12 अप्रैल 1917 को जन्मे महान हरफनमौला वीनू मांकड़ के नाम कई हैरतअंगेज़ कारनामे दर्ज हैं, लेकिन सबसे ऊपर है, 1952 का लॉर्ड्स टेस्ट,जो इतिहास में ‘मांकड़ बनाम इंग्लैंड’ ने नाम दर्ज है. मज़े की बात यह है कि वीनू टूरिंग भारतीय टीम के सदस्य भी नहीं थे. दरअसल लॉर्ड्स टेस्ट में बुरी तरह हारने के बाद टीम प्रबंधन को होश आया कि वीनू होते तो नाक जड़ से न कटती. वीनू उन दिनों इंग्लैंड के क्लब क्रिकेट खेल रहे थे. उन्हें बुलावा भेजा गया. इंग्लिश प्रबंधन को भी ऐतराज न हुआ. मगर वे यह नहीं जानते थे कि जीत के बावजूद यश उनके नसीब में नहीं होगा.
वीनू ने भारत की 235 रन की पहली पारी में धूंआधार 72 रन बनाये. जवाब में इंग्लैंड ने 537 का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया. वीनू ने 73 ओवर डाले थे, जिसमें 196 रन के खर्च पर उनकी झोली में 5 विकेट गिरे थे. यानी वीनू अकेले ही अंग्रेज़ों की मुख़ालफ़त करते रहे थे. अंग्रेज़ विद्वानों और प्रेस ने भी वीनू बहुत तारीफ़ की. लेकिन साथ-साथ भारत की हार की कहानी भी मोटे-मोटे अक्षरों में दीवार पर लिख दी.
मगर चर्चा इस बात की ज्यादा थी कि क्या 302 रन बना कर भारत पारी की हार से बच पायेगा? ज़हनी तौर पर भारतीय ख़ेमे का कोई भी बल्लेबाज़ इस चुनौती को कबूल करने की हालत में नहीं था. मगर वीनू का इरादा कुछ और ही था. वो मैदान छोड़ने से पहले अंग्रेज़ों को छटी का दूध याद दिलाना चाहते थे. और सचमुच उन्होंने ऐसा कर दिखाया. क्रिकेट के सबसे बड़े तीर्थ लार्डस के मैदान में उस दिन ऐसी धूंआधार बल्लेबाज़ी की कि अंग्रेज़ी टीम का हर हथियार नाकाम हो गया.
अंग्रेजों ने मान लिया कि उन्हें अकेले दम पर शिकस्त देने वाला क्रिकेट की दुनिया में कोई है तो वो वीनू मांकड़ ही है, सिर्फ वीनू. भारत की दूसरी पारी में 378 रन बने, जिसमें वीनू का स्कोर था 184 रन. कितनी हैरतअंगेज़ रही होगी ये पारी, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जब वीनू आऊट हुए थे तो भारत का स्कोर था 3 विकेट पर 270 रन. मैच का लुत्फ़ उठा रहे अंग्रेज़ विद्वानों ने किताबों में लिखा है कि उनके आऊट होने से ऐसा लगा था मानों संभावित प्रलय थम गयी है. मगर अफसोस बाकी के बल्लेबाजों ने वीनू से कोई सबक हासिल नहीं किया और महज़108 रन ही और जोड़ पाये.
आख़िरकार इंग्लैंड ने ज़रूरी 79 रन बना कर 8 विकेट से मैच जीत लिया. लेकिन कहानी का दि एंड इतना सिंपल नहीं था जितना स्कोर कार्ड दिखाता है. इंग्लैंड को दूसरी पारी में भी वीनू ने अपनी जादुई स्पिन से खूब परेशान किया. उन्होंने 24 ओवर डाले, उन्हें विकेट नहीं मिला, लेकिन लेन हट्टन और डेनिस काम्पटन जैसे वर्ल्ड क्लास बल्लेबाज़ों को कई दफ़े पसीना पोंछने पर मजबूर किया. कुल 24 घंटे, 35 मिनट चले इस मैच में 18 घंटे, 45 मिनट तक वीनू मैदान में रह कर अजेय अंग्रेज़ों की नाक में दम करते रहे.
आमतौर पर ब्रिटिश प्रेस विपक्षी खिलाड़ी की प्रशंसा में कंजूसी करती है. लेकिन वीनू के मामले में उसने दिल खोल दिए. एक अखबार ने लिखा- मेराथन मनकड दि मैग्नीफीसेंट. दूसरे ने कहा- इंग्लैंड बनाम मनकड टेस्ट. एक अन्य ने तो वीनू की तुलना उस ज़माने के महान हरफ़नमौला ‘किलर’ आस्ट्रेलिया के कीथ मिलर से कर दी. उन्हें कीथ मिलर का भारतीय जवाब बताया गया. इस मैच की अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि मैच के बाद महान समीक्षक जिम स्वांटन ने लिखा था – वीनू के खेल की तारीफ़ लफ़्ज़ों के बस की बात नहीं है. क्रोफोर्ड व्हाईट ने कहा – इनक्रिडिबल! यानि अद्भुत यानि विलक्षण इंसान!
वीनू मांकड़ दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बायें हाथ का स्पिनर और दायें हाथ का बल्लेबाज़ है. जान आरलोट ने कहा – वीनू ने जेंकिन्स की गेंदों को ही नहीं, जेंकिन्स को ही उठा कर मैदान से बाहर फेंक दिया. ज्ञातव्य हो कि यह जेंकिन्स का आखिरी टेस्ट साबित हुआ। एक और समीक्षक ने अपने विचार यों प्रकट किये – वीनू इंग्लैंड को क्लब टीम समझ कर भूसा भर रहे थे. क्रिकेट के डॅान कहे गये डॅान ब्रेडमैन ने उन्हें दुनिया का महान स्पिनर बताते हुए कहा था- भारत को हमेशा वीनू पर गर्व रहेगा.
यह जानकर और भी हैरानी होती है कि वीनू ने यह अजूबा युवावस्था में नहीं अंजाम दिया था। उस वक्त उनकी उम्र 35 साल से भी ज्यादा थी और जिस्म भी भारी भरकम था. वीनू ने 44 टेस्टों में 2109 रन बनाये और 162 विकेट लिए. उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाये. जिनमें ज्यादातर टूट चुके हैं. मगर एक अनोखा विश्व रेकार्ड अभी तक कायम है. उन्होंने एक से ग्यारह तक सभी क्रमों पर बल्लेबाजी की. इस महान हरफ़नमौला ने 21 अगस्त 1978 को आख़िरी सांस ली.
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