उत्तराखण्ड के शासकों में से ही रहे हैं पाल शासक. पाल वंश उत्तराखण्ड की कत्यूरी वंश परंपरा की ही एक शाखा को कहा जाता है. पाल वंश की स्थापना के विषय में माना जाता है कि कत्यूरी शासन अपने विघटन के बाद प्रमुख रूप से अस्कोट, डोटी और बैराठ (पाली-पछाऊँ) तीन हिस्सों में बंट गया था.
सन 1279 में बैराठ में कत्यूर वंश के विघटन के समय अस्कोट में कत्यूरी राजा पुष्करदेव शासन कर रहे थे. पुष्करदेव की परवरिश कई घरों में हुई थी. कई घरों में पाले जाने के कारण ही उन्हें पुष्करपाल भी कहा जाता था. इन्हीं के नाम से आगे चलकर इनके सभी वंशज पाल शासकों के रूप में जाने गए. पुष्करदेव के पुत्रों को गजेंद्रपाल एवं गोविन्दपाल कहा गया.
पाल वंश का राज्य अस्कोट में ऐलागाड़, कनालीछीना, सहित 80 कोटों में फैला था. इसी कारण इस समूचे क्षेत्र को अस्कोट (अस्सी कोट) कहा गया. इस क्षेत्र में आज भी लगने वाले ऐतिहासिक जौलजीबी मेले की शुरुआत इन्हीं पाल राजाओं द्वारा ही की गयी थी. कैलास मानसरोवर तीर्थयात्रियों के लिए भी इन्होंने कई तरह के बंदोबस्त किये थे. पाल शासकों का शासन जनहितैषी एवं लोककल्याणकारी माना जाता है.
अस्कोट में पाल राजाओं का महल आज भी मौजूद है, यहाँ कई ताम्रपत्रों में अतीत की विरासत को सहेजकर रखा गया है. अस्कोट के सौ से अधिक राजाओं के नाम का दुर्लभ भोजपत्र आज भी यहाँ मौजूद है. एक राजसी तलवार के अलावा राजाओं की सैंकड़ों तलवारें भी महल में सहेजकर रखी गयीं हैं. 12वीं सदी में प्रचलित पीतल की अशर्फियां, महारानी का सोने जड़ा ब्लाउज तथा कई अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं भी यहाँ रखी हुई हैं. आज यहाँ इसी परिवार के वंशज कुंवर भानुराज पाल रहते हैं.
पाल राजवंश के राजस्थान के रजवाड़ों के साथ भी मधुर सम्बन्ध रहे हैं. पाल वंश के कई विवाह सम्बन्ध राजस्थान से ही होते रहे हैं.
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