सपना पूरा होने जैसा था पिंडारी ग्लेशियर का सफर
25 नवंबर 2018 को देर शाम करीब छह बजे मुझे एक दोस्त का फोन आया. दोस्त ने फोन उठते ही कहा, बागेश्वर (Bageshwar) जिले में पिंडारी ग्लेशियर (Pindari Glacier Track) चलोगे? मैंने बिना सोचे समझे जवाब दिया, हां क्यों नहीं. फिर मुझे बताया गया कि आपको आज रातों-रात बागेश्वर तक सफर तय करना होगा. मैंने जवाब दिया कि सुबह छह बजे वहीं मिलूंगा.
दोस्तों को शायद भरोसा नहीं था कि मैं पहुंच पाऊंगा. बिना समय गंवाये ही मैंने अखबार ले जाने वाली गाड़ी के चालक को फोन लगाया और अपने लिए एक सीट रखने को कहा. ऑफिस का काम पूरा कर मैं सीधे प्रेस पहुंचा. जहां गाड़ी में अखबार के बंडल रखने के बाद हम रात करीब एक बजे बागेश्वर के लिए रवाना हो गए. रातभर उस्ताद से मैं पिंडारी के बारे में चर्चा करता रहा. उसने इतना कुछ बताया लेकिन जिज्ञासा थमने का नाम नहीं ले रही थी. बागेश्वर पहुंचते ही चालक ने कहा, लो भइया! आ गया आपका बागेश्वर.
मैंने अपने दोस्तों को फोन लगाया और कहा कि जितना जल्दी हो सके चल पड़ो, वह बोले कि क्या सचमुच पहुंच गए, मैंने बस अड्डे के पास एक मिठाई की दुकान का नाम बताया तो उन्हें यकीन हुआ कि हां, मैं सच में वहीं हूं.
इसके बाद हम बिना समय गंवाए 70 किलोमीटर का सफर गाड़ी से तय कर खड़किया पहुंचे. वहां से पैदल करीब चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित खाती गांव पहुंचे. यहाँ पहुँचते-पहुँचते शाम ढलने लगी तो यहीं रात गुजारने का फैसला किया. गांव में होम स्टे योजना के अंतर्गत एक स्थानीय व्यक्ति के घर पर हमारा रुकना हुआ. इस गांव में न इंटरनेट था न ही बिजली. लेकिन पूरा गांव सोलर सिस्टम से लैस था. गांव इतना खूबसूरत कि विस्तार से वर्णन करने पर एक किताब बन सकती है. गांव के लोगों का अतिथि सत्कार मैं जीवन भर नहीं भूल सकता.
अगली सुबह हमें घर के मुखिया ने रास्ते के लिए परांठे भी बांधकर दिए और हमारी पिंडारी ग्लेशियर के लिए आगे की ट्रेकिंग शुरू हुई. अपने युवा गाइड खीम सिंह दानू उर्फ खर्कू के साथ हमारा आगे का सफर होना था. इस दिन खाती से 19 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद हम फुरकिया पहुंचे. रात्रि विश्राम यहीं किया.
बुधवार सुबह 6 बजे हम चल पड़े पिंडारी ग्लेशियर की ओर. करीब 8 किलोमीटर चलने के बाद जीरो प्वाइंट पहुंचे. सचमुच यहां का जो नजारा था, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुमकिन नहीं है. इस अहसास को उसी बर्फ से लकदक चोटी पर खड़े होकर ही महसूस किया जा सकता है. बर्फ से ढके उंचे उंचे पहाड़ जैसे हमसे बातें कर रहे थे. पिंडारी ग्लेशियर से निकलती पिंडारी नदी के कल कल बहते पानी की वह मधुर आवाज. रास्ते में मोनाल, घुरल का झुंड कई बार मिला.
यहाँ काफी वक़्त बिताने के बाद हम वापस फुरकिया पहुंचे और दोपहर का भोजन कर पंद्रह बीस मिनट आराम किया.
अब मुझे बताया कि केएमवीएन के गेस्ट हाउस के दोनों स्टाफ कर्मचारी हमारे संग वापस चलेंगे, लेकिन बीच में हमारे दल ने वापस खाती गांव पहुंचने का फैसला किया. यानि हमें लगातार 35 किलोमीटर दुर्गम रास्तों से होते हुए जाना था. खैर सभी ने हिम्मत की तो मैंने भी चल पड़ने की हिम्मत बांधे रखी. बीच सफर में मांसपेशियों में दर्द के कारण मुझे द्वाली के पास नदी पार एक कुटिया में रहने वाले साधु महाराज ने पेन किलर खाने के लिए दी.
रात करीब 9 बजे हम सभी खाती पहुंचने में कामयाब रहे. 35 किलोमीटर का सफर हंसते-बतियाते कब तय हुआ ये तो हम कभी नहीं भूल सकते. लेकिन यकीन मानिए पिंडारी ग्लेशियर का ट्रेक महज तीन दिन में पूरा करना हम सबके लिए एक उपलब्धि रही.
केएमवीएन की शानदार व्यवस्थाओं की तारीफ जरूरी है. रास्ते में पांच से दस किलोमीटर की दूरी पर विश्राम गृह बने हैं. जिनमें रुकना एक खास अनुभव रहा. स्थानीय स्कूल में बारहवीं के छात्र खीम सिंह दानू उर्फ खर्कू, और वहां पढ़ाने वाली शिक्षिका दीदी, जिन्होंने हमें बहुत मदद की और हमारा हौसला भी बढ़ाया, उनसे हमने अगली सुबह विदाई ली और वापस हल्द्वानी की ओर चल दिए. वास्तव में यह सफर लाजवाब था. यादगार. अदभुत. सफर आगे भी जारी रहेगा. निरंतर.
मूल रूप से हिमाचल के रहने वाले महावीर चौहान हाल-फिलहाल हल्द्वानी में हिंदुस्तान दैनिक के तेजतर्रार रिपोर्टर के तौर पर जाने जाते हैं.
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