इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं
दंत-कथाओं के उद्गम का पानी रखते हैं
पूंजीवादी तन में मन भूदानी रखते हैं
इनके जितने भी घर थे सभी आज दुकान हैं
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं
उद्घाटन में दिन काटें रातें अख़बारों में
ये शुमार होकर मानेंगे अवतारों में
कोई क्या सीमा-रेखा नापे इनके अधिकारों की
ये स्वयं जन्म-पत्रियाँ लिखते हैं सरकारों की
ये तो बड़ी कृपा है जो ये दिखते भर इंसान हैं
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं
उत्सव के घर जन्मे समारोह ने पाले हैं
इनके ग्रह मुँह में चाँदी की चम्मच वाले हैं
तुम होगे साधारण ये तो पैदाइशी प्रधान हैं
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं
– मुकुट बिहारी सरोज
26 जुलाई 1926 को जन्मे मुकुट बिहारी सरोज आधुनिक हिन्दी कविता में कम जाना हुआ लेकिन महत्वपूर्ण नाम हैं. उनकी कविता की किताबे किनारे के पेड़ और पानी के बीज प्रकाशित हुईं. अपनी कविता में उन्होंने भारतीय समाज और उसकी राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्था पर गहरे तंज किये. 18 सितम्बर 2002 को उनकी मृत्यु हुई.
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