बच्चों के लिए चिठ्ठी
-मंगलेश डबराल
प्यारे बच्चो हम तुम्हारे काम नहीं आ सके. तुम चाहते थे हमारा क़ीमती
समय तुम्हारे खेलों में व्यतीत हो. तुम चाहते थे हम तुम्हें अपने खेलों
में शरीक करें. तुम चाहते थे हम तुम्हारी तरह मासूम हो जाएँ.
प्यारे बच्चो हमने ही तुम्हें बताया था जीवन एक युद्धस्थल है जहाँ
लड़ते ही रहना होता है. हम ही थे जिन्होंने हथियार पैने किये. हमने
ही छेड़ा युद्ध हम ही थे जो क्रोध और घृणा से बौखलाए थे. प्यारे
बच्चो हमने तुमसे झूठ कहा था.
यह एक लम्बी रात है. एक सुरंग की तरह. यहाँ से हम देख सकते
हैं बाहर का एक अस्पष्ट दृश्य. हम देखते हैं मारकाट और विलाप.
बच्चो हमने ही तुम्हे वहाँ भेजा था. हमें माफ़ कर दो. हमने झूठ कहा
था कि जीवन एक युद्धस्थल है.
प्यारे बच्चो जीवन एक उत्सव है जिसमें तुम हँसी की तरह फैले हो.
जीवन एक हरा पेड़ है जिस पर तुम चिड़ियों की तरह फड़फड़ाते हो.
जैसा कि कुछ कवियों ने कहा है जीवन एक उछलती गेंद है और
तुम उसके चारों ओर एकत्र चंचल पैरों की तरह हो.
प्यारे बच्चो अगर ऐसा नहीं है तो होना चाहिए.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…