बीती दोपहर 89 वर्ष की अवस्था में विश्वम्भर नाथ साह “सखा दाज्यू” ने अपनी अंतिम सांस ली. इसी के साथ पिछले 70 साल से नैनीताल के जीवन्त सांस्कृतिक इतिहास का एक अध्याय बंद हो गया. 1933 के बरस नैनीताल में जन्म लेने के बाद से ही विशंभर नाथ साह के बहुआयामी सार्वजनिक जीवन की तैयारी मानो नियती ने स्वयं प्रारम्भ कर दी थी.
(Obituary for Vishambhar Nath Sah)
जब देश तथा नैनीताल में देश की आजादी का आंदोलन जोर पकड़ रहा था तब गांधीजी के प्रभाव से प्रभावित होकर विशंभर नाथ साह शांतिनिकेतन में शिक्षा लेने पहुंचे. शांति निकेतन में उनका चित्रकारी का पक्ष खूब निखर कर आया. वहां से पेंटिंग की अगली शिक्षा के लिए उनका चयन जापान के लिए हुआ लेकिन समय ने फिर करवट बदली और वह वापस नैनीताल आ गए.
विशंभर नाथ साह के व्यक्तित्व में गजब का विरोधाभास था. उन्होंने शिक्षा तो शांतिनिकेतन में प्राप्त की लेकिन वहां आपके भीतर एक परिपक्व और समर्पित वामपंथी युवक तैयार हुआ. वामपंथ के प्रभाव से वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्ड होल्डर स्थाई सदस्य रहे. लंबे समय तक जन आंदोलनों में भागीदारी भी की. 70 के दशक में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, शमशेर सिंह बिष्ट, राजीव लोचन साह आदि के साथ वन आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की. विशंभर नाथ साह के मुखर व्यक्तित्व ने उन्हें जनता के सवाल और सार्वजनिक जीवन से दूर नहीं होने दिया इसके प्रभाव से ही वह तीन बार कटक पालिका नैनीताल के चुने हुए सदस्य रहे. यह सब विशंभर नाथ साह का बाहरी पक्ष था.
विशंभर नाथ साह के भीतर स्थाई रूप से अगर कुछ था तो वह था एक प्रयोग धर्मी चित्रकार और संगीतकार जिसने नैनीताल को शास्त्रीय संगीत की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयोग किए. विशंभर नाथ साह को घंटों ठुमरी गायन का रियाज तानपुरे पर करते हुए देखा जा सकता था. एक जन्मजात पेंटर कभी उनसे दूर नहीं हुआ, उनकी पेंटिंग के विषय हमेशा आंचलिकता और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत और परंपराएं पर केन्द्रित रहते थे. बीच के सालों में उन्होंने नैना देवी महोत्सव पर नैना देवी की मूर्तियों का श्रंगार भी किया. अपने जीवन के आखिरी पड़ाव में भी विशंभर नाथ साह पेंटिंग बनाने में मशगूल थे. इन दिनों अपनी अंतिम सांसों के दौरान भी वह खतड़वा की पेंटिंग को अंजाम दे रहे थे. एक प्रयोग धर्मी कलाकार के रूप में विशंभर नाथ साह के दर्जनों किस्से हैं.
(Obituary for Vishambhar Nath Sah)
1960 के आस-पास जिस दौर में फिल्म बनाना बहुत कठिन काम था उस दौर में भी विशंभर नाथ साह ने अपने दम पर तीन-चार फिल्म का निर्माण किया. उनमें सबसे महत्वपूर्ण फिल्म भारत में चीन के हमले की पृष्ठभूमि में बनाई फिल्म “तवांग से वापसी” है.
संगीत और कला के क्षेत्र में ऊंचाइयां प्राप्त करने के बाद भी विशंभर नाथ साह लगातार 60 वर्षों तक नैनीताल के सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश को जीवंत करने के लिए समर्पित रहे. शारदा संघ और राम सेवक सभा के माध्यम से नैनीताल के सांस्कृतिक उत्थान विशेषकर रामलीला और होली महोत्सव को नई ऊंचाइयां प्रदान करने में विशंभर नाथ साह की भूमिका हमेशा अग्रणी रही है.
एक समर्पित पेंटर, संगीतझ, हरदम समाज के लिए समर्पित व्यक्ति से भी महत्वपूर्ण पक्ष विशंभर नाथ साह की विनम्रता और उनकी विद्वता थी. नैनीताल के रंगमंच संस्कृति और कला को ऊंचाइयों प्रदान करने में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ और विशंभर नाथ साह ‘सखा’ जो वर्षो केलाखान नैनीताल के एक ही मकान में रहे का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है.
नैना देवी मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में भी विशंभर नाथ साह की सेवाएं ऐतिहासिक रही हैं. आज नैना देवी के वास्तु और शिल्प में जो सादगी पूर्ण भब्यता दिखाई देती है उसमें भी विशंभर नाथ सखा जी का व्यक्तित्व झलकता है. विशंभर नाथ साह ‘सखा’ जी का देहावसान सिर्फ एक व्यक्ति का चले जाना जैसा नहीं है यह संस्कृति और समाजिक सक्रियता के एक युग का भी अवसान है.
विनम्र श्रद्धांजलि…
(Obituary for Vishambhar Nath Sah)
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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