साल के आख़िरी दिनों में जब हमारी पीढ़ी के पढ़े-लिखे-एम एन सी जैसी अबूझ नागरिकता वाली कम्पनियों में लगे, ज़्यादातर दोस्त शैम्पेन की बोतल और केक थामे कहवाघरों से निकलते दिख रहे हैं, ऐसी बहसों में मुब्तिला होना किसी दर्द से गुज़रने से कम नहीं है. लेकिन... Read more