Featured

भगवान राम का बेहतरीन पुरातन मंदिर है नारायण देवल गाँव में

उत्तराखंड में एक से एक सुन्दर प्राचीन मंदिर हैं जिनका सदियों पुराना स्थापत्य आज भी चमत्कृत करता है. ऐसा ही एक मंदिर समूह अल्मोड़ा जिले के एक छोटे से गाँव नारायण देवल में है.

“अल्मोड़ा जिले के भैंसियाछाना ब्लॉक में नारायण देवल पंचायत का हिस्सा है नारायण देवल गाँव. अल्मोड़ा नगर से पूर्व दिशा में आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव को जाने के लिए अल्मोड़ा-जागेश्वर मार्ग में पड़ने वाली पेटशाल नामक छोटी सी बसासत से एक कच्ची-पक्की सड़क जाती है. भैंसियाछाना से इसकी दूरी कुल 13 किलोमीटर है.

नारायण देवल के आसपास गोल देवता का विख्यात चितई मंदिर, स्याल, सिराड़ बिन्तोला और पेटशाल जैसे स्थान हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक इस गाँव में कुल सात परिवार रहते हैं और इसकी कुल आबादी है मात्र बाईस.”

ऊपर लिखी सूचना एक सरकारी वेबसाईट से ली गयी है. यह वेबसाईट आपको यह नहीं बताती कि नारायण देवल में न सिर्फ भगवान राम का एक विलक्षण प्राचीन मंदिर है बल्कि यह भी कि देवी भगवती की स्मृति में निर्मित दर्जनों संरचनाएं भी हैं. भगवान राम का यह मंदिर नागरा शैली में बना है जिसकी छाप कुमाऊँ के अनेक प्राचीन मंदिरों में देखी जाती है. अनुमानतः यह मंदिर भी नवीं से बारहवीं शताब्दी के दौरान अस्तित्व में आया होगा.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में लाये जा चुके इस मंदिर की देखभाल के लिए एक पुजारी नियुक्त किया गया है जिसे नाममात्र का पारिश्रमिक मिलता है. मंदिर के भीतर बेहद मूल्यवान पुरातन प्रतिमाएं हैं जो देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे जर्जर हो रही हैं.

गाँव में घूमने पर आपको सिर्फ महिलाएं और बच्चे ही नजर आते हैं. बाकी के पहाड़ी गाँवों की तरह यहाँ भी पलायन का दंश साफ-स्पष्ट दिखाई देता है.

हमने कुछ समय पूर्व आपको बमनस्वाल के ऐसे ही एक और मंदिर-समूह की बाबत बताया था.

पर्यटन के नाम अरबों फूंकने वाली हमारी सरकारें हमारी मूल्यवान विरासत को लेकर कितना चिंतित हैं यह देखना हो तो एक चक्कर नारायण देवल का लगा आइये. फिलहाल देखिये यहाँ की कुछ छवियाँ.

(आलेख एवं सभी फोटो: अशोक पाण्डे)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago