कला साहित्य

मेरी आवाज़ ही पहचान है, ग़र याद रहे: लता सुर-गाथा

भारतीय सिनेमा की प्रतिनिधि फिल्मों में से एक गाइड में वहीदा रहमान और देव आनंद पर फिल्माया गाना आज फिर जीने की तमन्ना है चित्रपट की अमर देन है. इस खनकदार व दिलकश़ बोल के लिए पूरा देश लता मंगेशकर का ऋणी रहेगा. कोरोना संक्रमण के चलते स्वत:घरबन्दी के इन दिनों में प्रसिद्ध कवि व संगीत-अध्येता यतीन्द्र मिश्र की किताब लता सुर-गाथा पढ़ रहा हूँ. यह किताब अपनी अनेक विशिष्टताओं की वजह से लता जी पर शोधग्रंथ कहें तो ज्यादा समीचीन होगा. Review of Lata Mangeshkar Biography

इस ग्रंथ को 2016 का नेशनल फिल्म अवार्ड हासिल हो चुका है. 619 पृष्ठों की ‘सुरगाथा’
मुख्यत: चार सोपान में विभाजित है, जिनमें नन्हीं लता की गायकी , उनकी तालीम, जीवन संघर्ष तथा युवा लता के दौर की अन्य तमाम पार्श्रगायिकाओं में उनकी अपनी विशिष्ट पहचान का क्रमिक उल्लेख है. 370 पेज़ में कवि द्वारा किये गये करीब छह सौ प्रश्नों का लता जी द्वारा दिया जवाब एक तरह से संगीत -जगत की अमूल्य धरोहर है. Review of Lata Mangeshkar Biography

लता जी ने अपने सुरों की थाती से फिल्मी गीतों,भजनों, गज़लों,अभंदपदों,नात, कव्वाली, श्लोक एवं मंत्र गायन, लोकगीतों, कविताओं तथा देशभक्तिगीतों के माध्यम से जितनी रोशनी बिखेरी है उसके अनुपात में कोई कवि , संगीत विश्लेषक या सिनेमा अघ्येता अपनी बात कभी भी मुकम्मल तौर पर पूरी कर नहीं कह सकता. (पृष्ठ ..11, लता सुर-गाथा)

सामान्यतया कहते हैं कि सफलता हर व्यक्ति की कामना होती है, परंतु सफलता के शीर्ष पर पहुँचकर भी नित नये कीर्तिमान बनाते हुए उत्तरोत्तर बढ़ते जाना वास्तविक रूप से सच्ची व कालजयी सफलता कहलाती है. लता जी आज भारत ही नहीं विश्व गायिकी में बेजोड़ हैं. नूरजहाँ से लेकर युवा गायिका नेहा कक्कड़ तक सभी उनके गायन की खूबियों लय, सुर , ताल, स्वर का आलाप, ध्वनि लालित्य वगैरह की मुरीद हैं. इसके पीछे उनका रियाज़, गायिकी के प्रति निष्ठा , गाने को जीते हुए गाना उनकी गायिकी की खासियत प्रधान है. उनकी सम्मोहित करती जादुई आवाज़ के कायल ऐसे ही नहीं करोड़ों जन हैं.

यतींद्र के एक प्रश्न – पहले की अपेक्षा आज सभी संगीतकारों के लिए संगीत-साधना और कला वो चीज नहीं रह गयी है – के उत्तर में लता जी कहती हैं कि आज कल लोग प्रोफेशनल हो गये हैं. पहले संगीतकार , गायक और गीत रचने वाले सब स्तर का पूरा खयाल रखते थे, मगर आज दुर्भाग्य से एक अंधी दौड़ के लोग शिकार हो गये हैं. इस सम्बन्ध में लता जी अपना एक तजुर्बा साझा करते हुए बताती हैं कि मेरा ही एक बंगाली गाना था ‘ना जियो ना’,जिसे सलिल चौधरी ने संगीतबद्ध किया था| जिसे सुनकर वहीं पर बैठे बैठे गीतकार शैलेंद्र ने गीत रच दिया.. ओ सजना बरखी बहार आई… यह गाना अपने उत्कृष्ट बोल के चलते मील का पत्थर है. (लता सुर-गाथा…पृष्ठ 275) Review of Lata Mangeshkar Biography

एक और प्रासंगिक सवाल कि नवांकुर संगीत-सुर-साधकों के लिए आपका क्या संदेश है – के उत्तर में वे बताती हैं कि बिना रियाज़ और गुरु के ज्ञान के बिना कुछ संभव नहीं. संगीत एक तरह की साधना और समर्पण की विषयवस्तु है. बाकी तो सभी रास्ते ही नहीं पूरा अम्बर आपका है.

लता जी ने जिन महान संगीतकारों के संगीतबद्ध गीत गाये उनमें अनिल विश्वास, नौशाद, सी.रामचंद्र, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एस डी वर्मन, मदनमोहन, चित्रगुप्त, रवि, जयदेव, कल्याणजी आनंदजी,आरडी वर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,बसंत देसाई, बप्पी लहरी और ए. आर. रहमान प्रमुख हैं. जिन गायकों के साथ उन्होंने युगल गीत गाए उनमें मुकेश, तलत महमूद, मो० रफी, हेमंतकुमार, मन्ना डे, किशोरकुमार, महेंद्र कपूर, सुरेश वाडकर, शब्बीरकुमार, अमितकुमार प्रमुख हैं तो उनके साथ गाने वाली अन्य गायिकाओं में शमशाद बेगम, गीतादत्त,आशा भोंसले,
उमा देवी, उषा मंगेशकर, सुरैय्या, प्रेमलता और सुमनकल्याणपुर मुख्य हैं.

लता जी ने हिंदी के अलावा तमाम भाषाओं में हजारों यादगार गानों को गाकर उन्हें अमर कर दिया. उनमें कुछ ऐसी फिल्मों के सदाबहार गाने हैं जो आज भी उनके दिल के बहुत करीब हैं, जैसे आवारा, गाइड, पाकीज़ा, अनारकली, चोरी चोरी, बैजू बावरा, भाभी की चूड़ियाँ उल्लेखनीय हैं. अभिनेत्रियों में उन्हें वहीदा रहमान और मीनाकुमारी तो देवआनंद और अमिताभ बच्चन के अभिनय का लोहा वे भी मानती हैं. फुरसत के लम्हों में क्रिकेट देखना, संगीत सुनना उनकी हॉबी है. सचिन तेंदुलकर उनके पसंदीदा क्रिकेटर हैं|उनके स्वभाव मे वही बालसुलभ उन्मुक्तता, निश्छल हँसी
आज भी विद्यमान है.

लता मंगेशकर का भारत की बेटी होना समस्त बेटियों के लिए अदम्य साहस, उत्कर्ष और गौरव का विषय है.

फिल्म सिंदूर (1987) मे मोहम्मद अज़ीज़ के साथ लता जी का गाया यह गीत लॉकडाउन के तिमिर को बेधता हुआ प्यार के मौसम का आगाज़ होगा –

पतझर सावन बसंत बहार
एक बरस में मौसम चार
पाँचवां मौसम प्यार का
इंतज़ार का

संतोषकुमार तिवारी

लेखक
सन् 1974, जून 15 को अयोध्या में जन्मे युवा कवि संतोषकुमार तिवारी राजकीय इंटर कॉलेज ढिकुली (रामनगर) में प्रवक्ता हैं. आपके दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. इन दिनों गद्यकाव्य पर अपने लेखन को लेकर चर्चा में हैं. पीरूमदारा (रामनगर) में निवास करते हैं. santoshtiwari913@gmail.com, दूरवाणी 09411759081

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