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जब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश राज्य का हिस्सा हुआ करता था तो सरकारी महकमे में पहाड़ का मतलब पनिस्मेंट हुआ करता था. पहाड़ में पोस्टिंग ही पनिस्मेंट पोस्टिंग मानी जाती थी. सरकारी महकमे में ‘पहाड़ में तबादले’ नाम की इस छड़ का उपयोग कर कर्मचारियों की कमर सीधी भी रखी जाती और अपने अनुसार मोड़ी भी खूब जाती थी.
(Punishment Posting MBPG Haldwani)
उत्तराखंड राज्य बनने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण मैदानी और पहाड़ी इलाकों के प्रशासन होने वाला भेदभाव रहा है. उम्मीद थी कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद सारी नीति के केंद्र में पहाड़ होगा पिछले दो दशकों में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा. पहाड़ को लेकर आज भी प्रशासन का वही रवैया है जो दो दशक पहले राज्य बनने से पहले हुआ करता था.
मसलन इस बीते दो दिनों से सभी स्थानीय अख़बारों ने एक खबर को प्रमुखता से छापा. खबर के अनुसार हल्द्वानी स्थित एमबीपीजी कालेज में एक प्रोफ़ेसर महोदय शराब पीकर आये. प्रोफेसर साहब को इससे पहले तीन बार महाविद्यालय परिसर में शराब पीकर आने की वजह से नोटिस जारी किया जा चुका था. इस बार प्रोफेसर साहब के खिलाफ़ कारवाही करते हुए उन्हें बेरीनाग डिग्री कॉलेज में संबद्ध कर दिया गया है. सामान्य शब्दों में मैदानी इलाके के कालेज परिसर में शराब पीकर आने वाले प्रोफ़ेसर का पहाड़ के कालेज में तबादला ही उसकी सजा है.
(Punishment Posting MBPG Haldwani)
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि प्रोफेसर साहब को महाविद्यालय परिसर में शराब पीकर आने की वजह से कॉलेज व्यवस्थाओं के लिये खतरा बताया गया है. ऐसा प्रोफ़ेसर पहाड़ स्थित कॉलेज की व्यवस्थाओं के लिये क्यों खतरा नहीं है इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
यह कैसी अनुशासत्म्क कार्यवाही है जिसमें पहाड़ के बच्चों का भविष्य ताक पर रखा जा रहा है. आखिर कब तक पहाड़ और मैदान के इस सियासी खेल में पहाड़ के अधिकारों का हनन होगा?
(Punishment Posting MBPG Haldwani)
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