Featured

बजट से पहले हलवा पार्टी

भारत में बजट दस्तावेजों की छपाई से पहले एक ख़ास रस्म निभाई जाती है. इस रस्म के तहत वित्त मंत्री बजट के दस्तावेजों की छपाई से पहले अपने हाथों से सभी को हलवा परोसते हैं. कई सालों से चली आ रही इस रस्म को ‘हलवा सेरेमनी’ ( Halwa Ceremony) कहते हैं.

हलवा सेरेमनी में वे सभी कर्मचारी शामिल होते हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर बजट बनाने से लेकर उसकी प्रिंटिंग की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं.

हलवा सेरेमनी एक प्रकार की शपथ है कि अधिकारी और कर्मचारी बजट की जानकारी को गुप्त रखेंगे. हलवा सेरेमनी के बाद ‘लॉक इन’ बजट तैयार करने की प्रक्रिया को गोपनीय रखने के लिए किया जाता है.

हलवा खाने के बाद वित्त मंत्रालय के ज्यादातर अधिकारी और कर्मचारियों को मंत्रालय में ही पूरी दुनिया से कट कर रहना होता है. बजट बनाने में लगे 100 अधिकारी 2-3 सप्ताह तक नॉर्थ ब्लॉक में रहते हैं. वे वहां तब तक रहते हैं जब तक वित्त मंत्री बजट वाले दिन अपना भाषण खत्म नहीं कर लेते.

भारत का पहला बजट राष्ट्रपति भवन में छपा था. 1950 में बजट लीक होने के कारण बजट मिन्टो रोड में छपने लगा. 1980 से बजट नार्थ ब्लाक में छपने लगा. आज भी यह नार्थ ब्लाक के बेसमेंट में ही छपता है. यहीं हलवा सेरेमनी होती है.

इस दौरान सभी कर्मचारी और अधिकारी बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कटे रहते हैं. यहां तक कि वे अपने परिवारों के संपर्क में भी नहीं होते. उनके पास केवल एक फोन होता है जिसके जरिए वे केवल कॉल रिसीव कर सकते हैं, मगर कहीं कॉल कर नहीं सकते हैं.

बजट की छपाई हाई सिक्योरिटी में होती है. इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आई.बी, दिल्ली पुलिस और सी.आई.एस.एफ की होती है. महिने भर पहले से ही वित्त मंत्रालय में पब्लिक एंट्री बंद कर दी जाती है. इन अधिकारीयों के अतिरिक्त केवल वित्त मंत्री को ही अन्दर बाहर जाने का अधिकार प्राप्त होता है.

इस साल की हलवा सेरेमनी में वित्त मंत्री स्वास्थ्य कारणों से शामिल नहीं हो सके थे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago