जियारानी (Jiarani) कत्यूरी वंश की रानी थी. खैरागढ़ के कत्यूरी सम्राट प्रीतमदेव उनके पति हुआ करते थे. हल्द्वानी शहर, उत्तराखंड (uttarakhand) से लगभग चार किमी की दूरी पर रानीबाग स्थित है. यहाँ हर साल जियारानी का मेला लगता है.
पूस माघ की आखिरी तिथि को लगता है जियारानी का मेला
यह मेला पूस माघ की आखिरी तिथि को लगता है. इस दिन पुरे राज्य भर से कत्यूर वंश के वंशज इकट्ठा होते हैं. अपने-अपने गाँवों से गाजे-बाजे के साथ आये कत्यूरी वंश के वंशज रानीबाग आते हैं. यहाँ गौला नदी के किनारे जियारानी की शिला पर दिया-बत्ती करते हैं.
पूस की रात की आखिरी तिथि को पूरा रानीबाग जै जिया जै जिया के उद्धोष से गूंजायमान रहता है. हजारों की संख्या में यहाँ पूरी रात बच्चे, बूढ़े, जवान, महिला मिल जायेंगे.
जियारानी मेले में अपने-अपने वाद्य यंत्र
जियारानी के मेले की ख़ास बात यह है कि इसमें शामिल सभी कत्यूर वंश के वंशज अलग-अलग जागर लगाते हैं. उत्तराखंड के अलग-अलग वंश से आये कत्यूर वंश के इन वंशजों के पूजा करने का तरीका भी अलग-अलग है.
सभी के अपने-अपने वाद्य यंत्र हैं. इस जागर में हुड़का, मसकबीन, ढोल, दमवा, थाली का प्रयोग सामान्य रूप से किया जाता है. अलग-अलग गांव के लोग अलग-अलग तरीके से जिया रानी का आह्वान करते हैं. इसतरह जिया रानी का मेला अपने कत्यूर राजवंश में फैली विविधता को समेटा हुआ है.
रामनगर के पास बेताल घाट,अल्मोड़ा में कसार देवी से, नैनीताल में बल्दियाखान, बागेश्वर चमोली सीमा के गाँवों से लोग समूहों में आते हैं. कत्यूर वंश के इन वशंजों की भाषा, बोली, पहनावा,खानपान अलग-अलग है. जियारानी के प्रति आस्था इन सबको जोड़कर रखती है.
पूरी रात आग की अलग-अलग धूनी जली रहती हैं. धूनी जिनके किनारे पुरुष, महिला और बच्चे बैठे रहते हैं. महिलाओं द्वारा किसी ख़ास प्रकार की पारम्परिक वेशभूषा का प्रचलन देखने को नहीं मिलता है. पुरुषों द्वारा सफ़ेद रंग का कुर्ता, धोती और सिर पर कत्यूरी राजवंश के गर्व की प्रतीक सफ़ेद रंग की पगड़ी पहनते हैं.
पूरी रात जिया रानी की जागर के साथ इनके स्थानीय देवताओं का अवतरण भी होता है. जिया रानी को देवी रूप में तो पूजा ही जाता है साथ ही इस जागर में उनका पूरा परिवार अवतरित होता है.
दो बजे के बाद यहाँ का तापमान और तेजी से गिरने लगता है. लगभग तीन बजे तक यह शून्य डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है. पूरी रात जागर के बाद सुबह की इस कड़ाके की ठण्ड के बावजूद लोग गौला नदी में स्नान करते हैं. इसके बाद जिया रानी की शिला के दर्शन के बाद सभी अपने घरों को जाते हैं.
2019 में जियारानी के मेले की तस्वीरें-
–काफल ट्री डेस्क
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