इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है. इसे पितृ पक्ष भी कहा जाता है.अपने पितरों को याद करने की इस परम्परा का उत्तराखंड में बहुत महत्त्व है और इस अवधि में खान-पान और रहन-सहन में अनेक तरह के नियंत्रण रखना अनिवार्य माना जाता है. इस पक्ष में कौवे का महत्त्व बढ़ जाता है.
श्राद्ध के दिन कौवों को भोजन कराया जाता है. कौवे का इस दिन घर पर आना शुभ माना जाता है. श्राद्ध के दिन लोगों को अपनी छत पर कौवों का विशेष रूप से इंतजार रहता है. श्राद्ध के दिन यदि कौवा छत पर आ जाये तो इसे पितरों का प्रतीक और दिवंगत अतिथि स्वरुप माना गया है.
कुमाऊं क्षेत्र की मान्यतानुसार श्राद्ध पक्ष में कौवे दिवंगत परिजनों के हिस्से का खाना खाते हैं. कौवे को यमराज का दूत माना जाता है जो श्राद्ध में आकर अन्न की थाली देखकर यम लोक जाता है और हमारे पितृ को श्राद में परोसे गए भोजन की मात्रा और खाने की वस्तु को देखकर हमारे जीवन की आर्थिक स्थिति और सम्पन्नता को बतलाता है.
माना यह भी जाता है कि यदि दिवंगत के लिए बनाया गया भोजन को कौवा चख ले तो पितृ तृप्त हो जाते हैं. यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए पकवान बनाकर कौवों को भोजन कराते हैं.
कौवों को लेकर विश्वभर में अनेक मिथक हैं. जहां इसे विश्व के कुछ हिस्सों में इसे अशुभ माना जाता है वहीं कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां कौवों को शुभ माना जाता है. उत्तर-पश्चिम प्रशांत महासागर क्षेत्र, कनाडा का उत्तर-पश्चिम तटवर्ती इलाका जैसे कुछ क्षेत्र हैं जहां कौवे को सर्वोच्च देवता माना जाता है.
विश्व के अधिकांश देशों में कौवे के देवदूत होने संबंधी मिथक ही प्रचलित हैं. यह माना जाता है कि कौवे की मृत्यु न तो बीमार होकर होती है न ही कौवा कभी बूढा होकर मरता है. यह कहा जाता है कि कौवे की मृत्यु हमेशा अचानक ही होती है.
कौवे से जुड़ी एक और रोचक बात यह प्रचलित है कि जिस दिन एक कौवा मरता है तो उस दिन उस कौवे के साथी खाना नहीं खाते है.
-काफल ट्री डेस्क
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