मुझे बार-बार लगता है कि “रवि शास्त्री हाय-हाय” के दिगंतव्यापी उद्घोष के पीछे कोई न कोई दिलजला रहा होगा. लम्बे कद के खूबसूरत रवि शास्त्री के पीछे उन दिनों लड़कियां दीवानी रहा करती थीं. उसकी इन कथित दीवानियों में कई फिल्म अदाकाराएँ भी थीं और टीवी पर छाई रहने वाली टॉप मॉडल बालाएं भी. हालत यह थी कि उन दिनों दुनिया के लिहाज से खासी बैकवर्ड जगह होने के बावजूद हमारे हल्द्वानी-काठगोदाम में कम से कम दो ऐसे छैफुट्टे लम्बे लड़के थे जो बालों का झब्बा बनाए खुद को रवि शास्त्री समझते नगर के सभी कन्या-केन्द्रों पर प्रैक्टिसरत पाए जाते और अपनी हाईट बढ़ाने के हरसंभव जतन में लगे जमाने भर के लौंडों की डाह का विषय बनते. (Ravi Shastri Cricketer Birthday)
हमारे देश में वैसे भी लड़कियों द्वारा लड़कों को घास न डाले जाने की लम्बी परम्परा रही है सो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि लड़कियों के बीच इस कदर पॉपुलर इस कामयाब खिलाड़ी से जलने वाले किसी शख्स ने शास्त्री के असफल हो जाने के बाद भारत के शर्तिया हार जाने की संभावना को देखते हुए नारा लगा दिया हो – “रवि शास्त्री हाय-हाय”.
यह नारा 1990 के दशक के शुरुआती सालों में एक कल्ट की सूरत अख्तियार कर चुका था. यानी आप फर्ज कीजिये शारजाह में पाकिस्तान और वेस्ट इंडीज का टेस्ट मैच चल रहा है. खिलाड़ी और दर्शक दोपहर की कड़ी धूप में पसीने से तरबतर हैं. तीन ओवर लगातार मेडन जा चुके हैं और मैच का परिणाम आने की कोई संभावना नहीं है. अचानक कोई हारा हुआ मजनूँ किसी दैवीय प्रभाव में आता है और चीख उठता है – “रवि शास्त्री हाय-हाय”. उसके बाद समूचे स्टेडियम में बवाल मच जाता है, लोग खुशी के मारे चीखने लगते हैं, कुर्सियां फेंकी जाने लगती हैं, कोई मैदान की तरफ कोकाकोला का खाली कैन उछाल देता है और मैच खेल रहे खिलाड़ियों की सूरतों पर अचरच और आजिजी छाने लगती है.
ऐसा जलवा था रवि शास्त्री का.
एक इंटरव्यू में रवि शास्त्री कहते हैं कि वे बीमारी के कारण एक मैच नहीं खेल रहे थे और ग्रीनरूम में आराम फरमा रहे थे जबकि समूचा स्टेडियम “रवि शास्त्री हाय-हाय” के नारों से गूँज रहा था. मुझे नहीं लगता पेले या माराडोना तक को ऐसी ख्याति नसीब हुई होगी!
शास्त्री एक जमाने में बहुत अच्छे क्रिकेटर हुआ करते थे और ख़ूबसूरती के लिहाज से संदीप पाटिल से बीस नहीं तो उन्नीस तो ठहरते ही थे. उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में एक ओवर की छः गेंदों पर छः छक्के भी लगाये थे और महान सर गैरी सोबर्स की बराबरी की थी.
रवि शास्त्री भारत के बड़े स्टार बन गए थे ख़ास तौर पर जब उन्हें 1985 में ऑस्ट्रेलिया में हुए बेंसन एंड हेजेज़ कप में चैम्पियन ऑफ़ चैम्पियंस घोषित किया गया था. श्रीकांत के साथ उनकी ओपनिंग जोड़ी के चलते उन दिनों भारत सारे मैच जीत जाया करता था.
इसके बाद उन्हें ईनाम में एक कार मिली थी जिस पर बिठाकर उन्होंने अपनी पूरी टीम को मैदान की सवारी खिलाई थी. टीवी पर उस कार को देखने के बाद ही भारत के लोगों को पता चला कि दुनिया में एम्बेसेडर, पद्मिनी और मारुति के अलावा भी कारें होती हैं जो इतनी महंगी होती हैं कि उनका बस सपना ही देखा जा सकता है. माहौल यह था कि दन्या-पतलोट में काले चने और आलू के गुटकों के साथ स्टील के गिलास में धुँऐन चाय धकेलते खीमा गुरु अपने हमप्याला तारादत्त मास्साब से पूछते पाए जाते – “कित्ते की होगी साली!”
फिर क्या हुआ कि देश का ऐसा दुलारा हीरो अचानक लोगों की हाय-हाय का सबसे प्रिय निशाना बन गया. खैर, पहली वजह, जिसके बारे में मेरा अनुमान बहुत ठोस है, मैं आपको बता ही चुका हूँ. दूसरी वजह यह थी कि अपने करियर के अंतिम सालों में शास्त्री ने बैटिंग की लप्पा तकनीक की एक भुस्कैट फॉर्म का ईजाद किया था जिसमें दस में से नौ बार तुक्का नहीं लगता.
फर्ज कीजिये आख़िरी के सात ओवर बचे हैं और पांचवां विकेट गिरने के बाद शास्त्री मैदान में आते हैं. कुल 46 रन बनाने को बचे हैं. शास्त्री क्या करेंगे कि पहली ही गेंद पर विकेट छोड़ कर लेग स्टम्प के बाहर खड़े हो जाएंगे और कैसी भी गेंद हो उसे लॉन्ग ऑन के ऊपर टांगने के अंदाज में हवा की धुनाई शुरू करेंगे. यह सिलसिला तब तक चलेगा जब तक कि या तो वाकई में छक्का न लग जाए या उनके स्टम्प जमींदोज न हो जाएं. अमूमन वे आउट हो जाते थे और भारत हार जाया करता. “रवि शास्त्री हाय-हाय” कहने वालों को मौका मिल जाता कि अपनी प्रतिभा और देशभक्ति का प्रदर्शन करें और वे ऐसा करते भी.
दुनिया की इतनी सारी क्रूरता के बावजूद मैंने रवि शास्त्री को पसंद किया क्योंकि मुझे खुशफहमी थी की उसके जितनी तो नहीं पर नैनीताल नगर की एक-दो दर्जन लड़कियां मुझे अपना रवि शास्त्री समझती थीं. इस लिहाज से रवि शास्त्री मेरा बड़ा भाई था. मेरा फ्रेंड, फिलोसोफर एंड गाइड था!
हालांकि आज जब भी क्रिकेट मैचों की अतिड्रामाई और सुसाट-फुफाट से भरपूर कमेंट्री करते हुए जब मैं उन्हें “येस्स्स्स इट्स अ सिक्स्स्स!” कहते हुए सुनता हूँ तो खीझ कर टीवी बंद कर देता हूँ तो भी जब-तब उसके कंधे पर धाप मार कर फिर गले से लग जाने और यह कहने का मन होता है कि आई मिस यू रवि शास्त्री.
वैसे बताना अप्रासंगिक न होगा कि आज इन्हीं रवि शास्त्री (जन्म 27 मई 1962, मुम्बई) का जन्मदिन भी है. उन्हें बधाई! (Ravi Shastri Cricketer Birthday)
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