पार्रा ठहाका मारता है मानो उसे नरक में भेजा जा रहा हो
लेकिन आप बताएं कवियों ने कब नहीं लगाया ठहाका
कम से कम वह दम ठोक कर कह तो रहा है कि वह ठहाका मार रहा है
पाब्लो नेरुदा के बाद चीले के सबसे प्रभावशाली कवि निकानोर पार्रा अपनी प्रयोगधर्मिता और कट्टर राजनैतिक प्रतिबद्धता के चलते, दुनिया भर में सम्मानित रहे. आधुनिक राजनीति, दकियानूस बौद्धिकता और थोथी बयानबाजी को ठेंगा दिखाती उनकी कविता विश्व-साहित्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर रहेगी. इस साल की तेईस जनवरी को एक सौ तीन साल और चार महीने कुछ दिन की आयु में उनका देहांत हो गया
5 सितम्बर 1914 को जन्मे निकानोर पार्रा (पूरा नाम निकानोर सेगून्दो पार्रा सानदोवाल) दक्षिण अमेरिका के सबसे प्रभावशाली कवियों में शुमार रहे. गणित और भौतिकी के विद्वान पार्रा संतियागो की युनिवर्सिटी ऑफ़ चीले में थ्योरेटिकल फिजिक्स के प्रोफ़ेसर रहे थे. उनकी बहन वीयोलेता चीले की सबसे विख्यात लोकगायिकाओं में शुमार थीं. (वीयोलेता पार्रा ने 1967 में सिर्फ पचास की आयु में अपने सिर में गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी ‘मदर ऑफ़ लैटिन अमेरिकन फोक’ के नाम से जानी जाने वाली वीयोलेता के जीवन पर आंद्रेस वुड की बनाई फ़िल्म ‘वीयोलेता वेंट टू हैवन’ वर्ष 2011 में ऑस्कर के लिए नामित हुई थी.)
बहुत से आलोचक निकानोर पार्रा को (पूरा नाम निकानोर सेगून्दो पार्रा सानदोवाल) दक्षिण अमेरिका के सबसे प्रभावशाली कवि स्पानी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण कवि मानते हैं. प्रतिकविता के हामी और एक हद तक सनकी पार्रा रोज़मर्रा की काव्य-सज्जा और फिक्शन को घनघोर नापसंद करते थे. अपने हर काव्यपाठ के बाद वे श्रोताओं से कहते थे – “मैं अपनी कही हर बात वापस लेता हूँ.”
पार्रा को “पश्चिमी संस्कृति की एक अद्वितीय आवाज़” बताते हुए उनकी मृत्यु की घोषणा राष्ट्रपति मिशेल बाखेलेत ने की थी.
एक निपुण गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री पार्रा को 1954 में उनकी किताब ‘पोएम्स एंड एंटीपोएम्स’ के छपने के बाद ख्याति मिली, जिसमें प्रांजल भाषा के माध्यम से आधुनिक जीवन के ह्यूमर और उसकी विसंगतियों को संबोधित किया गया था.
रोज़मर्रा की बोलचाल में उनकी दिलचस्पी थी, जिसे वे भाषा का एक मुखर और विवरणात्मक माध्यम मानते थे और उन्होंने अपनी कविताओं को क्लीशे और खिचड़ी शब्दों तक से भरपूर भरा. अपनी अनेक रचनाओं की ट्रैजिक तासीर को रेखांकित करने के लिए उन्होंने भावनात्मक रूप से प्रतिकूल भाषा का प्रयोग किया – उसका बड़ा हिस्सा विनोदपूर्ण, बेअदबी से भरा और मामूली है. उनकी कविता में फोन, सोडा फाउंटेन और पार्क की बेंचों जैसी साधारण चीज़ें हर जगह बिखरी पड़ी हैं.
प्रति-कविता की अपनी तकनीक को वे “हंसी और आंसू” कहते थे, जिसका एक हिस्सा कविता की उस पारम्परिक धारणा के खिलाफ़ हुई प्रतिक्रिया से उपजा था, जिसमें उसे भद्र पाठकों के लिए एक उन्नत किस्म की अभिव्यक्ति का रूप माना जाता है, जैसा कि उनके दोस्त पाब्लो नेरुदा की कविताओं में पाया जाता है.
उन्होंने एक बार कहा था, “मैंने कविता को हमेशा मंच पर खड़े एक पादरी की आवाज़ से जोड़कर देखा है” और आगे जोड़ा था कि जब लोग बातें कर रहे होते हैं कवि गाया करते हैं. “गाने का काम चिड़ियों को करने दो.”
1968 में द न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था, “जब हास्य, विडंबना और व्यंग्य होता है, जब लेखक अपना और उस बहाने मानवता का मखौल बना रहा होता है, तब लेखक गा नहीं रहा होता बल्कि कहानी सुना रहा होता है – यही प्रति-कविता है.”
पाठक के साथ अपने संबंध के बारे में उन्होंने एक बार कहा था : “ह्यूमर से संपर्क बनाने में आसानी रहती है. याद रखिये जब आप अपना सेन्स ऑफ़ ह्यूमर खो देते हैं, तभी आप अपनी पिस्तौल ढूंढने लगते हैं.”
उनके काव्य की तत्पर सुगमता 1972 की एक कविता ‘हेल्प’ में दिखाई देती है, जिसका यहां दिया जा रहा पूरा अनुवाद आर्कान्सास के कवि मिलर विलियम्स ने किया है:
मुझे नहीं मालूम मैं यहां कैसे पहुंचा
मैं तो मज़े-मज़े में जा रहा था यारों
मेरे दाहिने हाथ में मेरा हैट
एक चमकदार तितली का पीछा करता हुआ
जिसने मुझे ख़ुशी से पागल बना रखा था
और अचानक! मैं ठोकर खा कर गिरा
मुझे नहीं पता बगीचे को क्या हुआ है
हरेक चीज़ टुकड़े-टुकड़े हो गयी है
मेरी नाक और मुंह से खून निकल रहा है.
सच बताऊं मुझे नहीं मालूम कि हो क्या रहा है
या तो मेरी कुछ मदद करो
या मेरे सिर में गोली मार दो.
सांतियागो की दीयेगो पोर्तालेस यूनिवर्सिटी के प्रकाशन-निर्देशक मातीयास र्रीवास का कहना था कि जनाब पार्रा ने लातिन अमरीकी साहित्य की सजावट और शब्दों के आधिक्य का इस्तेमाल एक “बेबाक कविता” के पक्ष में करने की कोशिश की थी जो “आम जन की आवाज़” बनी. र्रीवास ने कहा कि वे कवियों को “ओलिम्पस से नीचे उतार लाना चाहते थे.”
निकानोर सेगुन्दो पार्रा सानदोवाल 15 सितम्बर, 1914 को दक्षिण चीले के सान फाबियान दे आलीको में स्कूल टीचर और संगीतकार निकानोर पार्रा और दर्जी का काम करने वाली रोसा क्लारीसा सानदोवाल नावार्रेते के घर नौ संतानों में से एक के रूप में जन्मे थे. संस्कृति पर विशेष जोर देने वाली इस दंपत्ति के बच्चों में से अनेक नामचीन कलाकार बने, जिनमें लोकगायिका वीयोलेता पार्रा का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने 1967 में आत्महत्या कर ली थी.
पार्रा ने अपनी पहली किताब ‘सिंगर विदाउट अ नेम’ यूनिवर्सिटी ऑफ़ चीले से गणित और भौतिकविज्ञान स्नातक की उपाधि हासिल करने से एक साल पहले, 1938 में प्रकाशित की थी. बाद में उन्होंने प्रोविडेंस, आर.आई. में मैकेनिक्स और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड में कॉस्मोलॉजी का अध्ययन किया. उन्होंने दशकों तक यूनिवर्सिटी ऑफ़ चीले में थ्योरेटिकल फिज़िक्स पढ़ाई.
टाइम्स को 1968 में दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, “मैं रोटी कमाने के लिए फिज़िक्स करता हूं और जिंदा रहने के लिए कविता.”
1963 में उन्होंने छः महीने सोवियत संघ में बिताए और अनेक सोवियत कवियों का स्पैनिश में अनुवाद किया, अलबता उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बनने से इनकार कर दिया. लम्बे समय तक वे संयुक्त राज्य अमरीका के वामपंथियों के दुलारे बने रहे – अलबता चीले में ऐसा नहीं था, जैसा कि उन्होंने 1971 की एक घटना का ज़िक्र किया जब उन्होंने ब्लैक पैंथर नेता बॉबी स्केल की बर्थडे पार्टी में हिस्सा लिया था.
रेडिकल एक्टिविस्ट जेरी रूबिन द्वारा “चीले के सर्वश्रेष्ठ कवि” के रूप में परिचित कराये गए पार्रा, जो उस वक़्त 57 वर्ष के थे, ने कहा था कि वाशिंगटन में 1970 में हुई एक घटना के कारण चीले के अनेक कम्युनिस्ट उन्हें संदेह की निगाह से देखा करते थे.
“लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस में मैंने और कुछ विदेशी कवियों ने काव्यपाठ किया था,” उन्होंने याद करते हुए बताया. “उसके बाद, हमें एक रिसेप्शन के लिए व्हाईट हाउस ले जाया गया और इसके पहले कि मैं जान भी पाता, मैं मिस्टर निक्सन से हाथ मिला रहा था. उसकी तस्वीरें समूचे लातिन अमरीका में छपीं, और अचानक मेरे पुराने दोस्त ठंडे पड़ गए थे. मुझे अपनी क्यूबा यात्रा निरस्त करनी पड़ी. यह आज भी बड़ी पशेमानी लगती है.”
पार्रा की ‘एमरजेंसी पोयम्स’ का रिव्यू करते हुए विद्वान अलैक्जैंडर कोलमैन ने 1972 में लिखा कि जनाब पार्रा और अन्य प्रति-कवियों को “कविता की मूल धारणा और उसके साथ चलने वाली उपमाओं, फूले हुए डिक्शन, रूमानी इच्छा, अगम्यता और खोखल कुलीनता से भय लगता है.”
उनका काम हर किसी को पसंद नहीं आता था. चीले के एक आलोचक ने उनकी कविताओं को “अनैतिक होने के लिहाज़ से बहुत मलिन” पाया था. एक और की प्रतिक्रिया थी – “दया और उबकाई.”
1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में चीले के तत्कालीन समाजवादी राष्ट्रपति साल्वादोर आयेन्दे से उनका मोहभंग होना शुरू हो गया, जो ‘आर्टीफैक्ट्स’ (1972) शीर्षक उनकी पुस्तक की कविताओं और लघुकथाओं का निशाना बने.
अगले साल जब फ़ौज द्वारा सरकार का तख्तापलट किया जा रहा था, तब आयेन्दे ने उस समय आत्महत्या कर ली. अनेक वामपंथी और कलाकार चीले छोड़ कर चले गए, लेकिन पार्रा नहीं गए और उन्होंने पढ़ाना जारी रखा. (उनके भांजे, जाने-माने गायक-गीतलेखक और वीयोलेता पार्रा के सुपुत्र आन्हेल पार्रा ने अपने मामा को नकार दिया था और टाइम्स से कहा था, “उस आदमी से अब मेरा कोई लेना-देना नहीं है.”)
पार्रा से दूरी बनाने वालों में नेरुदा भी थे, जिन्हें 1971 का साहित्य का नोबेल दिया गया था और तख्तापलट से कुछ ही समय बाद जिनकी 1973 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी.
1976 में द टाइम्स के एक आलेख के लिए साहित्य के विद्वान और जीवनी-लेखक फ्रैंक मैकशेन को नेरुदा के एक दोस्त ने बताया था, “पाब्लो हमेशा एक प्लेटफॉर्म पर खड़े रहे और उनकी स्थिति साफ़ थी, लेकिन निकानोर के बारे में कुछ नहीं पता.”
मैकशेन का कहना था कि दोनों कवियों – कम्युनिस्ट नेरुदा और संशयवादी पार्रा – के बीच का विरोधाभास चीले के समुद्री तट पर स्थित गांव ईस्ला नेग्रा में दोनों के घरों को देखकर समझा जा सकता है : नेरुदा का बंगला एक टावर वाले पत्थर के घर से शुरू हुआ था और बाद में पहाड़ी के साथ-साथ फैलता चला गया था, जबकि पार्रा की विनम्र कॉटेज चीड़ के पेड़ों के एक झुरमुट में कुछ सौ मीटर भीतर थी.
“पार्रा के घर में वह शान-ओ-शौकत और फैलाव नहीं दीखता जैसा नेरुदा के यहां पाया जाता है,” मैकशेन ने लिखा था. “यह एक अलग मुद्रा धारण करने वाले लेखक को दर्शाता है – एक कवि जिसके संशय बहुत विनम्र और स्पष्ट हैं और सेंस ऑफ़ ह्यूमर नपा-तुला.” उन्होंने आगे जोड़ा, “अपनी आत्मा में पार्रा अराजकतावादी हैं, अपने मुल्क समेत समूचे समाज से एक तरह का देशनिकाला.”
1977 में छपे पार्रा के संग्रह ‘द सर्मन्स एंड टीचिंग्स ऑफ़ द क्राइस्ट ऑफ़ एलूकी’ में जनरल औगूस्तो पिनोशे की दक्षिणपंथी सत्ता द्वारा किये जा रहे मानवाधिकार हनन को निशाना बनाया गया था.
1988 के जनमत संग्रह से कुछ ही समय पहले, जिसके बाद सैन्य शासन समाप्त हो गया था और चीले में लोकतंत्र की स्थापना हुई थी, पार्रा को द टाइम्स में यह कहते हुए उद्धृत किया गया : “हम जैसा चाहें लिख सकते हैं क्योंकि सिस्टम हमारी लिखी साधारण कविता पर ध्यान नहीं देता. वे जानते हैं कि उसे कोई नहीं पढ़ता”
पार्रा को 1969 में चीले का राष्ट्रीय साहित्य सम्मान और 2011 में स्पैनिश-भाषी संसार का सबसे प्रतिष्ठित साहत्यिक पुरस्कार सेरवान्तेस प्राइज़ दिया गया था. 1972 में उन्हें गूगेनहाईम फैलोशिप से नवाज़ा गया.
सांतियागो के ला रेईना में अपने परिवार के पास वापस लौटने से पहले निकानोर पार्रा ने अपने आख़िरी साल प्रशांत महासागर के समीप एक खाड़ी में स्थित छोटे से कस्बे लास क्रूसेस में बिताए.
इन्गा पालमेन और नूरी ताका के साथ हुए उनके विवाहों का अंत तलाक में हुआ. वे अपने पीछे छः बच्चे छोड़ गए : आना देलीया त्रोनकोसो के साथ सम्बन्ध से जन्मे कातालीना, आना फ्रांसिस्का और अल्बेर्तो; अपनी हाउसकीपर रोसीता मुन्योज़ के साथ हुए सम्बन्ध से जन्मे एक पुत्र रोबेर्तो; और चित्रकार पत्नी नूरी ताका से हुए दो बच्चे कोलाम्बिना और हुआन दे दीयोस.
निकानोर पार्रा की एक कविता पढ़िए –
कुछ इस तरह
पार्रा ठहाका मारता है मानो उसे नरक में भेजा जा रहा हो
लेकिन आप बताएं कवियों ने कब नहीं लगाया ठहाका
कम से कम वह दम ठोक कर कह तो रहा है कि वह ठहाका मार रहा है
बीतते जाते हैं साल
बीतते ही जाते हैं
कम से कम वे इस बात का आभास तो देते ही हैं
चलिए मान लेते हैं
हर चीज़ यूं चलती है मानो वह बीत रही हो
अब पार्रा रोना शुरू करता है
वह भूल जाता है कि वह एक अकवि है
बन्द करो दिमाग खपाना
आजकल कोई नहीं पढ़ता कविता
कोई फर्क नहीं पड़ता कविता अच्छी है या खराब
मेरी प्रेमिका मेरे चार अवगुणों के कारण मुझे कभी माफ नहीं करेगी :
मैं बूढ़ा हूं
मैं गरीब हूं
कम्यूनिस्ट हूं
और साहित्य का राष्ट्रीय पुरुस्कार जीत चुका हूं
शुरू के तीन अवगुणों की वजह से
मेरा परिवार मुझे कभी माफ नहीं कर सकेगा
चौथे की वजह से तो हर्गिज़ नहीं
मैं और मेरा शव
एक दूसरे को बहुत शानदार तरीके से समझते हैं
मेरा शव मुझसे पूछता है : क्या तुम भगवान पर भरोसा करते हो
और मैं दिल की गहराई से कहता हूं : नहीं
मेरा शव मुझसे पूछता है : क्या तुम सरकार पर भरोसा करते हो
और मैं जवाब देता हूं हंसिए हथौड़े के साथ
मेरा शव मुझसे पूछता है : क्या तुम पुलिस पर भरोसा करते हो
और मैं उसके चेहरे पर घूंसा मार कर जवाब देता हूं
फिर वह अपने कफन से बाहर आता है
और एक दूसरे की बांह थामे
हम चल देते हैं वेदी की तरफ
दर्शनशास्त्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि
जूठे बरतन कौन साफ करेगा
यह इसी संसार की बात है
भगवान
सत्य
समय का बीतना
बिल्कुल सही बात
लेकिन पहले बताइए जूठे बरतन कौन साफ करेगा
जो करना चाहे करे
ठीक है फूटते हैं अपन
और लीजिए अब हम दोबारा वही बन चुके : एक दूसरे के दुश्मन.
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