Featured

40 साल से भगवान बद्रीनाथ की नौबत बजाने वाले प्रभु दास नहीं रहे

बीते चालीस सालों से भगवान बदरी विशाल के मंदिर में रोज सुबह और रात नौबत बजाने वाले प्रभु दास जी का निधन हो गया. अनेक विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रभु दास जी बिना थके भगवान बदरी की सेवा में लगे थे. प्रभु दास जी न केवल ढोल बजाकर भगवान बदरी की सेवा करते थे बल्कि भगवान के अंग वस्त्र भी वही सीते थे.
(Prbhu Das Ji Badrinath)

प्रभु दास जी के परिवार में उनके पिता प्रेम दास और दादा बखूड़ी दास ने भी जीवन भर इसी तरह भगवान बदरी विशाल की सेवा की थी. यह परिवार बीते कई सालों से सुबह 3.30 बजे और रात्रि 9 बजे पवित्र नौबत की ध्वनि से भगवान बदरी विशाल का परिसर पावन करता है.

हिन्दुस्तान की खबर के अनुसार प्रभु दास जी के पुत्र पंकज ने बताया कि भगवान बदरी विशाल की सेवा के प्रति उनके पिता का समर्पण भाव इस कदर था कि लम्बी बीमारी के चलते इस वर्ष वे भगवान बदरी विशाल के कपाट बंद होने पर उत्सव विग्रह की शोभायात्रा के लिये बदरीनाथ नहीं जा पाये. पर उन्होंने दीपावली के दिन उन्होंने कहा कि जब भगवान बदरी विशाल की यात्रा जब पांडुकेश्वर आएगी तो वे स्वागत अवश्य करूंगा.

कपाट बंद होने के बाद जब 20 नवम्बर के दिन भगवान बदरी विशाल की शोभायात्रा पांडुकेश्वर पहुंची तो बेहद बीमार प्रभु दास जी ने अंतिम बार ढोल बजाकर भगवान बदरी विशाल और रावल का स्वागत किया. 55 बरस की उम्र में, 21 नवम्बर के दिन प्रभु दास जी दुनिया छोड़कर चले गये. यह आखिरी बार था जब उन्होंने भगवान बदरी विशाल की सेवा में ढोल थामा था.
(Prbhu Das Ji Badrinath)

-काफल ट्री डेस्क

बद्रीनाथ की 125 साल पुरानी तस्वीर

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
(Prbhu Das Ji Badrinath)

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago