हे राम! तुम्हारी धरती पर कोहराम मचा है. फिर किसी नगर, किसी शहर में मातृत्व से वंचिता स्त्री को अपनी माँ होने के गौरव से भर दो. फिर आओ…फिर जल्दी आओ. नये कथानक के साथ आओ .हे राम! तुम्हारा इंतजार है. जन -जन के मन में रमने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का पृथ्वी पर अवतरण सकारण था. गोस्वामी जी लिखा है – विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार.
(Ram Navami 2021)
उल्लेख मिलता है कि इक्ष्वाकु वंशीय अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ ने चौथेपन में पुत्र-प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ किया. जिसके फलस्वरूप श्रीहरि के सातवें अवतार के रूप में श्रीरामचंद्र उन्हें पुत्र-रूप में प्राप्त हुए. एक माँ के ममत्व की दृष्टि से रानी कौशल्या ने प्रगट हुए श्रीहरि के विशायकाय रूप को देखकर अनुरोध किया कि आप मेरे गर्भ से जन्म लेकर शिशु- लीला कीजिये .मेरे वात्सल्य- स्नेह की पूर्णता तो आपके बालरुप में ही संभव है. उसके पश्चात् श्रीहरि कौशल्या के गोद में नवजात शिशु की भाँति चैत्र मास के शुक्ल पक्ष, तिथि नवमी पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न की शुभ मुहूर्तबेला में रामजन्म हुआ. यही दिन चैत्र नवरात्रि के पवित्र दिवस (नवमी)शक्ति उपासना-आराधना के विराम का भी होता है.
चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ
उदये गुरु गौरांश्चो:स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके
मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटाह्वये
आविरसीत्सकलया कौशल्यायां पर: पुमान्
(निर्णयसिन्धु)
तीनों लोक सहित अयोध्या, इस तरह आनंदमग्न हो गयी जैसे वहाँ के प्रत्येक घर में राम पैदा हुए हों. हर घर दशरथ महल जैसा सज गया. फूलों से पथ सुशोभित हो गये. राजा दशरथ और रानियों ने तो नेकचार के रूप में हीरे – जवाहरात , माणिक , मोती लुटाकर अपनी प्रसन्नता को प्रजाजनों से साझा किया. कौशल्या सहित दो अन्य माताएं क्रमश: कैकेई से धर्मधुरीण भरत और सुमित्रा से साक्षात् शेषनाग के अवतार लक्ष्मण और शत्रुओं का दमन करने वाले सबसे छोटे और सबके दुलारे भैया शत्रुध्न ने जन्म लिया. श्रीराम ने बालपन में संसार के अन्य बच्चों जैसे अगणित बालसुलभ चेष्टाओं से दशरथ महल का कोना-कोना पुलकित हो गया. बाल राम व अनुज कुछ खाते ,कुछ गिराते , गिरते-सम्हलते ,फिर गिरते .रोने लगते फिर दौड़ने की चेष्टा करते हुए पैरों में पैजनियों की छम..छ..म छम् देख- सुनकर माता- पिता के हर्ष का कोई ठिकाना ही नहीं रहा.
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियाँ.
गुरू वशिष्ठ से दीक्षित श्रीराम कालांतर में आज्ञाकारी, शांत स्वभाव , आजान बाहु, विशाल वक्ष और धीरोदात्त नायक के समस्त गुणों से सम्पन्न चर्चा में तब आये जब यज्ञरक्षा हेतु राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर (विवाह) में जनकपुर पहुँचे, और शिव -पिनाक भंग कर सियावर रामचंद्र कहलाये.
(Ram Navami 2021)
वे आजीवन पिता, पुत्र, पति, भाई, सखा व प्रजा सहित समस्त प्राणी मात्र के प्रति समदर्शी, समर्पित व उदारमना महापुरुष के रूप में जाने जाते रहे. जीवन को साक्षी भाव से तटस्थ मुद्रा में देखते हुए कर्तापन और उपलब्धि का श्रेय लेने की दौड़ से वे हमेशा दूर रहे.परशुराम द्वारा पिनाकभंग के दोषी को सभा से निकल जाने पर उनके क्रोध से वे विचलित हुए बिना हाथ जोड़कर अपना परिचय देते हुए कहा मेरा दो अक्षर का नाम राम है, और आप परशुराम. मुझे अपना सेवक मानकर आज्ञा दीजिये.
कैकेई के दो वरदान ,जिनमें स्वयं के लिए वनगमन का समाचार सुन वे सहर्ष तैयार हो गये तथा सबसे पहले आशीर्वाद लेने माता कैकेई के ही पास पहुँचे. अपनी अगणित विशिष्टताओं के फलस्वरूप तभी तो वे शीलगुण निधान मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाते हैं.
रामकथा में वनवास प्रसंग को मूलत: संसारी जीवों के अनेक उतार-चढ़ाव, उथल-पुथल और झंझावातों के बीच से संतुलन बनाकर निकलने के सांकेतिक निकष के रूप में ही ग्रहण करना चाहिये . जिसे प्रभु राम भरपूर सानंद जीते हैं, तथा आभाष कराते हैं कि अपने-अपने हिस्से का वनवास तो सबको स्वयं ही काटना पड़ता है. अपने हालात पर किसी को दोष न देना और सतसाहस से उसका मुकाबला करते हुए परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लेने का सबक तो उन्हीं से सीखते बनता है. कंटकाकीर्ण पथ पर आम व खास सब एक समान हैं.अपने कर्म व प्रारब्ध की गति पर पर सभी को तैयार रहना चाहिये , चाहे वह कोई भी हो. राम जी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण व ग्रहणीय पक्ष यही है कि आप जीवन को दीन-दुखियों, जरूरतमंदों और हाशिये पर जी रहे लाखों लोगों के लिए प्रेरक कैसे बन सकते हैं, उनको मुख्यधारा में लाकर सम्मानित जीवन का उजाला कैसे प्रदान कर सकते हैं.
(Ram Navami 2021)
राम ने चौदह वर्ष के जंगल – प्रवास को इसी संकल्प के साथ जिया . चाहे वह केवटराज को अपने स्नेह से अत्यन्त प्रिय बना लेना हो, चाहे जनम – जनम से हरिदर्शन की भूखी एकनिष्ठ सनेही-शबरी की कुटिया में जाकर उनके जूठे बैर को खाना हो या वानर जाति, जो एक शाखा से दूसरी शाखा पर उछलकूद करके जीवन गुजार देते हैं , उनसे मैत्री कर भार्या सीता की खोज व प्राप्ति का पूरा श्रेय उन्हें देने का हो. श्रीराम की यह भिन्न -भिन्न गुण, धर्म , जाति व संस्कृति के साथ सर्वग्राहकता अद्भुत और अनूठी है. कहा जाना चाहिये कि राजा न होते हुए भी उन्होंने सबको एक मंच पर अन्याय के विरुद्ध एकत्र कर लिया. लंकाधिपति को अयोध्या या अन्य राजाओं की सैन्य मदद से भी परास्त किया जा सकता था , परंतु राम जी ने ऐसा नहीं किया. कारण स्पष्ट है उन्होंने बिखरी हुई जनशक्ति को सही दिशा दी. महाबली के घमंड को माटी में मिलाना गुणनिधान के उसी चिंतन का प्रतिफल है.
राम रथविहीन हैं, वानरों की सेना के सहारे तापसवेषधारी हैं, सैन्य साजोसामान से वंचित हैं किंतु स्त्री अस्मिता की लड़ाई के लिए जो साहस और इरादे की जरूरत होती है , उनमें भरी हुई है. राजाओं-महाराजाओं के ऐश्वर्यवादी जीवन से दूर केवल एक पत्नीव्रती हैं. पत्नी को सुरक्षित कैद से मुक्ति दिलाने हेतु रावण के एक लाख पूत सवा लाख नाती, ता रावन घर दिया न बाती की कहावत को उन्होंने चरितार्थ किया. सत्य की इसी स्थापना की पूर्ति के लिए ही तो उनका अवतार हुआ था. वे तभी तो जन – जन के प्रिय और आदर्श बन गये. जानकी के कण्ठाभूषण और प्रजापालक ऐसे कि प्रजा के सवाल खड़ा करने पर बिना देर किये उसी प्राणबल्लभा जानकी को त्यागने मे तत्पर हो गये. यह किसी और राजा-महाराजा के वश की बात नहीं, प्रजा को प्राणों की तरह मानने वाले प्रभु राम के चरित व दर्पण जैसे मानस का लिया कठोर निर्णय था.
(Ram Navami 2021)
इस लेख के लेखक संतोष कुमार तिवारी प्रेमचंद साहित्य के अध्येता हैं. पेशे से अध्यापक व दो कविता संग्रह के रचनाकार संतोष नैनीताल के रामनगर में रहते हैं.
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