‘किस खेत की मूली’ (कमजोर या अधिकारविहीन, ‘मूली-गाजर समझना’ (कमजोर) और ‘खाली मूली में’ (व्यर्थ में) जैसी लोकोक्तियां अथवा वाक्यांश यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि मूली को बेहद मामूली, कमजोर व एक तरह से तिरस्कृत सा मान लिया गया है. देश के दूसरे भागों में मूली का सलाद अथवा परांठों के लिए उपयोग के अलावा इसे कोई अहमियत नहीं दी जाती. लेकिन जब पहाड़ी जनजीवन में इसके उपयोग की बात हो तो मूली कोई मामूली नहीं, बल्कि हर पहाड़ी के रसोई की शान है या यूं कहें कि मूली के बिना पहाड़ियों की रसोई अधूरी है.
(Pahadi Mooli Uttarakhand)
मूल (जड़) में तो कई सारे कन्दमूल पैदा होते हैं, लेकिन अपने नाम को सार्थक करने का तमगा मूली के अलावा दूसरे कन्दमूलों को नसीब नहीं हुआ। देश के दूसरे हिस्सों में आमतौर पर लम्बी जड़ वाली मूली उगाई जाती है, जिसका उपयोग मुख्यतः सलाद अथवा परांठे बनाने में ही किया जाता है, जबकि पहाड़ में गोल, चपटी अथवा शंक्वाकार मूली ही ज्यादा उगाई जाती है. मुझे नहीं मालूम ही देश के दूसरे हिस्सों में गोल, चपटी अथवा शंक्वाकार मूली जलवायु कारणों से पैदा हो ही पाती अथवा वहॉ इसका सब्जी के रूप में उपयोग न होने के कारण, शायद उगाने का प्रयास ही नहीं किया जाता.
पहाड़ में मूली का उपयोग केवल सलाद अथवा परांठों तक सीमित न होकर बहुउपयोगी चीज है. यह पहाड़ ही है, जहॉ मूली सब्जी के रूप में उपयोग में लाई जाती है और वह भी एक तरह से नहीं बल्कि तरह-तरह के जायकों के साथ. हालांकि मूली पकाते समय जो गन्ध आती है, कई लोगों को रूचिकर न लगे, लेकिन स्वाद में इसका कोई जवाब नहीं. आइये जानते हैं कि क्या-क्या बन सकता है पहाड़ी मूली से.
जो महंगी सब्जी खरीदने की हैसियत नहीं रखता तो आलू-मूली के थेचुवे तक हर गरीब की पहुंच हुई. दो दाने आलू एक मूली की जड़ हो जायेगा थेचुवा तैयार. कहने को आलू मूली का थेचुवा भले ही बहुत ही सामान्य सब्जी का दर्जा रखता हो लेकिन एक बार अगर आपने खा लिया तो दुबारा आलू-मूली के थेचुवे की मांग अवश्य करेंगे. जो लोग आलू-मूली के थेचुवे से परिचित नहीं हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दॅू कि आलू-मूली के थेचुवे की रेसिपी.
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आलू-मूली का थेचुवा बनाने के लिए बराबर भाग में आलू व मूली को साफ कर छोटे चपटे टुकड़ो में काट लें और सिल पर रखकर बट्टे से टुकड़ों को मोटा-मोटा थेच (क्रश) लें. अब मिश्रण सब्जी के लिए तैयार है. जिस तरह आप अन्य सब्जी बनाते हैं, उसी तरह मेंथी, जीरा जम्बू आदि का छोंक लगाकर बनाये. अन्य सब्जियों की तरह ही हल्दी, धनिया, मिर्च, नमक आदि का उपयोग इसे बनाने में करें. च्योंकि सब्जी थेची (क्रश) हुई है तो जल्दी पक जाती है. थेचुवा रसदार बनाया जाता है इसलिए सब्जी व पानी बराबर मात्रा में डालकर पकायें. पकने पर बारीक कटा हरा धनिया डालकर परोसें, यकीनन बहुत कम मेहनत में बनने वाला आलू-मूली का थेचवा चपाती के साथ आपको बहुत पसन्द आयेगा. अगर आपको खट्टा पसन्द हो तो इसमें टमाटर डालकर, दही या छांछ डालकर पका लें, सब्जी और भी अधिक लजीज बज जायेगी.
इसी तरह आलू मूली की सब्जी पहाड़ियों की एक पसंदीदा सब्जी है. आलू-मूली की सब्जी बनाने के लिए सब्जी काटने का भी कुछ तरीका अलग है. आलू को थोड़ा चपटे टुकड़ों में काटें, जब कि गोल मूली को चिप्स की तरह चपटे टुकड़ों में काटें. मेंथी, जम्बू अथवा जीरा आदि का छोंक अपनी पसन्द के अनुसार लगाकर अन्य हल्दी, धनिया, मिर्च व नमक का उचित मात्रा में उपयोग कर रसदार सब्जियों की तरह ही पकायें. ध्यान रहे, मूली से तैयार किसी भी रेसिपी में हींग का तड़का न लगायें क्योंकि हींग से मूली का फ्लेवर गायब हो जायेगा.
अक्सर लोग हर सब्जी के साथ लहसुन व प्याज का उपयोग करते हैं, लेकिन मूली की किसी भी रेसिपी के लिए मैं तो सलाह दॅूगा कि उसमें लहसुन व प्याज का उपयोग ना ही करें तो बेहतर होगा. ये तो हुई आलू-मूली की सामान्य सब्जी, लेकिन इसे और स्वादिष्ट बनाने के लिए भी कई विकल्प हैं. आप टमाटर डालकर इसे बना सकते, जिसका भिन्न व अपनी रूचि अनुसार ज्यादा सुस्वादु लगेगा. इसमें दही अथवा छांछ डालकर पकाने से भिन्न जायका आयेगा. अगर भांग के दानों को बारीक पीसकर उसके पेस्ट को छानकर सब्जी में अच्छी तरह पका लें तो यकीन मानिये भूख से एक रोटी ज्यादा खा जायेंगे.
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इसके अलावा मूली का उपयोग पहाड़ी तुरई, गडेरी, लौकी, कद्दू, रामकरेली, बीन, शिमला मिर्च अथवा आलू, मूली, बीन, शिमला मिर्च की मिक्स सब्जी बनाई जा सकती है. किसी भी सब्जी के साथ मूली मिलाने पर एक मूली की जड़ ही पर्याप्ता है. जिससे मुख्य सब्जी के स्वाद से एक भिन्न स्वाद मूली के साथ आ जायेगा.
पहाड़ों में ककड़ी का रायता यहॉ की अलग पहचान है. रायता ककड़ी की अनुपलब्ब्धता अथवा स्वाद बदलने के लिए मूली की भी बनाई जाती है. मूली को कद्दूकस में कसकर और कसी हुई मूली को निचोड़कर दही, हल्दी, धनिया, मिर्च, पिसी हुई राई का पेस्ट तथा स्वादानुसार नमक के साथ झक्कस रायता तैयार किया जा सकता है. इसके अलावा भी मूली का पहाड़ों में कई तरह से उपयोग किया जाता है.
पहाड़ों में हर घर में बड़ी बनाने का एक आमचलन है. बड़ी बनाना यहॉ की रवायत में इस तरह शामिल है कि एक बार बड़ी बनाना यदि किसी परिवार ने शुरू कर दिया तो फिर उसे छोड़ा नहीं जाता. यदि ज्यादा मात्रा में बनाने के लिए आपके पास समय न हो अथवा असुविधा हो तो शगुन के लिए तब भी बड़ी बनानी ही होती हैं, एक बार शुरू करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता फिर किसी साल इन्हें बनाना फिर छोड़ा नहीं जाता. बड़ियां आमतौर पर सितम्बर से नवम्बर माह के बीच बनाई जाती हैं और इस समय पहाड़ में ककड़ियां बहुतायत से होती हैं और यही समय लौकी, पैंठा (भुज) गडेरी, पापड़ व मूली का भी होता है.
अधिकांशतः ककड़ी की बड़ियां ही लोग पसन्द करते हैं, इनकी अनुपलब्धता पर अथवा स्वाद बदलने के लिए पापड़, पैठा, लौकी के साथ मूली की बड़ियां भी बनाई जाती हैं.
अगर आपको सब्जी बनाने का आलस्य लगे अथवा सब्जी के अलावा कुछ अतिरिक्त सब्जी की आवश्यकता हो तो मूली को सिल पर बट्टे से थेच कर नमक मिर्च मिलाकर एक नई डिश बन जाती है और इसमें दही मिला देने से तो स्वाद दुगुना बढ़ जाता है. इसके अलावा मूली को सलाद के रूप में काटकर यह एक शानदार टपकिया के साथ पेट के लिए भी काफी फायदेमन्द है, जो कब्ज को दूर करता है. कच्चा खाने पर इसकी तासीर ठण्डी जब कि पकाकर खाने पर तासीर गर्म मानी जाती है.
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पहाड़ों में जाड़ों के मौसम में गुनगुनी धूप का आनन्द लेते हुए, विशेष रूप से महिलाऐं समूह में बैठकर नींबू सानकर खाने की अपनी ठसक है. साना हुआ नींबू पहाड़ की अपनी अलग पहचान है. साने हुए नींबू में यदि मूली कुतरकर डाल दी जाय तो साने हुए नींबू का स्वाद बेहतरीन हो जाता है।
ये बात अलग है कि आज पहाड़ में भी बेमौसमी सब्जियां उगाने का दौर चल पड़ा है, लेकिन पारम्परिक रूप से मूली बरसात से जाड़ों तक ही उपलब्ध रहती है. बेमौसम में मूली का स्वाद लेने के लिए मूली के सीजन के समय मूली को साफकर इसके चिप्सनुमा टुकड़े धूप में सुखाकर सुकौटे (ख्वैड़) बनाकर रख दिये जाते हैं जो गर्मियों में जब पहाड़ी मूली उपलब्ध नहीं होती अथवा घर में दूसरी सब्जी के न होने पर इसका वक्त-बेवक्त इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा मूली को कद्दूकस करके भी सुखाकर भविष्य में उपयोग के लिए संरक्षित किया जात सकता है.
मूली के मुलायम पत्ते व मुलायम जडों को बारीक काटकर भुजिया मिनटों में तैयार हो जाती है. इसके लिए मैदानों में होने वाली लम्बी मूली का भी प्रयोग किया जा सकता है. मूली के पत्तों की भुजिया लीवर के लिए उपयोगी होने के साथ ही खाने में भी स्वादिष्ट होती है. मूली के पत्तों की सब्जी तो पीलिया जैसे रोग के उपचार के लिए रामबाण औषधि है. अगर पीलिया का मरीज नियमित रूप से मूली के पत्तों व भट के जौले (तहरी) का सेवन करे तो अन्य दवाओं की आवश्यकता ही नहीं पड़ती.
मूली स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी गुणकारी मानी जाती है. इसमें पौष्टिक तत्व खनिज पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं. इसमें मधुमेह को नियंत्रित करने की क्षमता बताई जाती है. इसके अलावा इसमें विटामिन सी, फाइबर, प्रोटीन तथा खनिजों में पोटेशियम, कैल्सियम, आयरन और मैंगनीज भी पाया जाता है तथा इम्युनिटी बढ़ाने के लिए इसे उपयोगी बताया गया है. पहाड़ के लिए इतनी बहुपयोगी मूली के लिए प्रचलित उपरोक्त लोकोक्तियां अर्थहीन हो जाती है, इसलिए पहाड़ के लोकजीवन के सन्दर्भ में मूली को मामूली समझने की भूल कभी न करें.
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
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