसे कितनी देर तक रहा जा सकता है? मैं आँखे खोलता हूँ. ना कोई लाइक, ना कमेंट. मुझे राजीव की बात सुननी चाहिए, शायद वो ही इसका जवाब दे.

‘ये एक अलग तरह का साम्राज्यवाद है. इसमें चीन जैसे देश ‘वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन’ बनाते हैं तो एक ऐसा देश जो इतना ताकतवर है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद उसने सभी देशों को उंगलियों पर नचा दिया था, भी लगता है घुटने टेक देगा. बायो वार है, थर्ड वर्ड वार… जी विकास जी, सही कहा, इन लाल झंडे वालों  ने… पहले मैं अपनी बात खत्म कर लूँ फिर’

विकास ने मुझसे बाद कमेंट किया था. यानि… यानि उससे मेरा कमेंट छूट गया! शायद इसलिए कि वो लगातार बोल रहा है `ऐसा कौन सा क्षेत्र है जिसमें यहूदियों ने… आप साइंस, मेडिकल, कला, राजनीति, बिजनेस, कम्प्यूटर्स एक से बढ़कर एक आविष्कार…’

मुझे दुबारा लिखना चाहिए ‘आपके बारे में लोकतंत्र पाक्षिक के पेज पर कुछ लिखा है’  मैं फिर आंखे बंद कर लेता हूँ और सुनता हूँ राजीव को. ‘अमरीका यूँ ही नहीं इज़राइल से… दोस्तों एक किताब है `दि बेल कर्व’ आप पढेंगे तो दंग रह जाएंगे कि किसी भी रेस से बेहतर हैं यहूदी हर मामले में’ 

मुझे शायद और स्पष्ट लिखना चाहिए ‘राजीव आपकी मौत के बारे में लिखा हुआ है लोकतंत्र पाक्षिक के पेज पर, कि आप हा हा हा मर गए’ Season of Live Appearances Story by Amit Srivastava

मैं फिर आंखे बंद कर लेता हूँ लगता है किसी अरदास में हूँ या कि ताज़ियती जलसे में या कि किसी कन्फेशनल में बैठा हूँ.

`आप सिर्फ एक काम कीजिये नोबेल प्राइज़ वालों की लिस्ट उठाकर देख लीजिये, देखिये उसमें कितने यहूदी हैं… हाँ अरे अच्छा! ऐसा!’ 

लगता है राजीव ने पढ़ लिया. मेरी धड़कनें बढ़ जाती हैं. ‘कोई नहीं संदीप भाई जी मैं माउथ पीस और पास लाता हूँ. अबतक किसी ने कहा नहीं न कि आवाज़ कम है तो… तो कहां थे हम?’ 

ओह्ह तो उसने मुझे अभी तक नहीं देखा और… और संदीप का कमेंट तो मेरे बाद आया था. ये मुझे नोटिस क्यों नहीं कर पा रहा? मैं वापस पेज पर आ जाता हूँ वहाँ भी मेरा कमेंट किसी ने न लाइक किया है न कोई उत्तर है उसका बल्कि अब तो कमेंट्स की संख्या और भी बढ़ गई है. थोड़ा कठोर करता हूँ मन को. अब इनबॉक्स में जाकर दो-चार लोगों को बताता हूँ चलकर. 

राजीव का मैसेंजर बंद है उसे मेसेज नहीं भेज सकते. मैं छप्पन कॉमन दोस्तों को मैसेंजर पर ढूँढता हूँ. एक मैसेज ड्राफ्ट करता हूँ ‘राजीव ज़िंदा है!’ 

मुझे लगता है ये एक अश्लील मैसेज है. मुझे कुछ बदलना चाहिए. लेकिन तीन शब्दों के इस वाक्य में बदलने की कितनी सम्भावनाएं हैं? काफी देर तक सोचने के बाद भी मुझे ज़िंदा का कोई समानार्थी शब्द याद नहीं आता, राजीव का भी नहीं! जो मुझे याद आता है वो और लज्जाजनक है.

‘मुझसे बेहतर ‘मैं’ हो नहीं सकता/ मुझसे मिलना हो तो होना मैं!’ उसकी फोटो के नीचे यही कैप्शन था. मुझे उसकी प्रोफ़ाइल देखनी चाहिए. उसकी प्रोफ़ाइल पर उसका असली नाम भी दिखता है. ये एक शर्मनाक बात थी मेरे लिए. मेरा उसकी एबाउट इन्फॉर्मेशन पर होना भी, उसका असली नाम वहाँ लिखा होना भी. मैं किसी भी हालत में किसी की एबाउट इन्फोर्मेशन पर नहीं जाता. इससे बेहतर तो ये होगा कि मैं स्वयं लाइव आ जाऊं. हाँ यही सही होगा. सबको, खुद राजीव को भी, नोटिफिकेशन आएगा. 

मैं लाइव जाने के ऑप्शन की ओर उंगली ले जाने से पहले अपना चेहरा टटोलता हूँ. वहाँ कुछ नहीं मिलता. क्लिक कर देता हूँ  लाइव. कुछ देर तो लगती ही है लाइव होने में. थोड़ी देर में ही बोलूंगा कुछ. क्या? मेरे सामने खुली हुई स्क्रीन में सिर्फ मैं दिख रहा हूँ. पीछे सपाट पीली दीवार और कुछ नहीं. मुझे यहाँ एक कैलेंडर टांग लेना चाहिए या एक घड़ी जैसे राजीव के पीछे दिखती है कुछ नहीं तो पहाड़ की एक पेंटिंग ही लगा लूँ. 

मुझे झुंझलाहट होने लगती है. कोई नोटिस क्यों नहीं ले रहा? कोई कमेंट या लाइक भी नहीं. ये भी लिखकर नहीं आ रहा कि फलाना इज़ वाचिंग. क्या करूँ? मैं अपना कनेक्शन चेक करता हूँ. कुछ और देर होती है. मेरी व्यग्रता बढ़ती जाती है. फोन उठाता हूँ. रख देता हूँ. फिर उठाता हूँ. मेरे पास पम्मी आंटी के एकाउंट का पासवर्ड है.  उनका एकाउंट मैंने ही बनाया था कुछ महीनों पहले. उनसे कहा तो था कि बाद में आप पासवर्ड बदल देना पर वो कहाँ बदल पाई होंगी? Season of Live Appearances Story by Amit Srivastava

क्या मेरी आँखों मे थोड़ा कमीनापन नहीं आ गया? थोड़ी बेशर्मी? थोड़ा गिजगिजा न गईं आंखें? ‘मुझसे बेहतर ‘मैं’ हो नहीं सकता/ मुझसे मिलना हो तो होना मैं!’ मैं स्क्रीन पर अपनी आंखें देखते-देखते ही मोबाइल पर अपने एकाउंट से लॉग आउट होकर आंटी के एकाउंट से लॉग इन करता हूँ. सर्च बॉक्स में जाता हूँ. अपना नाम डालता हूँ. सोमेश जोशी. पहली ही प्रोफ़ाइल पर मेरी फोटो दिखती है. कालीशर्ट में. नीचे कोविड-`19 स्टे सेफ’ का बैनर. क्लिक कर देता हूँ.  लाइव चल रहा है पर ओह्ह! मैं झपटकर दुबारा चेक करता हूँ. मेरे लैपटॉप की स्क्रीन पर मैं हूँ. कोई कमेंट अब भी नहीं है. पर ये कैसे हो सकता है? मैं मोबाइल स्क्रीन पर नाम दुबारा चेक करता हूँ. हाँ ठीक है! मेरी वॉल ही है! पर इसपे तो राजीव भाटिया है. लाइव है. `इस वायरस ने फिर से साबित किया है सर्वाइवल ऑफ़ दि फिटेस्ट. फिर चाहे हो वो इंसान हो, कोई धर्म हो या राष्ट्र…’ उसका वही लाइव प्रोग्राम, जिसपर मेरे कमेंट के अलावा अब किसी का कमेंट नहीं दिख रहा. Season of Live Appearances Story by Amit Srivastava

अमित श्रीवास्तव

यह भी पढ़ें: आम की तो छोड़ो गुरु अमरूद कहाँ हैं यही बता दो

अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

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