दिन – 1 : बागेश्वर से खाती गाँव
खबडोली गाँव में रात गुजारने के बाद हम तैयार थे आज खाती गाँव की ओर निकलने के लिए. असल मे एक दिन पहले हम (मैं और रिस्की पाठक) हल्द्वानी से एक बाइक मे 20 – 20 किलो के दो बैग लेकर सुबह कोई 9 बजे निकले थे और कोई रात के 8 बजे हम खबडोली गाँव पहुँचे.
सुबह 9 बजे हमने खबडोली छोड़ दिया, गाँव से नई रोड का कटिंग काम चल रहा है, जो बागेश्वर से 5 किलोमीटर पहले कमेडी पर मिलती है. 10 किलोमीटर के इस सफर को पूरा करने मे हमे लगभग एक घंटा लग गया. उसके पीछे का कारण रोड का तीखा ढाल और रास्ते में पड़े बड़े बड़े पत्थर थे, जो कभी भी हमारी स्पीड नहीं बढ़ने दे रहे थे. बागेश्वर मे एक दोस्तों की मण्डली के साथ चाय पी कर हम कपकोट के रास्ते लग गए. मई की भीषण गर्मी का अहसास इस रास्ते पर बखूबी हमे हो रहा था.
कल हल्द्वानी से हम निकले एक बाइक पर थे लेकिन रानीखेत से हमने एक बाइक का जुगाड़ और कर लिया था क्यूंकि एक तो पहाड़ का रास्ता, ऊपर से दो बड़े बैग एक बाइक मे असहज कर रहे थे. कपकोट से एक किलोमीटर आगे भराड़ी करके एक जगह पड़ती है, जहां से दो रास्ते कटते हैं, एक रास्ता शामा होकर मुँसियारी को जाता है इसी रास्ते में नामिक ग्लेशियर भी पड़ता है, और दूसरा रास्ता कर्मी होकर खरकिया जाता है, ये ही रास्ता पिंडारी ग्लेशियर के लिए जाता है. इस रास्ते में अंतिम खरकिया तक ही रोड गई है. भराड़ी से आगे बढ़ने पर रीठा बगड़ एक जगह पड़ती है, यहां से एक शॉर्ट रास्ता कर्मी गाँव के लिए कट जाता है और सीधा लोहार खेत के लिए जाता है दोनों आगे मिलते हैं लेकिन पहला वाला रास्ता करीब 30 किलोमीटर शॉर्ट होता है ऐसा रीठा बगड़ मे पता चलता है. रीठा बगड़ से कर्मी बारह किलोमीटर का सफर लगभग एक घंटे मे पूरा होता है.
अब हम घाटी छोड़कर ऊंचाई की तरफ आ चुके होते हैं. कर्मी ग्राम सभा बागेश्वर की सबसे बड़ी ग्राम सभा में से एक है. कर्मी गाँव अस्कॉट अराकोट यात्रा का भी एक पड़ाव है. कर्मी मे रुक कर चामू सिंह के ढाबे पर दो मैगी दबा कर हमने आगे बढ़ना सही समझा. कर्मी से 10 किलोमीटर आगे विनायक करके जगह पड़ती है, यहां से एक मोड़ से खिड़की जैसी खुलती है और आपको सामने बर्फ से ढकी चोटियां दिखने लगती हैं, गौर से देखने पर लगता है शायद ये नन्दा खाट रही हो. विनायक से खरकिया कुल 11 किलोमीटर का ये सफर आपके ड्राइवर स्किल का अच्छा इम्तिहान लेता है, क्यूंकि इस रास्ते में रोड नहीं है बल्कि रोड मे बड़े बड़े पत्थर पड़े हैं और रास्ते में पानी के स्रोत अलग. खरकिया पहुचने पर आपको अपनी गाड़ी यहीं रोकनी होती है, पिंडारी ट्रेक पर खरकिया अंतिम जगह है, जहां तक रोड गई है, हालांकि रोड इसके थोड़ा आगे वाछम तक जाती है. वाछम ग्रामसभा यहीं से लग जाती है.
खरकिया आपकी ट्रेकिंग का शुरुआती पॉइंट है, यहां से पिण्डारी के लिए पोर्टर, गाइड, खच्चर सब मिल जाते हैं. खरकिया पर ही चाय पी कर आप अपनी सड़क यात्रा की थकान उतार कर पैदल रास्ता पकड़ते हैं. हम 5 बजे खरकिया पहुंच चुके थे, और चाय पी कर हम खाती गाँव के लिए निकल पड़े. खरकिया से खाती 5 किलोमीटर का आसान सा ट्रेक है, जिसके बीच मे गाँव पड़ते हैं, यहां देख कर पता चलता है कि इस एरिया मे लाइट नहीं है अभी तक, बिजली के खंबे दिखावटी हैं, थोड़ा बहुत काम सोलर पैनल से ही चलता है. हंस फ़ाउंडेशन करके एक एनजीओ ने यहां बहुत अच्छा काम किया है. गाँव के स्कूल में कंप्यूटर के लिए टीचर दिए हैं, अंशदान करके गाँव वालों के लिए पॉली हाउस बनाए हैं, पानी के लिए नल लगाए हैं, स्वास्थ्य सेवा दी है, इस तरह के काम को पहचान मिलनी चाहिए.
6.30 बजे तक हम खाती गाँव की सीमा में पहुंच जाते हैं यहाँ से सामने दो अलग अलग घाटी दिखती हैं, ओख़लिया करके एक पहाड़ सुंदरढूँगा घाटी और पिण्डर घाटी को अलग करता है, यहीं दो घाटियों से सुंदरढूँगा और पिण्डर नदी नीचे मिलती दिखाई देती हैं. और सामने आपको शानदार खाती गाँव दिखता है, पिण्डारी ट्रेकिंग पर खाती गाँव अंतिम गाँव है, खाती गाँव अपने मे बहुत खूबसूरत गाँव है, रंग बिरंगे घर और उनके आगे कायदे से लगे खेत गजब का व्यू देते हैं. कुमायूँ के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी गोलू, नरसिंह, लाटू, भगवती पूजी जाती हैं, अन्य हिस्सों की तरह यहां भी जागर लगती है, नंदा मेला लगता है, झोड़े चांचरी होते हैं. खाती गाँव मे रुकने के लिए कॉटेज, होम स्टे सब व्यवस्था है, पर लाईट के लिए सोलर पर निर्भर हैं. खाती गाँव से दो रास्ते निकलते हैं दो अलग अलग घाटियों के लिए आप यहां से सुंदर ढूंगा और पिंडर घाटी के लिए रास्ता पकड़ सकते हैं. हमने गाँव मे पहुंचते ही कृष्णा कॉटेज बुक किया जो बहुत ही किफायती किराए मे हमे मिल गया, और यहाँ से पूरा खाती गाँव सामने दिखता है, रात को खाने मे हमने सामने खेत की ताज़ी हरी सब्जी और लोकल उगाई मसूर की दाल का आनंद लिया. तो इस तरह पिण्डारी ग्लेशियर के ट्रेक मे पहला दिन कुछ इस तरह बीता.
दिन – 2 : खाती गाँव से द्वाली
अंधेरे में जो खाती गाँव छोड़ा था, वो सुबह की रोशनी में गजब का दिखाई पड़ रहा था. हंस फ़ाउंडेशन द्वारा सजाये गए इस गाँव का हमने एक चक्कर लगाया. हर घर की दीवार पर आपको पहाड़ की चित्रकारी मिलेगी. वापस लौट कर गरम पराठे हमारा इंतज़ार कर रहे थे. समय खराब ना करते हुए ये काम हमारे द्वारा जल्दी से निपटा लिया गया. खाती, खरकिया कहीं लाइट नहीं है, बस खंबे गाड़े गए हैं, यहां की जरूरत सोलर से पूरी होती है. अब हम तैयार हो चुके थे आज के अपने द्वाली तक के सफर के लिए जो खाती से 11 किलोमीटर के आस पास था, जिसकी कठिनाई के बारे में हमे कुछ भी ना पता था. सुबह 8 बजे हमने खाती छोड़ दिया और लग पड़े. खाती से कुछ ही आगे चलने पर पिण्डर नदी रास्ते के किनारे किनारे हमारे साथ चलती है. इस बीच ट्रेक सरल से कठिन होता जाता है. 2 किलोमीटर के बाद पहली बार एक पुल से हम पिंडर पार करते हैं, पिंडर का वेग एक बार को डराता है.
पुल पार करते ही असली इम्तिहान शुरू होता है चढ़ाई का, कहीं कहीं पर तो चढ़ाई 75° तक चली जाती है, उसे पार करते हुए सारी अंतड़ियां एक ओर हो जाती हैं. खैर चलते चलते हम इस इम्तिहान मे पास होते चले गए. इस ट्रेक के करीब बीचों बीच मे एक चाय का ढाबा आता है, खाती से द्वाली के बीच मे यही एक पॉइंट है जहां चाय मैगी आपको मिल सकती है और अंत मे वो समय आया जब हमे सामने द्वाली दिखने लगा, लेकिन सामने हमे आपदा के निशान भी साफ दिख रहे थे, 2013 की आपदा मे यहां एक तरफ के पूरे पहाड़ लैंड स्लाइड के चलते बेहद भयावह नजर आते हैं. सामने से दो अलग अलग नदियां मिलती हुई दिखती है. दाईं तरफ से कफनी नदी और बाईं से पिंडर नदी आती है और दोनों द्वाली पर मिल कर पिण्डर नदी के से आगे बढ़ जाती है. आपको कम से कम एक किलोमीटर सूखी नदी में बड़े बड़े पत्थरों के ऊपर से चल कर द्वाली तक का सफर पूरा करना होता है. द्वाली से दो ग्लेशियर ट्रेकिंग के रास्ते जाते हैं, कफनी नदी की तरफ कफनी ग्लेशियर ट्रेक, और पिंडर नदी की तरफ पिंडर ग्लेशियर ट्रेक. द्वाली पहुंच कर हमने पी डब्ल्यू डी के कॉटेज मे रुकने की बात तय करी. ये पी डब्ल्यू डी का गेस्ट हाउस 150 साल की उम्र पूरी कर चुका है ऐसा बताया गया. सामने खाती गाँव के भजन सिंह दानू का संगम होटल हुआ जहां हमने भात दाल से हिसाब बराबर किया. उनसे अच्छी दोस्ती भी हो गई. खाती गाँव की तरह यहां भी सोलर भरोसे जीवन चल रहा है. इन 11 किलोमीटर ने पैर अच्छे खासे थका दिए थे तो हमने आज का ठिकाना द्वाली को ही बनाना ठीक समझा और फूर्किया अगले दिन पर छोड़ दिया.
दिन – 3 : द्वाली से फुरकिया
तीसरे दिन हमारी सुबह द्वाली मे हुई, रात को ठंड काफी बढ़ गई थी और पिण्डर नदी बार बार अपनी आवाज से आपको उठाती रहती है. सुबह उठ कर तय हुआ कि फुरकिया के लिए जल्दी निकला जाए और फुरकिया पहुंच कर ज़ीरो पॉइंट की तरफ बढ़ा जाए. उसी हिसाब से हमने भजन साहब से पराठे रास्ते के लिए रखवा लिए, और सोचा कहीं किसी स्रोत के पास बैठ कर इन्हे निपटाया जाएगा. कार्यक्रम उसी हिसाब से सेट रहा और हमने सात बजे द्वाली छोड़ दिया, विदा करते हुए कुक साहब ने हिदायत दी कि आपको जगह जगह ग्लेशियर पिघले मिलेंगे, उन्हे पैरों के बने निशान की मदद से पार करना है.
करीब एक किलोमीटर के ट्रेक के बाद ही हमे छोटी सी वॉटर क्रासिंग मिली जो बर्फ से जमी थी, उसे पैरों के निशानों के सहारे पार किया गया. सुबह के समय बर्फ के ऊपर पाला पड़ा होने के कारण वो बहुत फिसलन भरी हो गई थी, थोड़ी सी लापरवाही और आप कई सौ मीटर बरफ़ के आगोश में समा जाएंगे और किसी को इसकी खबर भी नहीं होगी. जैसे-जैसे हम ऊपर की तरफ बढ़ते जाते हैं बर्फ की मात्रा बढ़ती जाती है. बरफ मे ऊपर की ओर चढ़ना ज्यादा आसान है ऐसा मुझे लगा, दो ढाई किलोमीटर के ट्रेक के बाद ज्वार पानी करके यहां एक जगह आती है जिसमे एक ग्लेशियर पॉइंट को पार करके खुला मैदान आता है जिसमे हरी पत्ति सरीखी एक वनस्पति उगी दिखाई देती है, इसे खोलिया कहते हैं लोकल लोग खाती गाँव के इसे खाने मे भी प्रयोग करते हैं.
इसे पार करते ही 150 मीटर चौड़ाई का एक ग्लेशियर तैयार खड़ा होता है इसे पार करने के लिए एक संकरी पगडण्डी बनी हुई है, उसी मे पैरों के निशान ढूंढते हुए हमने इसे पार किया. चार घंटे की ट्रेकिंग के बाद हम फुरकिया पहुंच चुके थे, फुरकिया कोई 3200 मीटर की ऊंचाई मे है, और यहाँ से नंदा खाट दिखाई पड़ती है. फुरकिया मे के एम वी ऐन, के टी आर सी हैं. हम कोई 11 बजे फुरकिया पहुंच चुके थे और अब जो सबसे बड़ा धोखा यहां हुआ कि हमको पता चला कि ज़ीरो पॉइंट तक रूट क्लियर नहीं है, इस सीज़न कोई भी ज़ीरो पॉइंट नहीं जा सका है. ऐसी कोई भी जानकारी पर्यटक को कपकोट, खरकिया पर नहीं दी जाती, जब वो दो दिन ट्रेक कर के फुरकिया पहुंचता है तब उसे ये पता चलता है और तब ठगा हुआ महसूस करने के अलावा उसके पास कोई और चारा नहीं होता. पिंडारी ट्रेक रूट पी डब्ल्यू डी कपकोट के अंदर आता है, किसी भी अधिकारी ने ये जहमत नहीं उठाई कि पिंडारी आने वाले पर्यटकों को कपकोट या खरकिया मे कोई जानकारी उपलब्ध कराई जाए. ऐसे उदासीन रवैये से पर्यटक के मन मे अगली बार आने के लिए संशय रहता है. फुरकिया से हम जितना आगे जा सकते थे, गए करीब ढेड किलोमीटर ज़ीरो पॉइंट की तरफ चलने पर हमे एक बड़ा ग्लेशियर मिला जिसकी चौड़ाई 200 मीटर के लगभग थी, इसे शुरुवाती पार करने के दौरान हमारी पकड़ बर्फ मे कमजोर बन रही थी, एक आध बार हम फिसल के संभले भी, आखिर मे हमने भी हार मान ली और आगे रिस्क लेना उचित नहीं समझा और हम बेमन से फुरकिया वापस लौट आए.
फुरकिया पर कई जगह मोनाल दिखते हैं, कुछ देर उन्हे देखने के बाद हम नीचे वापस आ गए. रात फुरकिया मे बड़ी ठंड मे कटी, सुबह देखा मौसम और खराब था, नंदा खाट काले बादलों से छुपी थी, कुछ ही देर मे तेज़ हवा के साथ बरफ़बारी शुरू हो गई जो आधा घंटा चली. हमने अब वापस खरकिया निकलना सही समझा. आठ बजे फुरकिया छोड़ते हुए हम शाम चार बजे तक खाती पहुंच गए थे. खाती पहुंचते पहुंचते मौसम और बिगड़ गया, और करीब एक किलोमीटर का ट्रेक हमने बारिश में किया. हमे खरकिया होकर विनायक निकलना था, लेकिन खराब मौसम ने हमारे पैर रोक दिए और हम खाती में उसी होटल मे रुक गए जहां पहले रुके थे. इस तरह हमारे इस पिन्डारी ग्लेशियर ट्रेक का अंत हुआ.
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अल्मोड़ा ताड़ीखेत के रहने वाले मुकेश पांडे अपने घुमक्कड़ी धर्म के चलते डोई पांडे नाम से जाने जाते हैं. बचपन से लखनऊ में रहने के बाद भी मुकेश पांडे के दिल में पहाड़ खूब बसता है. अपने घुमक्कड़ी धर्म के लिये ही पिछले पांच साल से प्रमोशन को ठुकरा कर लखनऊ के एक बैंक में घुमक्कड़ी के वास्ते ही नौकरी भी कर रहे हैं. पूरे देश की सड़कों पर अपनी मोटरसाइकिल की छाप छोड़ने की तमन्ना रखने वाले मुकेश पांडे हाल ही में पिंडर घाटी से लौटे हैं. यह उसी यात्रा का यात्रावृतांत हैंं.
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जिद थी और हम पहुंच गए पिंडारी ग्लेशियर
पिंडारी घाटी का जन-जीवन : फोटो निबंध
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1 Comments
Nazim Ansari
वास्तविक अनुभवों पर आधारित सुन्दर यात्रा-वृतांत ,उच्च हिमालयी क्षेत्र का वास्तविक ज्ञान ऐसी यात्राओं (विशेष रूप से पैदल यात्रा /ट्रेकिंग ) के बिना संभव नहीं है | ज्ञानवर्धक आलेख व सुन्दर चित्रों के लिए साधुवाद |