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इलेक्शन के वे दिन और रागी बाबा

एक हाथ से बाएँ कंधे पर टिकाई हुई बांस की पतली डंडी पर झूलता लाल झंडा, दूसरे हाथ में घुंघरू जड़ी जांठी (लाठी), दाएं कंधे पर भूदानी थैला लिए कोई पांच फीट की छरहरी काया और गेहुंआ रंगत वाला वह इंसान ठीक चुनाव के मौसम में नैनीताल में अवतरित होता था. (Ragi Baba of Nainital)

उन्होंने सत्तर या अस्सी के दशक में बाकायदा नामांकन भर कर उत्तर प्रदेश की नैनीताल विधानसभा के अनेक चुनाव लड़े. बताने वाले कहते थे वह लमगड़ा के आसपास कहीं के रहने वाले थे और उनके पास दोएक सौ बकरियों का अपना ढाकर था. हो सकता है वे उसी ढाकर में से तीन-चार बकरियां बेचकर हर पांच साल में अपने अद्वितीय राजनैतिक एजेंडे के साथ दिग्गजों के सम्मुख दम ठोंकने उतरा करते हों.

अपनी छम-छम करती लाठी से ज़मीन को ठकठकाते वह नैनीताल के मल्लीताल रामलीला स्टेज पर पहुंचा करते तो मज़े लेने के उद्देश्य से उनके पीछे हू-हू करते लौंडे-लबारों की फ़ौज हुआ करती थी.

इस ख़ास मौके के लिए वह एनडी तिवारी मार्का अचकन पहने रहते थे. उल्लेखनीय है कि उन्होंने एनडी तिवारी के खिलाफ भी एकाधिक चुनाव लड़े. उनके गले में मोटे मनकों की माला हुआ करती और सर पर सफ़ेद रंग का ठेठ पहाड़ी टांका (साफा). हँसते था तो उनके काले दांत भी चमक उठते थे.

तल्लीताल के कलेक्ट्रेट-कचहरी परिसर के दफ्तरों से भी उन्हें पोलिटिकल फंडिंग मिलती थी. मेरे पिताजी खुद बताते थे कि फलां दिन उन्होंने रागी बाबा को दस रूपये चंदे में दिए थे. पीडब्लूडी जैसे विभागों में काम करने वाले तमाम कर्मचारियों के लिए वे हर पांच सालों में प्रकट होने वाली कोई मसखरी की चीज़ थे जो उनके जीवन के किसी गुप्त हिस्से में मीठी गुदगुदी पैदा करती थी.

मरियल और पतली आवाज़ वाले रागी बाबा ने हमेशा कुमाऊनी में भाषण दिए और वे अपने एजेंडे से कभी नहीं हटे. उनकी पोलिटिक्स बिलकुल साफ़ थी. वे कहते थे कि चुनाव जीतते ही वे नैनीताल में रेलगाड़ी पहुंचा देंगे. लेकिन उन्हें असल समस्या कुर्सी से थी. उनका मानना था की देश की सारी दिक्कतों की जड़ में कुर्सी है. वे कुर्सी को समूल उखाड़ देना चाहते थे. वे कहते थे कि जीतते ही वे विधानसभा की सारी कुर्सियां हटवा कर वहां दरी बिछा देंगे.

हमारे प्रदेश में भी इन दिनों लोकसभा चुनावों का हुल्लड़ है. अकूत संपदा के बल पर कुर्सी के लिए लड़ी जा रही इन अश्लील चुनावी जंगों के भौंडे प्रहसन को देखते हुए मुझे आज अचानक कुर्सी से घनघोर विराग रखने वाले रागी बाबा याद आ गए. अचरज की बात नहीं है!

रागी बाबा अमर रहें!

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