कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर ट्रेल नैनीताल की यात्रा करने वाले पहले यूरोपीय व्यक्ति थे लेकिन उन्होंने इस जगह की धार्मिक पवित्रता को देखते हुए अपनी यात्रा को प्रचारित न किया. 1839 में कमिनश्नर बैटन का साला नैनीताल की यात्रा पर आया. इस यात्रा में उनका साथी शाहजहाँपुर जिले के रोजा में चीनी का व्यापार करने वाला बैरन भी था. शिकार पर गये तीनों लोग भीमताल होते हुये खैरना की ओर से नैनीताल पहुंचे और रामगढ़ के रास्ते लौटे.
(P Barron Nainital Article)
सन 1841 में 24 नवम्बर को, कलकत्ता के ‘इंगलिश मैन’ नामक अखबार में सबसे पहले नैनीताल के ताल की खोज खबर छापी. इसके बाद ही बैरन ने ‘आगरा अख़बार’ में पिलग्राम नाम से एक लेख छापा. इस लेख में ही दुनिया को पहली बार नैनीताल के विषय में एक विस्तृत जानकारी मिली. बैरन अपने इस लेख में लिखा-
बांज, देवदार और दूसरे अन्य पेड़ों के झुरमुट से घिरा एक लहरदार समतलभूमि वाला घास का मैदान है. यह झील के तट से ऊपर एक मील तक एक शानदार पहाड़ तक है. पहाड़ इसके अंतिम छोर पर है. झील के किनारों पर भी सुंदर पहाड़ से घिरे हैं. पहाड़ के ढलान शिखर से नीचे पानी के किनारे तक घने जंगलों से ढके हैं. झील का पानी बेहद साफ़ है झील में पानी की आपूर्ति वसन्त में शिखरों के जंगलों से निकलने वाली एक छोटी जलधारा करती है. आसपास की चोटियों पर जंगलों में हिरणों के अनगिनत झुंड रहते थे और तीतर इतने अधिक थे कि उन्हें शिविर के मैदान से भगाना पड़ा.
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An undulating lawn with a great deal of level ground interspersed with occasional clumps of oak, cypress, and other beautiful trees, continues from the margin of the lake for upwards of a mile up to the base of a magnificent mountain standing at the further extreme of this vast amphitheater, and the sides of the lake are also bounded by splendid hills, and peaks which are thickly wooded down to the water’s edge. The water of the lake is crystal clear; the supply is maintained by a beautiful little stream born in the spring of the over-topping mountains. that countless herds of deer inhabited the forests on the surrounding peaks, and that pheasants were so numerous that they had to be driven off the camping grounds.
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