केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के साथ ही त्रिपुरा व नगालैंड में केचुओं पर शोध के लिए एक करोड़ की परियोजना को मंजूरी प्रदान दे दी है. केंद्र सरकार का यह कदम हिमालयी राज्यों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है. शोध के अंतर्गत केचुओं के डीएनए की बारकोडिंग भी की जाएगी.
ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती कृषि का वह तरीका है जिसमें फसलों की वृद्धि के लिए रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और आनुवांशिक रूप से संशोधित जीवों का प्रयाग न करते हुए , प्राकृतिक संसाधनों और अनुप्रयोगों का ही प्रयोग किया जाता है.
कुमाऊँ में रोजाना टनों के हिसाब से जैविक कूड़ा एकत्र तो हो रहा है, मगर उसका निस्तारण नहीं हो रहा है. इस कूड़े को वर्मी कंपोस्ट में बदलने के लिए यह शोध महत्वपूर्ण होगा. केचुआ मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है. वह यह क्रिया कैसे करता है, इसको लेकर भी परियोजना में अध्ययन किया जाएगा.
इस तीन वर्षीय इस परियोजना के अंतर्गत तीनों राज्यों में जैविक कूड़े का तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा. इस अध्ययन का उपयोग जैविक खेती, पर्यावरण संरक्षण तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं में सुनिश्चित किया जाएगा सकेगा. जैविक कूड़े के निस्तारण में केचुओं व उनसे संबंधित जीवाणुओं की उपयोगिता पर भी शोध होगा ताकि इस अधिक सफल उपयोग किया जा सके.
बेहतर प्रजातियों के केचुओं की प्रजातियां तैयार कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकेगी. प्रयोगशाला में भी नई प्रजातियां विकसित करने पर भी रिसर्च इस परियोजना के अंतर्गत किया जाएगा. ऑर्गेनिक फार्मिंग 1990 के बाद अधिक प्रचलन में आया. आज अनुमानित तौर पर 170 देशों में ऑर्गेनिक खेती की जा रही है. इनमें ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और अमेरिका प्रमुख हैं.
आर्गेनिक खेती के विकास के लिए और बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड ऑर्गेनिक कमोडिटी बोर्ड का गठन 2003 में किया गया. इसका मकसद ग्रामीण विकास के साथ राज्य को भारत की जैविक राजधानी बनाने का है. बोर्ड किसानों और उनके खेतों को अपना कर उन्हें जैविक रूप में परिवर्तित कराता है और फिर इन खेतों का जैविक प्रमाणिकरण करता है.
वर्तमान में केंद्र सरकार का फोकस भी देश में जैविक जैविक कृषि को बढ़ावा देने पर है. इसके लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) में तमाम प्रावधान किए गए हैं. जैविक खेती को वर्षा आधारित खेती वाले इलाकों, पर्वतीय व आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ावा दिया जाए, क्योंकि इन क्षेत्रों में खेती में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग न के बराबर है.
उत्तराखंड राज्य के 95 में से 71 विकासखंडों में कृषि बारानी यानी वर्षा पर निर्भर है. साथ ही कृषि व्यवस्था पहाड़ी, घाटी व मैदानी इलाकों में विभक्त है. फिर यहां के पर्वतीय व घाटी वाले इलाकों के जैविक कृषि उत्पादों की देशभर में खासी मांग भी है.
विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड को जैविक प्रदेश बनाने पर जोर दिया था. इसके लिए राज्य सरकार ने कदम बढ़ाने प्रारंभ कर दिए हैं. अभी तक प्रदेश में 10 विकासखंडों को जैविक घोषित किया गया था, लेकिन अब सभी जिलों में जैविक खेती की मुहिम ले जाने की तैयारी है. इसके अन्य कदम उठाने के साथ ही जैविक उत्पादों का समर्थन मूल्य घोषित करने पर मंथन चल रहा है .
अभी तक सिक्किम देश का पहला राज्य है जिसे 2016 में गंगटोक में आयोजित कृषि सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैविक राज्य घोषित किया था और इसके साथ ही उत्तर पूर्व के अन्य हिमालयी राज्यों में जैविक कृषि को प्रोत्साहन दिया जा रहा है.
रुद्रप्रयाग में एक किसान ने बताया कि ऑर्गेनिक हल्दी जर्मनी भेजते हैं. रुद्रप्रयाग ऑर्गेनिक जिला घोषित किया जा चुका है. चौलाई, बासमती और राजमा जैसी फसलों को हम जापान और जर्मनी के बाजार में भेज रहे हैं. इससे किसानों की माली हालत में बड़ा सुधार आया हैं.’
विगत दिनों केंद्र सरकार ने राज्य में जैविक खेती के विकास के लिए 1500 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट पर सहमति जताई है. साथ ही राज्य में कृषि यंत्र बैंक बनाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री ने अतिरिक्त 300 करोड़ रुपये देने पर भी सहमति जताई है.
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