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जो रास्ता नहीं भूलते

 

चन्द्रकान्त देवताले

7 नवंबर 1936 को जौलखेड़ा, बैतूल (मध्य प्रदेश) में जन्मे चन्द्रकांत देवताले समकालीन हिन्दी कविता के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में से थे. उन्होंने अपने कार्य के लिए साहित्य अकादमी पुरुस्कार के अलावा मुक्तिबोध फेलोशिप, माखनलाल चतुर्वेदी कविता पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान, सृजन भारती सम्मान और कविता समय पुरस्कार हासिल किये. उनकी प्रमुख कृतियों में हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ, भूखंड तप रहा है, आग हर चीज में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उसके सपने, बदला बेहद महँगा सौदा, पत्थर फेंक रहा हूँ हैं. 14 अगस्त 2017 को उनका निधन हुआ.

 

चन्द्रकान्त देवताले की कविताएं – 6 

जो रास्ता भूलेग

मैं सुन रहा हूँ
किसी के पास आने की आहट

मेरी देह बता रही है
कोई मुझे देख रहा है

जो रास्ता भूलेगा
मैं उसे भटकावों वाले रास्ते ले जाऊँगा

जो रास्ता नहीं भूलते
उन में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं

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