वर्तमान चम्पावत क्षेत्र चंद शासन काल में काली कुमाऊं नाम से जाना जाता था. गोरखा और चंद काल में इसमें खिल पित्तीफाट, गुमदेश, गंगोल, चालसी, चाराल, पाल-बिनौल, फड़का-बिसज्यूला, बिसुंग, सिप्टी, सुंई, और तल्लादेश पट्टियाँ शामिल थी. 1815 में अंग्रेजी शासन से पहला यह इलाका इसी नाम से जाना गया.
(Ramayana Stories Kumaon)
साल 1819 में कुमाऊं में नैनीताल और अल्मोड़ा दो जिलों का गठन होता है और काली कुमाऊं का क्षेत्र अल्मोड़ा जिले का हिस्सा बनता है. 1997 में एक स्वतंत्र जिला बनने से पहले चम्पावत जिला 1972 से पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा था. 15 सितम्बर 1997 से यहाँ इलाका चम्पावत जिले के रूप में जाना जाता है.
चम्पावत जिले की एक महत्त्वपूर्ण तहसील है लोहाघाट. किवदंतियों में लोहाघाट एक रहस्यमय स्थान रहा है. कहते हैं कि सतयुग के समय काली कुमाऊं का लोहाघाट क्षेत्र दैत्य और राक्षसों का निवास स्थान था. सतयुग में लोहाघाट से जुड़ी एक किवदंती कुछ इस तरह है –
भगवान राम और रावण का युद्ध जारी था. रावण ने अपने भाई कुंभकर्ण को युद्ध भूमि में भेजा. युद्ध भूमि में भयानक कोहराम मचाने के बाद कुंभकर्ण मारा गया. कुभकर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया. प्रभु राम ने कुंभकर्ण का धड़विहीन सिर हनुमान के हाथों कुमाऊं भेजा.
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हनुमान जब कुमाऊं आये तो उन्होंने कुंभकर्ण का धड़विहीन सिर कुर्मांचल पर्वत में रख दिया. समय के साथ कुर्मांचल पर्वत पर रखे कुंभकर्ण के धड़विहीन सिर के भीतर पानी भरता गया और चार वर्ग कोस की एक झील बन गयी. इसी झील में सभी राक्षस और दैत्य का डूब कर अंत हो गया.
मान्यता है कि सतयुग में बनी यह झील त्रेतायुग और द्वापरयुग तक अपने अस्तित्व में थी. यह झील तब तक अपने अस्तित्व में रही जब तक भगवान विष्णु ने कुर्म अवतार नहीं लिया था. यह भी माना जाता है कि कुंभकर्ण की हड्डियों से बने इस झील के किनारे भीम ने तोड़े थे. झील का पानी गंडकी नदी के रूप में निकला इस नदी का वर्तमान नाम गिड्या नदी है.
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