Featured

उत्तराखंड में 31 फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का शिकार

उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय का औसत आंकड़ा 1.77 लाख रुपये को पार कर गया है. लेकिन यह बेहद सोचनीय विषय बन गया है कि उत्तराखंड में कुपोषित बच्चे पाए गए हैं. नीति आयोग की पिछली रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि 13 जिलों वाले छोटे से उत्तराखंड के चार जिले (हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, उत्तरकाशी, चमोली) कुपोषण का शिकार हैं. कुपोषित बच्चों में उनकी आयु के हिसाब से लंबाई और भार में अपेक्षाकृत काफी कमी पाई गई.

बच्चों में कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए भले ही आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हों, लेकिन यह समस्या आज भी बड़ी संख्या में व्याप्त है. उत्तराखंड में भी इस स्कीम के तहत करोड़ों की धनराशि खर्च की जा रही है, लेकिन कुपोषित बच्चों की संख्या आज भी सरकारी दावों को मुंह चिढ़ा रही है. उत्तराखंड के 31 फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

विगत दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री आवास में समेकित बाल विकास सेवाओं के तहत टेक होम राशन और कुपोषित बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्र के माध्यम से दिए जाने वाले पोषाहार ‘ऊर्जा’ की प्रगति की समीक्षा की. अधिकारियों को निर्देश दिए है कि राज्य में मौजूद लगभग 20 हज़ार कुपोषित बच्चों के परिवारों को रोजगार से जोड़ने की कार्ययोजना पर तैयार की जाए. इन गरीब व कुपोषित परिवारों को पहले से मौजूद 12 हजार स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने के तत्काल प्रबंध करने को कहा.

गौरतलब है कि आंगनबाड़ी केन्द्रों में बाल विकास सुनिश्चित करने व कुपोषण समाप्त करने के लिए हर वर्ष 214 करोड़ रूपए की धनराशि आवंटित होती है. लेकिन इसके सदुपयोग, सही वितरण, लाभार्थियों को वास्तविक लाभ, पौष्टिक आहार की सुनिश्चितता सिस्टम में हज़ार खोट है. परिणामस्वरूप बदहाली में कोई फर्क नहीं आ सका है.

2005-06 के तीसरे नेशनल फैमिली सैंपल सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में पांच साल से कम उम्र के 44 फीसदी बच्चों को पूरा पोषण नहीं मिल पाया. आज उत्तराखंड के 31 फीसद क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. एक दशक से अधिक समय में बहुत अधिक फर्क लाने में सरकार नाकाम रहीं है.

बच्चो के अलावा वयस्कों में भी 30 फीसदी महिलाएं और 28 फीसदी पुरुष कुपोषण के शिकार ,55 फीसदी महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. कुपोषण के मामलों को देखें तो इसकी प्रमुख वजहों में हैं गरीबी, गंदगी, एनीमिया, पौष्टिक भोजन की कमी, जागरुकता की कमी है.और सबसे बड़ी वहज ‘सिस्टम में पारदर्शिता की कमी ‘. हर वर्ष करोड़ों का बजट जरुरतमंदो तक पहूँच ही नहीं पाता हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

18 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

20 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

21 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

1 day ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

3 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

3 days ago