कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह करअब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा. (जिगर मुरादाबादी) इस दस्तक को सुनकर आख़िर एक शख्स बरास्ते आसमान, सड़क और फ़िर पैदल चल पड़ता है अपने देश, अपने गांव-अपनी माटी की जानिब. वहां अब कोई नहीं रहता,... Read more
पिछली कड़ी यहां पढ़ें- छिपलाकोट अंतर्यात्रा : कभी धूप खिले कभी छाँव मिले- लम्बी सी डगर न खले मनीराम पुनेठा जी की दुकान में शाम के समय अखबार बटोरने गया तो पूरे दस दिन के अखबार कायदे से बंडल में लपेटे मेरे हाथ में थमा पुनेठा बुबू ने सवालों की झड़ी लगा दी... Read more