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6 Comments

  1. V S Vishth

    काफल ट्री, क्या आप इस लेखिका के विचारों का समर्थन करते हैं? क्या आपकोनाज न्यायालय पर भी भरोसा नहीं। क्या किसी और कि जमीन पर गैर कानूनी कब्जा करने वालों को अगर पहले नहीं हटाया गया था नेताओं ने अपने वोट बैंक के कारण तो क्या वो गैर कानूनी कब्जा वैध हो जाता है।
    उत्तराखंड के मूल निवासी तो किसी की भूमि पर कब्जा नहीं करते। दूसरी ओर इस तरह के अतिक्रमणकारी उत्तराखंड के भोले भाले लोगों के व्यापार, काम धंधों को भी कब्जाते जा रहे हैं।

  2. Arjun singh chauhan

    वाह जी वाह क्या बात है पहले कब्जा करो फिर उसको तोड़ मरोड़ कर जस्टिफाई करो। साले हम तो करोड़ों रुपए की जमीन खरीद कर घर बनाएं और ये दस दस बच्चे पैदा कर फ्री की जमीनों पर कब्जा कर रहें। वह भाई वह। एक आध बच्चा करो ताकि दूसरे की जमीन पर कब्जा न करना पड़े।

  3. harish singh

    हम उत्तराखंड के मूल निवासी , हमारे पूर्वज हजारों सालों से देवभूमि में रहते आ रहे है, आज हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नही है जो हम हल्द्वानी में जमीन ले सके, जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी है वो पहाड़ी अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे से लेते है जमीन। और ये लोग बाहर से आकर कब्जा कर लेते है और आप जैसे लोग इनको घर दिलाने की पैरवी करने लगते हो, शर्म आनी चाहिए आपको।

  4. Surendra Rawat

    बहुत अच्छा लेख। लेखिका को धन्यवाद। ये जमीन रेलवे को कभी हस्तांतरित ही नही हुई। 2016 में भी हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा बस्ती उजाड़ने की बात की थी उस समय समाजिक संगठन क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत रेलवे विभाग से मालिकाने के दस्तावेज मांगे गए पहले तो रेलवे ने मामला कोर्ट में होने की बात कर सूचना ही नही दी करीब ढाई -तीन साल की कोशिश के बाद केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश पर रेलवे विभाग द्वारा मात्र 4 नक्शे अपीलकर्ता को उपलब्ध कराते थे। रेलवे विभाग को सरकार द्वारा जमीन कब हस्तांतरित की गई और अधिग्रहण करने के कोई दस्तावेज़ आदि रेलवे विभाग के पास नही थे। फिर जमीन रेलवे विभाग की कैसे हो गयी। आज आधे से ज्यादा उत्तराखण्ड के लोग उत्तराखंड से बाहर रहते हैं तो क्या वो सब भी वहां अतिक्रमण कारी हो गये ? । हिन्दू मुस्लिम के चश्मे से बाहर निकल कर न्यायप्रिय होकर मानवीय संवेदना के साथ इस मुद्दे को समझने की जरूरत है।

  5. Rajesh azad

    साथियों,
    हल्द्वानी (नैनीताल) उत्तराखंड में बनभूलपुरा बस्ती को उजाड़े जाने का जमकर विरोध होना चाहिए। उजाड़े जाने की इस प्रक्रिया में मजदूरों के 4000 से अधिक परिवारों की बस्ती को उजाड़ने जाने के हम खिलाफ है । हम इसका घोर निंदा करते हैं।

    *हमारे आजमगढ़ में भी एयरपोर्ट विस्तार के नाम पर उजाड़े जाने की इस प्रक्रिया में 40000लोगों की जमीन-मकान छीनने के खिलाफ खिरियां बाग में 85दिनों से धरनारत है। हमारे दुःख एक हैं।*

    जो सरकारें मेहनतकश मजदूरों को आज तक ढंग से बसा नहीं सकीं। जो सरकारें भूमिहीन गरीब किसानों को उनकी भूमि (खेती की जमीन) के अधिकार पर कब्जा जमा कर निरंकुश तरीके से बैठी रहीं यानि ठीक ढंग से भूमि सुधार करके भूमि वितरण करके किसी समानता को लागू नहीं कर सकीं। वह आज बुलडोजर लेकर उजाड़ देने की बात कर रही हैं? उन्हें नहीं पता कि आजादी की लड़ाई के बाद देश का नागरिक का अधिकार जितना उनको है उतना ही मेहनतकश मजदूर किसानों को भी है ?
    ब्रेख्त के शब्दों में,
    *रोटी की रोज जरूरत होती है ,
    इंसाफ की भी रोज जरूरत होती है,बल्कि कहा जाए तो हर रोज
    कई बार इंसाफ की जरूरत होती है।*
    इसीलिए तथाकथित आजाद भारत में हमें बार-बार इंक़लाब जिंदाबाद के नारों के साथ आगे आना पड़ता है।
    *जुल्मी जब जब जुल्म करेगा सत्ता के गलियारों में,
    चप्पा चप्पा गूंज उठेगा, इंकलाब के नारों से।*

    *राजेश आज़ाद,संयुक्त किसान मोर्चा,आजमगढ़*

  6. H S Rana

    शायद काफल ट्री में लिखा गया लेख, इस अतिक्रमण का पक्षधर है। वहा बिक रही स्मैक का, वहा के लोगो द्वारा किए जा रहे अवैध खनन का, और उत्तराखण्ड राज्य की संस्कृति में बाहरी लोगों की घुसपैठ का भी।

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