पहाड़ में कार, बस या टैक्सी से सफर करने पर सबसे बड़ा सिरदर्द है – जी मिचलाना या उल्टी होना. गाड़ी के पहाड़ चढ़ते ही कुछ लोगों को चक्कर आने लगते हैं और कुछ उल्टी करते-करते पस्त हो जाते हैं. इस उल्टी से बचने के लिए नींबू चाटने से लेकर उल्टी रोकने वाली दवाई खाने तक कई उपचार आजमाए जाते हैं.
पिथौरागढ़ से बड़े शहरों की तरफ सार्वजनिक टैक्सी से सफर करने वाली सवारियों को आजकल ‘पल्टी’ का सामना भी करना पड़ता है. पल्टी मतलब टैक्सी चलाने वालों की एक बिल्कुल नई खोज, जिसके तहत पिथौरागढ़ से टनकपुर को चलने वाली टैक्सी यात्री को आधे रास्ते से दूसरी टैक्सी में शिफ्ट करके वापस पिथौरागढ़ की राह पकड़ लेती है – टनकपुर से आने वाली टैक्सी से सवारियों की अदला-बदली करने के बाद. इस पल्टी व्यवस्था से टैक्सी वालों को यह सुभीता हो जाता है कि वो पूरे चक्कर के पैसे कमाकर वापस अपने घर पहुंच जाते हैं, लेकिन इसमें सवारियों को बहुत परेशानी होती है.
उल्टी से पस्त सवारियों को जब पल्टी करने के लिए आधे रास्ते में उतारकर दूसरी गाड़ी में बैठने को मजबूर किया जाता है तो कई बार झगड़े की नौबत आ जाती है. पहले पहल यह सवारियों को समझ ही नहीं आता कि आखिर उन्हें चलती फिरती गाड़ी से दूसरी गाड़ी में बैठने को क्यों कहा जा रहा है, जबकि दूसरी वाली गाड़ी में सवारियां पहले से ही ठुंसी हुई हैं?
बमुश्किल सवारियों को कन्विंस करने के बाद सबसे पहले जीपों की छतों से सामान की अदला-बदली को जाती है. उसके बाद जो सवारी जिस सीट पर बैठकर आई थी, दूसरी गाड़ी में उसी सीट पर बैठकर आगे का सफर पूरा करती है. कई बार ऐसा भी हो चुका है कि जीपों के बीच सामान की अदला-बदली के समय सवारी ने ध्यान नहीं दिया तो पिथौरागढ़ से निकली हुई सवारी तो टनकपुर पहुंच गई लेकिन उसका सामान पिथौरागढ़ जाने वाली गाड़ी में ही रह गया और वापस पिथौरागढ़ पहुंच गया.
कहा जाता है कि एक बार पिथौरागढ़ और टनकपुर टैक्सी यूनियन के बीच पार्किंग को लेकर विवाद हो गया. बात मारपीट तक पहुँच गई और उसका अंजाम ये हुआ कि पिथौरागढ़ की टैक्सियों का टनकपुर में घुसना मुश्किल हो गया और टनकपुर वालों का पिथौरागढ़ में घुसना. आखिर टैक्सी चलाने वाले ड्राइवरों ने ये अनूठी खोज की. अपने शहर से सवारी भरकर निकलो, रास्ते में पल्टी वाली गाड़ी में सवारी बदलकर घर को वापस. ड्राइवर आपस में मोबाइल से सम्पर्क करने के बाद चंपावत के आसपास एक साथ पहुंचकर पल्टी को अंजाम देने लगे.
सालों-साल से पहाड़ की यातायात व्यवस्था आज भी धक्के खाकर ही चल रही है. सवारियां पहले रोडवेज के धक्के खाती थीं, फिर महिंद्रा की जीपों ने आकर रोडवेज का एकाधिकार खत्म किया. आजकल पिथौरागढ़ से लम्बे रूट की सार्वजनिक यातायात व्यवस्था आल्टो पर निर्भर है. उल्टी और पल्टी का झंझट बदस्तूर जारी है.
हेम पंत मूलतः पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं. वर्तमान में रुद्रपुर में कार्यरत हैं. हेम पंत उत्तराखंड में सांस्कृतिक चेतना फैलाने का कार्य कर रहे ‘क्रियेटिव उत्तराखंड’ के एक सक्रिय सदस्य हैं .
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