परम्परा

कुमाऊं में दैनिक जीवन से विलुप्त हो चुकी एक परम्परा

कुमाऊं क्षेत्र में अब सिर ढकने की परम्परा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है. कम लोग ही जानते हैं एक समय ऐसा भी था जब पूरे कुमाऊं क्षेत्र में सिर ढकने की परम्परा हुआ करती थी. सिर ढकने की इस परम्परा के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों को ही सिर ढककर रखना अनिवार्य था. सिर को ढककर न रखना बुरा माना जाता था.
(Old Tradition Kumaon)

स्त्री और या पुरुष दोनों को समाज में इस बात के लिये टोका जा सकता था कि उन्होंने सिर नहीं ढका है. एक अनुमान के अनुसार यह दावा किया जाता है कि सिर ढकने की परम्परा का पालन राजाओं को भी अनिवार्य रूप से करना होता था. इसका उदाहरण जागेश्वर मंदिर से मिली राजा दीपचंद और त्रिमलचंद की मूर्तियां हैं. जागेश्वर मंदिर में मिली दोनों राजाओं की आकृति को टोपी पहने दर्शाया गया है.

वर्तमान में सिर को ढककर रखने की परम्परा केवल मांगलिक कार्यों के दौरान स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा अनिवार्य रूप से निभाई जाती है. पुरुषों द्वारा जहां सिर पर सफ़ेद गांधी टोपी पहनी जाती है वहीं विवाहित महिलाओं द्वारा रंगवाली या पिछौड़े से सिर को ढका जाता है.

अधिक ख़ोज करने पर यह पता चलता है कि पुरुषों के लिये यहां कनछोपी, इखारी, दौड़ी और छेकेली जैसी टोपियों के प्रकार कुछ दशक पूर्व तक देखने को मिलते थे. अगर इससे भी कुछ और दशक पहले की ओर जायें तो कुमाऊं में पुरुषों द्वारा पगड़ी पहनने की परम्परा भी देखने को मिलती है. स्थानीय भाषा में पगड़ी के लिये इस्तेमाल शब्द ‘टॉक’ है. टॉक सूती का कपड़ा होता है जिसे गोल लपेटकर सिर पर पहना जाता है एक हिस्सा पीछे की ओर छोड़ा जाता है.
(Old Tradition Kumaon)

टॉक पहनने की परम्परा अभी भी परम्परागत कुमाऊनी विवाह में देखने को मिल जाती है. जैसे विवाह के समय जब वधु का छोटा भाई वर का स्वागत करता है तो उसके सिर पर सफ़ेद रंग का टॉक आज भी पहनाया जाता है. इसके अतिरिक्त कुछ स्थानों में आज भी विवाह के दौरान सिर में पहने जाने वाले वस्त्र के आधार पर यह पहचान की जाती है कि वह वर पक्ष का है.  

दैनिक जीवन में महिलाओं द्वारा सिर ढककर चलने की परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा सकती है. कुमाऊं में ग्रामीण महिलायें आज भी इसे निभाते हुये बहुदा देखने को मिल जाती हैं. महिलाओं द्वारा मांगलिक कार्य के दौरान सिर पर धारण किया जाने वाला एक वस्त्र पिछौड़ा या रंगवाली है जिससे सभी परिचित हैं. टालू, टालिख, झाणन, मुन्याठ कुछ अन्य ऐसे वस्त्र हैं जिन्हें कुमाऊं क्षेत्र में महिलाओं द्वारा सिर में धारण किया जाता था.    

सिर पर धारण किये जाने वाले वस्त्र शिरोवस्त्र कहलाते हैं. ऐसा माना जा सकता है कि एक समय कुमाऊं क्षेत्र में शिरोवस्त्र धारण किया जाना सभी के लिये अनिवार्य था. कुमाऊं वर्तमान में दैनिक जीवन में इस प्रकार की किसी भी प्रकार अनिवार्यता न स्त्रियों के लिये हैं न ही पुरुषों के लिये.
(Old Tradition Kumaon)

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago