Featured

मैं अभी-अभी माँ से मिलकर आया हूँ

 

चन्द्रकान्त देवताले

7 नवंबर 1936 को जौलखेड़ा, बैतूल (मध्य प्रदेश) में जन्मे चन्द्रकांत देवताले समकालीन हिन्दी कविता के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में से थे. उन्होंने अपने कार्य के लिए साहित्य अकादमी पुरुस्कार के अलावा मुक्तिबोध फेलोशिप, माखनलाल चतुर्वेदी कविता पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान, सृजन भारती सम्मान और कविता समय पुरस्कार हासिल किये. उनकी प्रमुख कृतियों में हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ, भूखंड तप रहा है, आग हर चीज में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उसके सपने, बदला बेहद महँगा सौदा, पत्थर फेंक रहा हूँ हैं. 14 अगस्त 2017 को उनका निधन हुआ.

 

चन्द्रकान्त देवताले की कविताएं – 4 

मै अभी-अभी माँ से मिलकर आया हूँ

वहाँ जैसे सभी कुछ आईने के भीतर बसा था
मै वहीं से अभी-अभी माँ के पास से आया हूँ
उसकी आँखों में आँसू नहीं थे
और वह वैसी परेशान-खटकरम में जुटी हुई नहीं थी
जैसी हम लोगों को बड़ा करते
इस दुनिया के उस चार कमरों वाले घर में ताज़िन्दगी रही

उसने मुझसे कुछ भी जानने की कोशिश नहीं की
जैसे उसे पता था सब कुछ
उसने मुझे उन निगाहों से भी देखा
जो सारे अपराधों को मुआफ़ी देती है

एक बार मर चुकने के बाद वह अमर हो गई थी
मैं उसके लिए सिर्फ़ एक भुक्ति हुई गूँज था
जो कभी उसके अतीत की धड़कन थी
उस थोड़े से बेआवाज़ वक़्त में
पत्थर का एक घोड़ा और दो कुत्ते ज़रूर दिखे
कुत्तों के प्रति अपने प्रेम के कारण
हाथ फेरा एक के माथे पर
तो उसका उतना हिस्सा रेत की तरह बिखर गया

चाहते हुए भी माँ को नहीं छुआ मैंने
पता नहीं किन-किन दुखों-स्मृतियों से भरी थी उसकी देह
मैंने चाहा किसी भी तरह मै देख पाऊँ
उन स्तनों को चूसते हुए अपने होंठ
कैसे युद्ध, मंदी और फाका-मस्ती के उन दिनों में
चिपटे हुए उसके पेड़ का पक्षी बन जाता था मैं

मैं उसे नहीं बता पाया
की कसाईख़ाने में काम करते शाकाहारी की तरह
मै ज़िन्दा हूँ इस दुनिया में
और शामिल हूँ उन्ही में जो
अपनी करुणा की तबाही और
अपने साहस की हत्या के लिए
दूसरों को अपराधी समझ रहे हैं

मै अभी-अभी माँ से मिलकर आया हूँ
और पुरखों की प्यास को चाट रहा हूँ
माँ से अपने ढंग की इस अकेली-अधूरी मुलाक़ात के बारे में

कोई सबूत देना संभव नहीं
यह न तो सपने में हुई
और न इसके लिए मुझे मृतकों में शामिल होना पड़ा.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago