पिथौरागढ़ महाविद्यालय को बने अब आठ एक साल हो चुके थे. 1970 में महाविद्यालय ने ईश्वरी दत्त पन्त के रूप में अपने पहले अध्यक्ष को भी चुन लिया था. पर एक सीमांत में बने इस महाविद्यालय में अब भी मैदान से सजा के तौर भगाये अध्यापक ही आते थे. उनको सजा के तौर पिथौरागढ़ महाविद्यालय में नियुक्ति दी जाती थी.
(Pithoragarh Golikand 1972)
साल 1972 का था पूरे पहाड़ में ‘कुमाऊं-गढ़वाल विश्वविद्यालय बनाओ आन्दोलन’ चल रहा था. पहाड़ के महाविद्यालय आगरा यूनिवसिर्टी से जुड़े थे. मार्कशीट में सुधर से लेकर बैक पेपर, डिग्री लाने छात्रों को आगरा जाना होता. इस वर्ष पिथौरागढ़ महाविद्यालय के अध्यक्ष निर्मल भट्ट चुने गये. अध्यक्ष बनने पर उन्होंने अपना काम नाकारा अध्यापकों को हटाने की मांग से शुरु किया.
‘नैनीताल समाचार’ में छपे एक लेख में पिथौरागढ़ के वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह महर बताते हैं कि इस दौरान छात्र संघ में भूपेन्द्र माहरा उपाध्यक्ष, इकबाल बख्श सचिव और हयात सिंह तड़ागी कोषाध्यक्ष के पद पर थे. छात्र संघ के शिक्षकों को हटाने की मांग पर हुये आन्दोलन के कारण प्रशासन ने कुछ दिन के लिये अध्यापकों को छुट्टी पर भेज दिया और फिर पुनः बहाल कर दिया.
अध्यापकों की पुनः बहाली पर छात्र उग्र हो गये और उन्होंने छुट-पुट तोड़-फोड़ की. इसी शाम को छात्र नेताओं के नाम वारंट निकाल दिये गये. निर्मल भट्ट प्पद्यौ गांव में नेपालियों के भेष में भूमिगत हो गये जबकि भूपेन्द्र सिंह माहरा, इकबाल बख्श और राजू पुनेडा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार छात्र संघ के नेताओं को पुलिस अल्मोड़ा ले गई.
दिन 15 दिसम्बर का था छात्रों और जिलाधिकारी के मध्य बहस हो गयी. छात्र कोतवाली का घेराव कर रामलीला मैदान में इकठ्ठा हो गये. सारी स्थिति नियंत्रण में थी पर जिलाधिकारी रोशनलाल सुबह की खुन्नस में बौखलाये हुये थे उन्होंने गोली चलाने का मौखिक आदेश दे दिया. गोलीकांड में 10 से 15 छात्र घायल हो गये.
(Pithoragarh Golikand 1972)
इस गोलीकांड में सज्जन लाल शाह नाम के एक हाइस्कूल के छात्र की मृत्यु हो गयी. निर्मल भट्ट के नेपाली भेष में होने के धोखे में एक नेपाली मजदूर सोबन सिंह की भी गोली लगने से मौत हो गई.
आनन्द बल्लभ उप्रेती अपनी किताब हल्द्वानी का इतिहास में बताते हैं कि गोलीकांड की जांच के लिये फैक्ट फाइडिंग कमेटी गठित की गयी थी. कमेटी के समक्ष छात्रों का पक्ष रखने के लिये नैनीताल से दयाकिशन पाण्डे आये थे. अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने कहा कि
प्रशासन की लापरवाही के कारण यह गोलीकांड हुआ और गोली चलाने की कोई आवश्यकता नहीं थी.
गोलीकांड के बाद उ.प्र. सरकार दबाव में आई और जनवरी 1973 में कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी का गजट नोटिफिकेशन हो गया. फरवरी से दोनों विश्वविद्यालय शुरू भी हो गये और कुमाऊं यूनिवर्सिटी बनी नैनीताल में.
(Pithoragarh Golikand 1972)
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