Featured

कुणाल तुम आजाद ही हुए : श्रद्धांजलि

वैसे तो कुनकुन (कुणाल तिवारी) से मेरा परिचय बचपन से ही रहा पर याराना माउंटेन राइडर्स साइक्लिंग ग्रुप बनने के बाद और भी पक्का हो गया. अपने स्मृति पटल को उकरते हुए याद आती है बचपन के दिनों की जब भी हमारा रानीधारा घर जाना होता तो राजा बाबू के कमरे से लेकर खेतों की लहलहाती फसल, बाग-बगीचों में खिले फूल खूब आनंदित करते. कुणाल का घर मानो प्रकृति के आकर्षण से सम्मोहित करता साथ ही संयुक्त परिवार होने के कारण बचपन में आपस में खूब खेलने को भी मिलता.
(Obituary for Kunal Tewari)

कुछ समय बाद जब भी गिर्दा (गिरीश तिवारी) चचा हमारे घर आते तो उनके साथ कुणाल से भी मुलाकात हो जाती. कुणाल चेहरे से धीर-गंभीर अंदर से कोमल सहज भाव से बातचीत में अपना तर्क रखते हुए नजर आता. समय बीतता गया और गिर्दा चचा और कुणाल का आपसी स्नेह गिर्दा के अंतिम क्षणों तक बना रहा.

कुणाल युवावस्था की शुरुआत से ही बजरंग दल से भी जुड़ा रहा लेकिन बब्बा (शमशेर सिंह बिष्ट) और गिर्दा चचा की सहज भेंट वार्ताओं ने कुणाल को अंदरुनी रूप से एक संवेदनशील मनुष्य बनाने का काम किया जिससे बाद में कुणाल ने राष्ट्रीय पार्टियों से मिलने वाली ठेकेदारी को भी ठुकरा दिया और युवा संवाद, उत्तराखंड लोक वाहिनी और माउंटेन राइडर्स जैसे संगठनों का एक सक्रिय कार्यकर्ता भी बना. जब भी सामाजिक कार्य या किसी को भी मदद की दरकार होती कुणाल सबकुछ छोड़ उनके दर पर सेवा को हाजिर रहता. यहां तक की कुणाल ने कुछ व्यक्तियों की आखिरी सांसों को भी लौटा कर उन्हें नया जीवन प्रदान करने में अहम योगदान दिया.
(Obituary for Kunal Tewari)

लंबी साइकलिंग राइड्स अल्मोड़ा से ऐड़ाद्यो के घने जंगल हो या रानीखेत का गोल्फ ग्राउंड या मुक्तेश्वर की सुंदर वादियां या नैनीताल, कुणाल का साथ साइकिलिंग में खूब रहा. अल्मोड़ा की सर्द सुबह में वह हाफ पैंट और अंडर शर्ट में दौड़ता हुआ नजर आ जाता. उसे ट्रैकिंग का भी खूब शौक था. हमने आसपास की कई पहाड़ियों का साथ-साथ दीदार किया. कुणाल का इस तरह चले जाना हमें झगझोर गया और एक अहम सवाल खड़ा कर गया कि कैसे एक निडर युवा के हौसलों की मौत हमारे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और पारिवारिक द्वंद्व के तले कुचली जाती है.
(Obituary for Kunal Tewari)

कुणाल की मौत सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं हमारे समाज में बेरोजगारी से जूझते हुए उस नौजवान की मौत है जो नेकी की जिंदगी, सादगी, ईमानदारी और स्वाभिमान से जीना चाहता था और समाज को भी हर मोड़ में आइना दिखाना चाहता था. सनद रहे की कुणाल एक बहुत बढ़िया कवि भी था और उसने कई रचनाएं लिखी जो अभी अप्रकाशित है. कुणाल की लिखी कुछ नज़्म –

आज महफ़िल सजी है, 
मौत का जश्न मनाने की.
ये भी अदाओं में है एक अदा
हम जैसे आज़ादों  की. 
जहाँ खत्म होती दुनियां की किताब, 
अपनी शुरु होती कहानी की. 
चुप्पी को बुझदिली समझने वाले जान गए, 
ये खामोशी थी तूफान से पहले आने की. 
तुम्हें मुबारक खुशी जीत की, 
आदत अपनी हार के जीत जाने की. 
आपको टुकड़ा ए जमीन की सरदारियाँ मुबारक, 
ख्वाहिश अपनी दिलों में दरबार लगाने की.                    

कुणाल तेवारी
26 oct 2019
रानीधारा, अल्मोड़ा

आज़ाद था, आज़ाद हूँ, आजाद रहुँगा.
हर गलत बात को यूँ ही बर्बाद करुँगा.
तुम मुंह सिलोगे, तो सिलो मेरा,
मैं हाथों से लफ्ज़ इंकलाब लिखुंगा.
झूठा चेहरा, छुप जाता है नकाबों की ओट में,
मैं हर झूठे चेहरे को बेनकाब करूँगा.
जो पौंधे, मार देते तुम झूठ के पानी से, 
डाल के खाद सच की उनको आबाद करूँगा.
चीखने-चिल्लाने वाले बहुत हैं महफ़िल में,
मैं तहज़ीब से बोले लफ़्ज़ों में सवाल करूँगा. 
जो बुझ चुकी है, धूल गर्द से जमाने की,
मार के फूंक इस राख को फिर आग करूंगा.
है मेरा धर्म एक, और एक मेरि जाती भी
इंसान था, इंसान हूँ, इंसान ही रहुँगा,
आज़ाद था, आज़ाद हूं, आजाद रहुँगा. 

कुणाल तेवारी
17 oct 2019
रानीधारा, अल्मोड़ा

अंततः कुणाल तुम आजाद ही हुए.

अजेयमित्र सिंह बिष्ट

साहसिक पर्यटन व फोटोग्राफी में रूचि रखने वाले अजेयमित्र सिंह बिष्ट अल्मोड़ा में रहते हैं. उनसे चेतना मार्ट, मॉल रोड, अल्मोड़ा या टेलीफोन नं. 9456596767 पर संपर्क हो सकता है.

इसे भी पढ़ें : बंजारा मासाब की शादी का किस्सा

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago