बचपन से कई ऐसे संवाद धार्मिक प्रसंगों में सुनते आये हैं जिनका आशय तो हम नहीं समझ पाते लेकिन अतार्किक बनकर सहज रूप में उन्हें स्वीकार कर लेते हैं. भगवान राम जन-जन के आराध्य रहे हैं और उनके प्रसंगों की पहुंच हिन्दी भाषा के माध्यम से घर घर पहुंचाने में गोस्वामी तुलसीदास का कोई सानी नहीं. रामचरित मानस सुन्दरकांड का पाठ अथवा हनुमान चालीसा का वाचन हर सनातनी की दैनिक पूजा का एक हिस्सा होता है. हनुमान चालीसा का प्रारंभिक दोहा – श्री गुरू चरण सरोज रज निजमनु मुकुरू सुधारि रोज दोहराते हैं लेकिन कभी यह सोचा ही नहीं कि चरण की रज से मन का दर्पण कैसा साफ होगा. आम जीवन में तो दर्पण से रज को साफ किया जाता है लेकिन यहॉ तो चरण-रज से दर्पण को साफ करने की बात कही गयी है. क्योंकि बात आस्था से जुड़ी है फिर महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने कही है तो ऐसे थोड़े ना कहा होगा. इसलिए हम इसके निहितार्थ जानने की माथापच्ची ही नहीं करते. ऐसे ही उलटबांसियां तुलसी साहित्य में कई प्रसंगों में देखी जा सकती हैं. Pahari Connection of Chetak
ऐसा ही एक प्रसंग आता है. रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड में जब भगवान राम के तीन दिन के अनुनय विनय के बाद समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम को सकोप कहना पड़ा. Pahari Connection of Chetak –
विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीति
बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीति
यहाँ पर एक तो उनके चरित्र का विरोधाभास है कि धीरोदात्त नायक भगवान राम को कुपित होते दिखाया गया है. ऐसा ही एक प्रसंग तब भी आता है जब भगवान राम की सहायता से सुग्रीव बाली का वध कर वापस अपनी पत्नी व राज्य पुनः प्राप्त कर लेता है और राम के साथ किये गये सीता माता की तलाश में सहयोग करने के वादे को भूल जाता है. यहाँ पर भी भगवान राम लक्ष्मण को सुग्रीव का वध करने के बजाय भय दिखाकर दिये गये वचन का स्मरण कराने की बात करते हैं. इससे इतना तो स्पष्ट है कि भगवान राम का यह कोप मात्र भय दिखाने का अभिनय मात्र है. दूसरा भय का रिश्ता प्रीत से. लौकिक जीवन में भय और प्रीत विपरीत भाव हैं लेकिन रामचरित मानस में तुलसीदास ने कहा है इससे आगे हम उसका निहितार्थ जानने के बजाय सोचना बन्द कर भय और प्रीति का रिश्ता कबूल कर लेते हैं बिना किसी तार्किक बहस के. बावजूद इसके कि जिससे हमें भय होता है लौकिक जगत में उससे प्रीति हो ही नहीं सकती. बच्चा घर में माता-पिता में उसी से ज्यादा प्यार करता है जिससे डांट अथवा मार कम पड़ती है अथवा भय कम होता है छात्र उसी शिक्षक को ज्यादा प्यार देते हैं जिससे भय कम हो. इन्सान हिंसक जानवरों से प्यार नही करता बल्कि प्यार उन्हीं से करता है जो उसको हानि नहीं पहुंचा सकते अथवा जिससे उसे भय नहीं है. फिर तुलसीदास ने यह कथन एक बार मन में शंका पैदा करता है कि भय के बिना प्रीति क्यों नहीं होती. Pahari Connection of Chetak
अब जरा दूसरी तरफ सोचें. मान लें कि पाप-पुण्य इस दुनिया में कुछ होता ही नहीं और ईश्वर का अस्तित्व है ही नहीं और यदि है भी तो वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. एक तरह से ईश्वरीय भय से हम मुक्त हो जाते हैं तो क्या आप ईश्वर से प्रेम करेंगे? उसकी पूजा-उपासना करेंगे? आप मन्दिर मस्जिद अथवा अपने अपने आराध्य की उपासना करते हैं तो केवल और केवल इसलिए कि वह आपका अनिष्ट न करे. बिना स्वार्थ के इस दुनिया में कोई कार्य है ही नहीं. बिना स्वार्थ के किसी से प्रेम सैद्धान्तिक हो सकता है व्यवहार जगत में संभव नहीं. एक तपस्वी ईश्वर की भक्ति करता है उसका भौतिक स्वार्थ कुछ नहीं है लेकिन उस तपस्या से उसे जो आनन्द की अनुभूति होती है वह भी तो एक स्वार्थ ही है. भले वह लौकिक न होकर आत्मिक हो. Pahari Connection of Chetak
परिवार में हो सकता है कि किसी सदस्य से आपके विचार न मिलते हों इस कारण स्वाभाविक है कि आपका स्नेह प्रगाढ़ नहीं होगा. कल्पना कीजिए कि यदि दुर्भाग्यवश वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया तो आपको उसको खोने का भय सताने लगेगा और स्वतः उसके प्रति आपकी प्रीति बढ़ जायेगी . भयबिनु होय न प्रीति को इस नजरिये से भी देखा जा सकता है।
तुलसीदास ने एक चौपाई में इशारा किया है – जो नर होई चराचर द्रोही आवै सभय सरन तकि मोही, जो मनुष्य चराचर (जड़ और चेतन) से द्रोह करता है वह भयभीत होकर मेरी शरण में आ जाये. आगे वे कहते हैं – गगन समीर अनल जलधरनी इंन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी – ये पांचों तत्व चराचर (जड़ एवं चेतन) के हैं, लौकिक हैं जब कि भगवान राम इससे परे अलौकिक. अलौकिक का यही भय लौकिक को अलौकिक से प्रीत करने को विवश करता है. उसे भय है कि यदि वह अलौकिक अथवा ईश्वर से प्रेम करेगा तो ही ईश्वर उसका कल्याण करेंगे अन्यथा उसे अहित की आंशका बनी रहेगी. वर्तमान समाज में भी ऐसे तत्वों पर अंकुश के लिए दण्ड विधान बना है. फर्क इतना भर है कि तब ईश्वर के दण्ड का भय था आज कानून के दण्ड का भय है. Pahari Connection of Chetak
इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारे उत्तराखण्डी समाज में देखने को मिलता है. उत्तराखण्ड में लोकदेवता जब रुष्ट होता है तो उसके द्वारा दिया जाने वाला कष्ट चेटक लगना कहा जाता है. चेटक का मतलब ही चेताना है. जब आप लोक देवता को विस्मृत कर देते हैं अथवा उसकी इच्छा के विरूद्ध कोई कार्य करते हैं तो लोकदेवता चेटक देता है. चेटक एक प्रकार का भय ही है जो अनिष्ट तो नहीं करता लेकिन अनिष्ट के लिए आगाह करता है. इसी अनिष्ट की आशंका के वह अपने इष्ट देवता से प्रेम करने लगता है. जैसा भगवान राम ने समुद्र में शर-संधान करके दिया था और इसी भय ने लौकिक को अलौकिक से प्रेम करने को प्रेरित किया. भय और प्रीत का लौकिक जगत में भले रिश्ता न हो लेकिन लौकिक का जब अलौकिक से रिश्ता हो तो भय और प्रीत का ही रिश्ता रहता है. ईश्वर से हमारी प्रीत भयजनित है. Pahari Connection of Chetak
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं
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