गैरीगुरु की पालिटिकल इकानोमी : अथ चुनाव प्रसंग-6
पिछली कड़ी : उठती है हर निगाह खरीदार की तरह
स्वस्ति श्री सर्वोपमा योग्य श्री ३ चेले गिरिजा नामधारी गैरीगुरु आशीष पहुंचे. अत्र कुशलम तत्रास्तु. त्रिजुगीनारायण की कृपा से तेरा गुरु राजी खुशी है. मंगल चन्द्र के योग तले हिमालय की गुफा पर गोमुख समीप हिमनद की हाड़कांपी ठण्ड से धूप-धूल-लू से बहुत दूर बरमांड तपाती तेरी ठौर तलक मेरा वचन पहुंचे. अपने प्रातः स्मरणीय पूज्य पिताजी ब्रह्मलीन श्री १०८ स्वामी खटखटानन्द त्रिकालदर्शी का अंश मैं तेरा गुरु स्वामी फटफटानन्द तुझ तक तेरे इष्ट की कृपा बरसाता हूँ. नवग्रहों की सभी चाल-खाल से संयुक्त हो, सत्ताईस नक्षत्रों के चारों चरणों की प्रायिकता से तेरे तन और मन के समस्त संतापों का हरण-वरण करता हूँ.
भोजवासा में उगे दुर्लभ भोजपत्रों पर जौनसारी स्याही को साही के कांटे से निर्मित कलम द्वारा लिख इस पाती में तेरा गुरु तेरे चिर युवा तुर्क बने रहने की कामना करता है. पूर्ववत जगराता संपन्न कराने, फिर माता की चौकी बिठाने के बाद देश के दिव्य धर्मस्थलों की यात्रा कर अंतिम चरण में चार धाम यात्रा पर आई तेरी परमविदुषी बड़बोली धर्मपत्नी व उसका अनुगमन करते खल विदूषकों से विचित्र तेरे चेलों की जोड़ी लल्लन व काली से हुए अन्तरंग संवादों से तेरी दिनचर्या पता चली. अपनी पारलौकिक शक्तियों व छठी इन्द्री में सचित गुह्य शास्त्रों के सम्पुट से मुझ दिव्य ज्ञानी को प्रतीत हुआ कि तू अपनी पिनक में अर्थ के तंत्र और राज की नीति को चुनावी अधिमास से संलग्न कर न तो हास्य उपजा पा रहा और न ही अपने प्रति करुणा ही पैदा करवा पा रहा. रमजान में रूह आफजा की तरह तेरा सैटायर गरमी में नायलोन की साड़ी सा हमक रहा.
मूर्ख चेले! पठन पाठन, लेखन-सृजन, हास-परिहास का युग तो बीत गया. ज्ञान बांटने की तेरी तुकबन्दियाँ रजत अरोड़ा के वन लाइनर और सत्ता अधिपति की ईमेल व रंगीन छायाचित्रों के आगे चारों खाने चित हो गईं. अबे चार पांच हजार शब्दों का लेख तो झपसटिये लिखते हैं. तू ये क्यों भूला कि अब तो वन मिनट-टू मिनट रीडिंग का युग है. बड़े-बड़े हिन्दी लेखकों के स्वरचित दो रुपये किलो की रद्दी के भाव जा रहे. ज्ञान-विज्ञान इतिहास पर्यावरण के उपदेश तो न कोई पढ़ता न लाइक करता. शेयर की तो सोच भी मत. ऊपर से तू रूखा-सूखा इकोनोमिक्स वाला. बात पढ़ाये रूपये-डालर-पूंजी की और खुद की जेबों के छिद्र सिल न पाए. इसलिए प्राच्यविद्या की शरण में आ और अपनी रैंकिंग बढ़ा. तेरे गुरु फटफटानन्द का फटफटिया टुटका तुझे अखिल विश्व के लटपटिये लेखकों की ख्यात सूची में नाम पड़वा जुगनू सा चमकाएगा. गुरुघंटाल योग सार्थक कराएगा.
अब आगे सुन. १५ अगस्त १९४७ को परतंत्रता की बेड़ी काट साम्राज्यवाद से मुक्त तेरे मेरे देश की कुण्डली वृषभ लग्न में पड़ी. आज यहां चन्द्र में गुरु की विंशोत्तरी दशा पड़ी. अन्तर्दशा का स्वामी गुरु छठे भाव में पसर कर सत्ता के दशम भाव को अपनी पंचम दृष्टि से देख कर सुरक्षा दे रहा. यह भली दृष्टि लग्न और चन्द्र दोनों से दसवें भाव पर है. सो गुरु की यह अन्तर्दशा वर्तमान सरकार को ही वापस लाने में मददगार होगी. बस गठबंधन में नए संगी-साथी जुटाने होंगे.
भारत की गृह दशा में इसी साल २३ मार्च को राहु का प्रवेश मिथुन राशि में तो २९ मार्च को गुरु आया धनुराशि में. अब १० अप्रैल को गुरु हो गया वक्री. ३० अप्रैल शनि भी हो गया वक्री. ७ मई को मंगल आया मिथुन राशि में जहां पहले से राहु जमा है. विचार यही कि शनि और केतु एक दूसरे के बहुत पास हैं और सारा उलटफेर इधर डेढ़ माह में ही हो गया, तभी चुनाव भी पड़े. अब आख़िरी चरण भी निबट गया.
समझ लो जातको कि देश की कुण्डली में गुरु आठवें घर का स्वामी है. पर यह न तो दसवें घर से जुड़ा और न ही शनि के साथ है. इसलिए जो भी अभी सत्ता में है, वही टिका रहेगा. परिणाम के दिन १२वें घर से गुजर रहा है शुक्र जो गडबडी करेगा पर कोई संशय नहीं. राहु उच्च का है और मजबूत भी. तनाव तो यह है कि आठवें घर में शनि कमजोरी वाला है पर उसकी दृष्टि वक्री है. फिर ठीक नतीजों के दिनों यह केतु के निकट है. वक्री शनी के साथ केतु की युति ‘एक्स फैक्टर’ है.
यह एक्स फैक्टर बहुजनों को भटका रहा. रंगीन फोटो और ईमेल के स्मृति भंग का दावा अटका रहा. बंगाल में गुरुपूर्णिमा सी दमकती खल्वाट शाह की गंजी पर आघात के वीडियो यहाँ-वहां पटका रहा. डेमोक्रेसी लाने के दावे करते रहा हाथ, तो कमल सारे फायदे झटका रहा. अमेठी, राबर्ट्सगंज में ईवीएम बदलवा रहा, लोकप्रशासन के हवाले जमा करवा रहा. कहीं हाथी पर दबे बटन तो कमल का छाप तिलक करा गया. सुना मशीन हैक-हूक कर सारा वोट उधर ही खिंचवा गया. दूसरे का बटन दबा रहे सूरमा पर छिटपुट सा केस भी चलवा रहा. उत्तर प्रदेश में दबंगई देख बंगाल की रणभूमि में शंख बजा उड़ीसा-केरल में सत्ता पीपरी बजा गया. सारा ध्यान उधर ही लपेट रहा. लाल रंग को भगवे में ट्रांसफॉर्म करनेवाले रंगरेज बुला रहा. पिंजरे में कैद शेरनी रंगे सियार धुलवा रही. जवाब में सत्ता की पंडिताई एक्शन के रिएक्शन में गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में हाथ को प्रसाद बंटवा रही, उडती चिड़िया को हल्दी लगा उड़ा रही. अब मीडिया से बैकप प्लान तैयार करवा रही. एक्जिट पोल में २७०-२८० दिला फिर सरकार बना रही. ममता, नायडू, पटनायक, केजरीवाल को जमा, सब सवर्णों को अटका, यादव लालू शिबू सोरेन की सीढ़ी लुढ़का पटका रही.
सांप-सीढ़ी का खेल प्रबल है भक्तजनों! तुम्हारे देश की कुण्डली में गुरु आठवें घर का स्वामी. ऐसा विकट कि न तो दसवें घर से जुड़ा और न शनि के साथ रहा. परिणाम के दिन बारहवें घर से गुजरेगा शुक्र. ये करेगा फड़फड़ेट पर घबराना नहीं राहु है उच्च का और मजबूत भी. वैसे तो आठवें घर में शनि लाता है दुर्बलता, यह तो शुक्र मनाओ कि उसकी नजर वक्री है. फिर ठीक एनाउंसमेंट के टैम यह केतु के निकट. इसीलिए समझाया वक्री शनि के साथ केतु की युति के घालमेल के एक्सफेक्टर को विस्तार से.
अब त्रिपुंड में ध्यान जमा विचार करें उस प्रबल राजयोग का जो छाया है उड़ीसा वाले नवीन पटनायक के मस्तक पर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के भाल व जगमोहन रेड्डी के कपाल पर. तुक्का देखो कि भाजपा के पतड़े में लगन मिथुन है तो रेड्डी व पटनायक की राशि भी मिथुन. भाजपा संग मोदी की चद्रराशि वृश्चिक, जो केसीआर की जनमराशि कर्क से त्रिकोण में होकर राम मिलाए जोड़ी के कथन को साकार करती.
तिरबच्चा राम सच्चा जो न माने गांधी का बच्चा. तुला लगन के राहुल बाबा का वृहस्पति कच्चा, ऊपर से मंगल की अन्तर्दशा, मंगल सूर्य की महादशा, जाएगा आगे पर अभी है नौसिखिया ये बच्चा. मंगल महादशा के साथ शुक्र की अन्तर्दशा. भाग्य याने नवें भाव से जनम के सूर्य और मंगल से गुजर रहा छटपट करने वाला राहु. फिर जनम के चन्द्र के ऊपर से गुजर रहा योगकारक शनि उस पर साढ़ेसाती का मध्यचरण. अमेठी तो गया ही समझो वायनाड में रमती है धूनी.
ले अब तेरी भी बारी आई. वार्ड रोब से छिटक तूने राखी की सौं निभाई. नकल में अकल लगाई. ये प्रियंका चली आई. मिथुन लगन का जनम. दशम व सप्तम भाव का स्वामी गुरु. स्वराशि के साथ केंद्र में विराजे, पंच महापुरुष राजयोगों में एक शुभ हमसा योग. गुरु लग्न का स्वामी बुद्ध और तृतीय भाव के स्वामी सूर्य के संग. पर शनि के साथ धनु में केतु है आता तुझे बहुत उलझाता. सातवें घर पर नज़र डाल, पति के करतब से करेगा परेशान. फिर साढ़े साती करेगी हैरान.
उधर मम्मी पर केतु की महादशा, बस बचालेंगी सीट. थोड़े से अंतर से मिलेगी जीत. डगर पनघट में पुराने लगुए-भगुए ही निभायेंगे प्रीत. जनम के मंगल से शनि और केतु का गोचर. गोचर का शनि जनम के चंद्र पर रखे सीधी प्रतीति. अब हाथ का पूरा कुनबा धनुराशि में गुरु के पारगमन से जगमग की निभाए रीत. पर कुर्सी में बैठाने का कोई न बजे गीत.
अब सपा-बसपा गठबंधन के कल की श्रुति. बारहवें घर के लग्नेश व चंचल चंद्र की युति. आन मिलो सजना की धुन तो बजाती. संग कोप कलह मनमुटाव की सारंगी भी टिंटियाती. सूर्य-शनि-बुद्ध की युति राग बेसुरा कर जाती. दसवें घर में केतु से भीड़ बहुत जुट जुटाती.टीम टाम दिखावे का रायता ही फैलाती. पीएम कुर्सी पर बारी बारी नजर टिकाती.
वहीं सुलग रहे उबल रहे बंगाल का हाल बेहाल. राहू महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा. हर पार्टी रसोगुल्ला चटकाती, जाती सीटों पर रस टपकाती. तू तड़ाक धक्का मुक्की विद्या सागर पर कोप जमाती. सुर संगीत ज्ञान योग की धरती पर रोड़े ला ला पटकाती. बाबू मोशाय को हर घड़ी बेचेन उग्र कर जाती.
अब पटना बिहार का पतड़ा देखो. खामोश करेंगे – खामोश रहेंगे के दोलन में दोलेंगे शत्रु. शनि की साढ़े साती के पहले चरण में लिपटे हैं सविघ्न. आठवें घर में विराजा है राहु. भीड़ जुटेगी बड़बोले की पर जीत में बदलें कैसे. प्रतिद्वंद्वी रविशंकर का गुरु 10वें भाव को देखने के साथ 11वें लाभ के भाव में राहु के गोचर से किलक रहा. वही गोचर रत शनि भी 11वें भाव तक रहा. अंतर थोड़ा बहुत पर विजयी भव कह रहा.
बेगूसराय के कन्हैया का जनमचक्र. सूर्य कुंडली में शनि और राहु के गोचर से उनके जनम के सूरज और चंदा पर उल्टा ही असर पड़ रहा. ये तो विषम दुश्चक्र है राजनीति में. ऊपर से गुरु भी आड़ा चल रहा. प्रतिद्वंद्वी गिरिराज का गोचर रत गुरु उनके जनम से ही चंद्रमा और गुरु को देखे जा रहा . छटे भाव का कारक राहु लाभ के 11वें भाव से गुजर रहा. शनि भाग्य के पांचवे भाव को रिसा रहा. अभी तो दौड़ में फिसड्डी ही दिख रहा ये नटखट, पर जेएनयू की जोत जगा रहा.
अब हाथियों के झुण्ड में दहाड़ते सिंह की गर्जना पर मन केन्द्रित करो. चंद्र की महादशा है आगे मंगल की चलेगी. यह जातक अधिपति है प्रखर मंगली. विरोधी शत्रु भी भयभीत रहेंगे. उस पर गुरु पर मंगल की दृष्टि है. आत्मबली उत्साही बनाए रखे. किंचित विधा ज्ञान भाव को दुर्बल संकीर्ण भी बनाए रखे. शुक्र का जनाकर्षण है. स्त्रीजित, कामाजित, गरिमामयी, महिलाओं के विरुद्ध नहीं. कामी लम्पट नहीं, स्त्रैण हीनता का मनोविकार नहीं. संग्राम की तत्परता. ना काहू से बैर, सबकी खैर. सावधान लेखा जोखाकार वणिक बुद्धि.
इसी मंगल से महाराज योग. लग्न वृश्चिक, जन्म मंगल. छटे घर व लगन का, विपरीत परिस्थितियों को दे चुनौती. स्वराशि का है इसलिए पंचपुरुष का महायोग बनता है. अब ये न देखो कि मंगल तो शून्य अंश का है, क्या ताकत रखेगा? पर वत्स! इससे बढ़ कर है दृष्टि जो संस्कारी परोपकारी बनाती है. पूर्व जनम के कर्म, वर्तमान जीवन के भोग से हिमालय की कंदराओं में धूनी रमा रहे. बदरी-केदार का प्रसाद पा रहे.
स्वराशि का मंगल पंचपुरुष महायोग बनाता. रुचक योग भी बनाता. फल दीपिका के मन्त्रेश्वर कहते, ऐसा जातक दीर्घ जीवन पाता. मजबूत इरादा बनाता. जितनी चुनौती उतना बल दे जाता. विरोधी की चाल उन्हीं पर पटकाता. फिर वृश्चिक लग्न का मंगल स्वक्षेत्री. वाकपटुता का संकल्प जगाता. अति भी कर जाता. शतरंज के मोहरे गहरी चाल में उलझात. राहु है गुरु के घर में व्यंग भाव से हास-परिहास उपजाता. मां की आशीष पा परम पूज्य हो जाता. नर के बीच नारायण सी जगह बनाता.
फिर शनि गुरु वक्री. वृषभ लग्न में शनि वक्री. उसी स्थान को देखता जो आगे रखे. वही बढ़ाए जहां से चला आ रहा. शनि के साथ केतु अध्यात्म की अलख जगाता. अब 23 मई को उत्तरसाड़ा नक्षत्र मकर राशि में आता. कालपुरुष की कुंडली में विवेकी को राज थमाता सबको कर आकर्षित अपना मार्ग सहज बनाता. अब यही सरकार चलाता. ग्रह नक्षत्रों की चाल से भविष्य का यही फल बताता. बाकी करनी-भरनी तो ब्रह्मा ही जाने. हम तुम मूरख तो बस विधि का लिखा इतना ही बाचें.
आशल कुशल देते रहना भगत. गुरु का मन हर्षित हो ऐसे करम करना. लिखते रहना.
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